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अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला प्रगति मैदान में "गढ़वळि भाषा अर नरेन्द्र सिंह नेगी" संवाद कार्यक्रम का हुआ आयोजन


नई दिल्ली : दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में शुक्रवार 3 फरवरी 2023 को गढ़वळि भाषा अर नरेन्द्र सिंह नेगी" गोष्टी का आयोजन  हुआ जिसमें विनसर पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित आदरणीय नरेंद्र सिंह नेगी जी की तीन पुस्तकों "अब, जबकि" "तेरी खुद तेरो ख़्याल" व "तुम दगड़ि या गीत राला" का विमोचन भी हुआ। मुख्य अतिथियों समाजसेवी डॉ. विनोद बछेती, अधिवक्ता संजय दरमोडा, दिगमोहन नेगी, साहित्यकार बीना बैंजवाल और साकेत बहुगुणा की उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ व उत्तराखंड के साहित्य और संस्कृति के ध्वजवाहक नरेंद्र सिंह नेगी जी की पुस्तकों का विमोचन किया गया।

किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहली बार गढ़वाली भाषा की गोष्ठी होना एक शुभ संकेत है। इस आयोजन में देशभर से गढ़वाली भाषा में काम करने वाले साहित्यकारों, लेखकों और मातृभाषा अभियान को चलाने वाले सैकड़ों लोगों के अलावा भाषा प्रेमियों ने प्रतिभाग किया। 

इस अवसर पर नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हमारी भाषा में लोक ज्ञान-विज्ञानं है। यदि हम इसे भूल जायेंगे तो पर्वतीय अंचल के हिमालय क्षेत्र की संस्कृति, परंपरा और जड़ी बूटी विज्ञान का ज्ञान खंडित हो जायेगा और ये तभी बच पायेगा जब हमारी भाषा बची रहेगी। हमारी भाषा में जो शब्दों का भंडार और शब्दों की ताकत है वो इसे व्यापक और सशक्त बनाती है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने हमें संपत्ति के रूप में सिर्फ खेत और मकान ही नहीं दिए अपितु भाषा भी विरासत में दी है। अपनी इस पैतृक संपत्ति को आत्मसात कर ही हम ऐसे और खुद को समृद्ध बना पाएंगे। 

नेगी जी की पुस्तक तेरी खुद तेरु ख्याल में घरजवें, बेटी-ब्वारी, बंटवारु, चक्रचाल, छम्म घुंघरू,फ्योंलि ज्वान व्हेगे, औंसी की रात, सुबेरो घाम, जै धारी देवी, मेरी गंगा होली मैमू आली, और मेजर निराला जैसी 68 गढ़वाली फिल्मों के गीत संकलित हैं। इस पुस्तक में न केवल गीत बल्कि पाठकों को फिल्मोंसे सम्बन्धी जानकारी भी मिलेगी। 

दिल्ली और एनसीआर में गढ़वाली, कुमाउनी व् जौनसारी भाषा की कक्षाएं संचालित करने वाले डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि हमने अपनी दुध बोली भाषा के प्रति संवेदनशीलता नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीतों को सुनकर ही महसूस की जिसके बाद लगा कि हमें अपनी भाषा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना चाहिए। यही कारण है की हमने ग्रीष्मकालीन अवकाश में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए नई पीढ़ी को दुध बोली से जोड़ने के लिए दिल्ली एनसीआर में कक्षाएं संचालित की  जो कि अब 40 स्थानों तक पहुंच गई हैं। 

इस अवसर पर प्रसिद्ध समाजसेवी अधिवक्ता संजय शर्मा दरमोडा ने नरेंद्र सिंह नेगी को एक ऐसा रचनाकार और गायक बताया जिन्होंने हिमालय के हिमशिखरों को सोने और चांदी से अलंकृत किया साथ ही उनके पास प्रकृति के साथ तारतम्य बैठाने की ऐसी सौंदर्य दृष्टि है जो उन्हें अद्भुत व अनूठा बनाती है। 

सामाजिक कार्यकर्ता दिगमोहन सिंह नेगी ने ने बताया कि आजकल कि पीढ़ी नेगी जी के गीतों को सुनकर अपनी मातृभाषा को समझती है और उन्हें अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलता है। उनके गाये लोकगीत लोक परंपराओं समझने और जानने का अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि नेगी जी के गीत केवल मनोरंजन के लिए नहीं होते बल्कि उनमें उत्तराखंडी चिंता और चिंतन भी होता है। वो एक ऐसे गीतकार गायक हैं जिन्होंने गंगा जी के दर्द को समझा और उसकी स्वच्छता के लिए चलाई जाने  वाली परियोजनाओं, अभियानों की शुरुआत से पहले ही गंगा के गंदे होने की बात अपने गीतों के माध्यम से कर दी थी। उनका गाया गीत गंदलु कैरि याली तेरु छाळु पाणि गंगा जी बहुत ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। 

वहीं गढ़वाली भाषा की संजीदा साहित्यकार व् कवियित्री बीना बेंजवाल ने कहा कि पहाड़ की नारी के दर्द को सही मायने में किसी ने समझा तो वो नेगी जी ही है। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से उनकी पीड़ा को लोगों तक पहुंचाया। 

भाषाविद साकेत बहुगुणा ने बताया कि गढ़वाली भाषा में कई जगह दो-दो क्रियाएं एक साथ प्रयोग की जाती है जो कि दुनिया की बिरली भाषाओँ में ही प्रयोग होता है। यह इस बात का प्रमाण है कि गढ़वाली भाषा व्याकरणीय रूप से भी कितनी समर्थ है, यह इस भाषा की अपनी संपदा है। 

इस पूरे कार्यक्रम को गणेश खुगशाल गणी ने अपने कुशल मंच संचालन से उपस्थित जनसमूह को अंत तक बांधे रखा। इस कार्यक्रम में दिल्ली एनसीआर के प्रवासी बंधुओं जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, संजय चौहान, प्रताप थलवाल, लक्ष्मी नेगी, सत्येंद्र सिंह नेगी, सतेंद्र सिंह रावत, डॉ. सतीश कलेश्वरी और कई अन्य भाषा प्रेमियों ने प्रतिभाग किया। 



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