आज शहरों व महानगरों में रहने वाले उत्तराखंडी पहाड़ों के विकास के लिए सबको चेताने में लगे हैं लेकिन खुद अपने गांवों को लौटने को कोई तैयार नहीं है ऐसे में उत्तराखंड के विकास की बात करना बेमानी होगी। ऐसे में पहाड़ अपने सभी बंधुओं को एक संदेश दे रहा है । आशा है आप सभी इस पर मंथन जरूर करेंगे।
ऐजा लौटिक
अंध्यारा तैं छटांदि जुन्येलि रात यख
चखुलों चिच्याट दगडी जगदि मन्ख्यौत यख
चरचराट बरबराट म खतैनि खितक्याट यख
ऐजा लौटिक सुद्दी व्हीं फुफ्याट तख।
बांजा जोडों ठंडो पाणि अर दाना सैणो आशीष यख
जु तीस अर ज्यू कि आस बुझांदा यख
घाम म हिंवाळा स्वोना सि चमकदा यख
ऐजा लौटिक सुद्दी व्हीं फुफ्याट तख।
भरी रूडी म हिसर काफल की रस्याण यख
ब्वे कि माया सि छौ मिलदि डंडयेलि-तिवारियूं म यख
कन्दुड़ियूं म जागर लगौन्दु बथों कु सुरसुर्याट यख
ऐजा लौटिक सुद्दी व्हीं फुफ्याट तख।
रोटी, नौण, मुळे थिंचाडि, नौमी नै नवाण यख
गौर, बाछुर,नौला धारा नाज म भगवान यख
हर द्वार म्वोर बचीं भै भैयात यख
ऐजा लौटिक सुद्दी व्हीं फुफ्याट तख।
नौनिहालु कु बाळुपन फूल जन खिल्दु यख
बिसरि याद भि लैनि गौड़ी सि फल्दि फुलदि यख
देवतुल्य संस्कृति धरती सरग लगदि यख
ऐजा लौटिक सुद्दी व्हीं फुफ्याट तख।
क्याप क्याप रोग म भि क्वे डैर भे नि यख
क्वोदु झंगोरो प्रोटीन ओक्सिजने च भरमार यख
मिलदि सांसु तैं गति नि व्होदु क्वी कब्लाट यख
ऐजा लौटिक सुद्दी व्हीं फुफ्याट तख।
रचनाकार द्वारिका चमोली (डीपी)

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