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"गैर" होता गैरसैंण- जाने कितने आए और चले गए, हम हर बार उम्मीद में छले गए

गैरसैंण


योगी मदन मोहन ढौंडियाल

देवभूमि की उस जनता के लिए उत्तराखंड और गैरसैंण सिर्फ दो शब्द नहीं बल्कि गुरु ग्रंथ साहिब की गुरुबानी के शबद की तरह महत्वपूर्ण है जिसने राज्य आंदोलन के  दौरान कितनी बड़ी-बड़ी शहादतें दी हैं। राज्य आंदोलनकारियों  ने अपनी माँग में “राज्य उत्तराखंड और राजधानी गैरसैंण से कम नहीं, वरना हम नहीं" के नारे के साथ आगे बढ़ते हुए आंदोलन की लड़ाई लड़ी और अलग राज्य हासिल किया। वर्ष 2000 में जब राज्य अस्तित्व में आया तो तब अंतरिम सरकार ने देहरादून को स्थायी राजधानी का मसला चुनी हुई सरकार पर छोड़ दिया। इसके बाद न्यायमूर्ति वीरेद्र दीक्षित की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय आयोग का गठन हुआ, लेकिन आयोग ने गैरसैंण स्थायी राजधानी की स्वीकार्यता को ठंडे बस्ते में डाल दिया। 

दीक्षित आयोग 12 साल में 12 करोड रुपये फूंकने के बाद भी स्थायी राजधानी चयन का मसला नहीं सुलझा पाया। इस बीच तत्कालीन कांग्रेस सांसद सतपाल महाराज की पैरोकारी के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने विधान सभा भवन निर्माण के लिए 88 करोड़ जारी कर दिए। राजधानी को लेकर तब भी कोई राय नहीं बन पा रही थी, लेकिन विधान सभा का मामला सियासी गलियों में झूलता रहा। वर्ष 2012 में कांग्रेस सत्ता में लौटी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने 3 अक्टूवर 2012को गैरसैंण कैबिनेट में गैरसैंण में विधान सभा भवन के निर्माण का निर्णय लिया। 14 जनवरी 2013 को इस भवन का शिलान्यास होने के बाद इस पर करोड़ों रुपए खर्च कर विधान सभा भवन ने अपना आकार ले लिया था। पिछले 5 सत्र जब गैरसैंण में विधानसभा के आयोजित हुए तो माना जा रहा था कि अब गैरसैंण पर स्थाई अथवा ग्रीष्मकालीन राजधानी की मुहर लग जाएगी, लेकिन कोई भी मुख्यमंत्री इसके लिए साहस नहीं जुटा सका और यह मामला सियासत की गलियारों में डोलता रहा।

2017 में प्रदेश की सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी सरकार के तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से ठीक पहले प्रदेश की जनता को दो दशकों का सबसे बड़ा तोहफा दे दिया। 4 मार्च 2020 को बुधवार का दिन गैरसैंण के भविष्य के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण विधानसभा में देर सायं गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा कर उत्तराखंड में एक ऐसी इबारत लिख दी जो राज्य आंदोलनकारियों के सपने को साकार करती नजर आ रही थी। मुख्यमंत्री के लिए यह फैसला लेना इतना आसान भी नहीं था, उसी शाम को उन्होंने भावुक होकर मीडिया के सामने स्वीकार किया कि इस मामले को लेकर वे स्वयं बहुत असमंजस में थे और उन्हें रातभर नींद भी नहीं आई। इस विषय की गंभीरता को लेकर वे अंत तक पशोपेश में थे। लेकिन जन भावनाओं को सर्वोच्च रखते हुए और आंदोलनकारी शहीदों का बलिदान याद करते हुए आखिरकार उन्होंने गैरसैंण को राजधानी बनाने की वर्षों पुरानी मांग के लंबे सफर में एक लंबी छलांग लगाने की हिम्मत जुटा ली और राज्य के 20 साल के इतिहास की सबसे बड़ी घोषणा कर डाली। 


25 हज़ार करोड़ से गैरसैंण के विकास की इबारत लिखने वाले सीएम त्रिवेंद्र रावत के इस अप्रत्याशित फैसले से सियासत में हलचल मच गई। राज्य गठन के बाद के इन वर्षों में राज्य की सरकारों के द्वारा लिये गये चंद बड़े फैसलों या उनके इतिहास को लेकर जब भी बात होगी, तो निस्संदेह उसमें 4 मार्च 2020 की तारीख सबसे ऊपर होगी। पर्वतीय जनमानस की भावनाओं का प्रतीक बना गैरसैंण अब तक स्थाई व ग्रीष्मकालीन राजधानी के बीच ही झूल रहा था। पिछले 20 वर्षों में गैरसैंण को राजधानी बनाने के मुद्दे से राजनीतिक दल जिस तरह मुंह चुरा रहे थे उसको देखकर ऐसी उम्मीद ही नहीं थी कि कोई भी सरकार गैरसैंण को राजधानी या ग्रीष्मकालीन राजधानी जैसे किसी भी फैसले का जोखिम लेगी, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बजट सत्र के दौरान ऐसा कर दिखाया। अप्रत्याशित रूप से हुई इस घोषणा से जहां आमजन में खुशी और उल्लास का वातावरण दिखा, वहीं राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई थी। वह इसलिए कि किसी को इस बात का अंदाज ही नहीं था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ऐसी कोई घोषणा भी कर सकते हैं। सीएम रावत का यह मास्टर स्ट्रोक विपक्ष को बुरी तरह जख्मी कर गया। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भराड़ीसैंण में हुई इस घोषणा के तुरंत बाद प्रमुख विपक्षी दल ने जहां ग्रीष्मकालीन राजधानी को शिगूफा करार देने में जरा भी विलंब नहीं किया वहीं अपनी सरकार आने पर स्थायी राजधानी बनाने का ऐलान करने में भी देर नहीं की। स्वयं पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि गैरसैंण पर बड़ा निर्णय लेने का उनके पास अवसर था, लेकिन वे चूक गये। 

1992 में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद जिस तरह राम मंदिर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का लोक सभा चुनाव में  बड़ा मुद्दा रहता था ठीक उसी तरह उत्तराखंड में गैरसैंण भी विधानसभा चुनाव में प्रदेश भाजपा के संकल्प पत्र का मुख्य मुद्दा था। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राम मंदिर का जो सपना राम भक्तों ने देखा था वो देर सबेर ही सही लेकिन अब पूरा नजर होते दिख रहा है लेकिन उत्तराखंड में भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा बनाई गई ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण तीन साल बाद भी जस की तस खड़ी है। उत्तराखंड में भाजपा सरकार द्वारा भाजपा सरकार के सबसे बड़े ऐतिहासिक काम की इतनी बड़ी अनदेखी शायद ही भाजपा शासित किसी अन्य राज्य में दिखाई दे रही हो। विधानसभा बसाने और ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के बाद भी फिलहाल गैरसैंण में मात्र करीब 2 दर्जन कर्मी और पुलिस का एक दस्ता ड्यूटी देने के लिए उपलब्ध है। यहां के विशालकाय खाली भवन और वीरान पड़ा परिसर सरकार के आने के इंतजार में मायूस सा दिखाई देता है। आगामी 13 मार्च को भाजपा की धामी सरकार गैरसैंण में सत्र करवाने जा रही है जिसमें देखना होगा कि गैरसैंण राजधानी के लिए उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री कोई हैंडसम घोषणा कर पाते है या फिर उसे गैर ही समझ उसी हाल में छोड़ आते है।



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