बाघ का नाम सुनते ही लोगों की सांसें रुक जाती है किंतु यदि व्यक्ति सच्चा है तो वो बाघ के मुंह में जाकर भी वापिस आ सकता है। ये मैं नहीं कह रहा बल्कि उत्तराखंड की लोक कथाओं में से एक कथा सत्य वचन से ज्ञात होता है। तो लीजिये आज आप भी इस कथा का संक्षिप्त रूप पढ़ें।
सत्य वचन
सदियों पूर्व उत्तराखंड के किसी गांव में एक गाय अपने सुंदर से बछड़े के साथ रहती थी। अपने व बछड़े के भरण पोषण के लिए वो नित्य जंगल जाती और हरी घास चरती जिससे उसके थन भरपूर दूध से भर जाता। जब वो शाम को लौटती तो बछड़ा छककर दूध पीता। बछड़े को इस तरह दूध पीते देख गाय को भी ख़ुशी होती। बछड़े को अधिक दूध पिलाने की लालसा में वो हरी हरी घास की खोज में जंगल में दूर तक निकल जाती।
ऐसे ही एक दिन घास चरते चरते गाय जंगल में इतनी दूर निकल गई कि उसे कुछ आभास ही नहीं रहा जब वो लौटने को हुए तो वहां पहले से घात लगाई एक बाघ की नज़र उस पर पड गई जिसे देख बाघ ख़ुशी में गुर्राया। उसकी गुर्राहट सुन गाय भय से जड़ समान हो गई। फिर हिम्मत करके उसने बाघ से कहा कि मेरा बछड़ा भूखा है वो मेरा इंतज़ार कर रहा होगा क्योंकि मैं जाउंगी तो वो दूध पियेगा तभी उसकी भूख शांत होगी इसलिए तुम मुझे जाने दो। तो बाघ ने कहा यहां मैं भी तो भूखा हूं तुम्हें खाकर मैं अपनी भूख शांत करूँगा। गाय ने कहा मुझे मत खाओ मुझे जाने दो मैं उसे दूध पिलाकर लौट आउंगी। गाय की बात सुन बाघ खूब हंसा और कहा क्या तुमने मुझे बेवकूफ समझा है क्या। एक बार चली जाओगी तो फिर लौट कर क्यों आओगी मुझे भी भूख लोगी है मैं तुझे अपना भोजन बनाकर ही रहूंगा।
गाय खूब गिड़गिड़ाई, मिन्नतें की तो बाघ का मन बछड़े की बात पर पिघल गया और उसने उसे जाने दिया पर गुर्राते हुए कहा कि मैं तेरे लौटने की प्रतीक्षा करूंगा अगर तुम नहीं आई तो मैं तुम्हारे घर आकर तेरे साथ साथ तेरे बछड़े को भी अपना निवाला बना लूंगा। बाघ द्वारा छोड़ दिए जाने से गाय की साँस में साँस आई और उसने राहत की महसूस किया और वह बहुत खुश हुई।
अब वह लौट कर बछड़े के पास जा रही थी किंतु बाघ की बात उसके दिमाग में थी जिससे उसकी ये ख़ुशी ज्यादा देर टिक न सकी और चलते चलते उसके पांव लड़खड़ाने लगे। जैसे जैसे वो घर के पास पहुंची रही थी उसे बाघ को दिया अपना वचन याद आ रहा था। बछड़े के पास पहुंचते पहुंचते उसके चेहरे पे उदासी छा गई।
गाय ने बछड़े पर आज पूरी ममता लुटाई उसे चूमा, चाटा, दुलार किया और बड़ी तन्मयता से दूध पिलाया। पर मन में बाघ को दिया वचन याद आते ही उसकी आंखों से आंसू छलछला आये। मां का ये व्यवहार देख बछड़े को बहुत ही आश्चर्य हुआ। उत्सुकतावश उसने मां से इसका कारण पूछ ही लिया। गाय ने रुहासे मन से बाघ के साथ हुई सारी बात बछड़े को बता दी। बछड़ा ने बड़े धैर्य से सारी बात सुनी और फिर सहजता के साथ कहा इजा (मां) इसमें रोने वाली क्या बात है मैं हूँ ना सब सँभालने के लिए बस तुम मुझे बाघ के पास ले चलो मैं उसे मन लूंगा। इसपर गाय ने कहा नहीं नहीं बेटा वह बड़ा खूंखार जानवर है उसके मन में दया भाव कुछ नहीं होता वो केवल अपने स्वार्थ तक ही सिमित होता है। लेकिन बछड़ा जिद परअड़ा रहा कि इजा एक बार मुझे ले चलो।
बछड़े के बाल मन की जिद के आगे गाय को उसकी बात माननी पड़ी और उसने कहा यदि तू ऐसा चाहता है तो चल मेरे साथ।
अब गाय उस ओर चलने लगी जहाँ शेर था। आगे आगे गाय और उसके पीछे बछड़ा जंगल की ओर चल पड़े। चलते चलते दोनों के बीच जीवन मरण की बातें होती रही। घर से से निकलते समय जो कदम पूरी ताकत के साथ चल रहे थे वो भी मौत के करीब आते आते शरीर का बोझ ढोने में असमर्थ होने लगे थे। जैसे तैसे करके वे दोनों बाघ के पास पहुंचकर खड़े हो गए।
उनको अपने सामने देख बाघ अति प्रसन्न हुआ पर गाय को खुद के प्राणों से ज्यादा अपने लाडले के मारे जाने का भय सताने लगा जिससे उसकी ममता पूरी तरह से पगला सी गयी और बाघ से बोली मैं अपने वादे के मुताबिक तुम्हारे पास तुम्हारा लिवाला बनने के लिए हाज़िर हूं अतः बाघ दा अब मुझे खाकर अपनी भूख शांत कर लो। तुम मुझे खाकर बाद में बछड़े को खाना मैं उसे भी साथ लेकर आयी हूँ।
बछड़ा था तो छोटा ही पर बड़ा होशियार था, उसने कहा बाघ मामा प्रणाम ये मेरी इजा है इसलिए तुम पहले इसे नहीं मुझे खाओ, ये सुन गाय बोली नहीं नहीं इसे नहीं खाओ, मैंने तुम्हें वचन दिया है इसलिए पहले मुझे खाओ।
पर नहीं नहीं कहते बछड़ा बाघ के सामने चला गया।
इस पर बाघ ने कहा मैं तुम दोनों को ही नहीं खाऊंगा क्योंकि तुम दोनों के प्रेम ने मुझे हरा दिया है। एक तू है जो अपनी इजा के लिए प्राण देने पर उतारू है और एक तेरी इजा है जो अपने सत्य वचन पर अपने प्राण देने यहां चली आई। मैं तो ये देख रहा था कि तेरी इजा लौटेगी भी या नहीं क्योंकि मुझे यदि उसे खाना ही होता तो उसी समय खा लेता वापिस ही क्यों जाने देता।
बाघ ने बछड़े को खूब प्यार किया और उन दोनों को उनके घर की सरहद तक छोड़ने गया। किसी ने सच ही कहा है कि सच्चे प्राणी को किसी नहीं होता।
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