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शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ पंडित जगदीश ढौंडियाल जिनका संबध जयपुर घराने से है --उनकी प्रतिभा से उत्तराखंड सरकार अब तक है अनजान

शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ पंडित जगदीश ढौंडियाल जिनका संबध जयपुर घराने से है --उनकी प्रतिभा से उत्तराखंड सरकार अब तक है अनजान



शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ पंडित जगदीश ढौंडियाल जिनका संबध

जयपुर घराने से है --उनकी प्रतिभा से उत्तराखंड सरकार अब तक है

अनजान 


वीरेंद्र जुयाल उपिरि--

उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हुए इक्कीस वर्ष हो चुके है लेकिन राज्य में संगीत और लोक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने वाले अनेक ऐसे सितारे हैं जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के विभाजन से भी पहले हुआ है परन्तु आज तक उत्तराखंड में उनको उनकी प्रतिभा के अनुरूप सम्मान नही मिल पाया है | ऐंसे कुछ नाम है जो ताउम्र जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अपने काम के प्रति दृढ व समर्पित रहे | ऐसे ही एक शख्स आदरणीय श्री जगदीश ढ़ौंडियाल जी है जिन्होंने अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया। 

रागों की पूरक जानकारी, हारमोनियम सहित कई वाद्ययंत्रों पर पकड़, नृत्य की हर शैली के पारखी वेद सम्मत गूढ़ ज्ञान के धनी, उत्तराखंड की लोक संस्कृति के प्रखर ध्वजवाहक, बहुमुखी कलाओं से परिपूर्ण व कई गरिमामयी पुरुस्कारों से सम्मानित जीवन के अठहत्तर 78 बसंत देख चुके ढौंढियाल जी सरकार की अनदेखी के चलते आज गुमनामी केअंधेरे में जीने को मजबूर हैं। 



पंडित जगदीश ढ़ौंडियाल जी का जन्म उत्तराखंड में हुआ उनका पैतृक गांव दिवाली नजदीक बैजरो जनपद पौड़ी गढ़वाल  हैं |आपने सुप्रसिद्ध जयपुर घराने से कत्थक में गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप शिक्षा ग्रहण की है | आपके गुरु श्री हजारीलाल जी थे | श्री हजारीलाल जी की लगभग आठ पीढ़ियों से संगीत में सुर साधना चल रही थी | पंडित जी लगभग पांच - छै: दशक से संगीत साधना में है | जीवन के शुरुआती दौर में उन्होंने उस विधा को अपनाया जिस पर उस समय में सोचना उत्तराखण्ड के कलाकारों के लिए दूर की कौड़ी था | आज भी कत्थक के क्षेत्र में पेशेवर कलाकार के रूप में  उनके समान उत्तराखण्ड से संभवतः कोई  नहीं है | 

श्री कृष्ण भगवान ने संगीत के बारे में अर्जुन से कहा था कि- "वेदानाम सामवेदो अस्मि |" लेकिन संगीत के क्षेत्र में ढ़ौंडियाल जी की कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं है | आप राग - रागनियों और तालों की विस्तृत जानकारी रखते हैं साथ ही ढ़ोल सागर के भी विद्वत जानकार हैं | आपकी हायर सैकेंड़री तक की शिक्षा दिल्ली में हुई है |  हायर सैकेंड़री शिक्षा 1961-62 में प्राप्त कर ली थी | उत्तराखण्ड के लोकगीतों पर भी आपने काफी काम किया है | सन 1960-70 के दशक में आपके गीतों का प्रसारण दिल्ली रेडियो स्टेशन से होता था | उस दौर में लगातार 8 साल रेडियो पर गीत गाये जब मनोरंजन का एकमात्र सुलभ साधन रेडियो ही था या फिर विभिन्न क्षेत्रों की रामलीलाओं का दौर होता था | तब देश में ब्लैक एंड ह्वाइट टेलीविजन का जमाना हुआ करता था  |


 

आप रंगमंच के भी एक बेहतरीन कलाकार है और उनकी इस  प्रतिभा का लोहा दुनिया मानती है | 14 साल की उम्र  में रामलीला में उनके द्वारा निभाये गये शेषनाग अवतारी लक्ष्मण का अभिनय आज भी उस दौर के लोग बखूबी याद करते हैं | तब "गढ़वाल प्रादेशिक सभा" - अंध विद्यालय पंचकुइयां रोड़ दिल्ली रामलीला मंचन का आयोजन करती थी | इसके अलावा विभिन्न कार्यक्रमों में लास्य तांडव, शिव तांड़व, भैरव तांडव, कृष्ण तांडव(नटवरी नृत्य), हनुमत तांडव नृत्य आदि में पारंगत होने के साथ साथ अभिनय भी करते थे | मशहूर दिवंगत अभिनेता देवानंद जी की फिल्मों के गानों की फरमाइश लोग आज भी उनसे करते हैं | इसके अलावा ढ़ौंड़ियाल जी द्वारा हिंदी के सुप्रसिद्ध रचनाकार श्री जयशंकर प्रसाद जी की कालजयी कृति 'कामायनी' के लगभग ढ़ाई हजार एपिसोड का निर्देशन भी किया गया है |

इतनी प्रतिभा के धनी कलाकार की उत्तराखण्ड संस्कृति विभाग ने अब तक अनदेखी की हुई है। उत्तराखंड संगीत जगत में चार चांद लगाने वाले ढ़ौंडियाल जी को विभाग की ओर से अब तक कोई पेंशन इत्यादि नही मिलती है | हिंदी व गढ़वाली गीतों के गायन में भी ढ़ौंडियाल जी को महारत हासिल है | दर्जी दिदा फेम गायिका उत्तराखण्ड की स्वर कोकिला वरिष्ठ गायिका श्रीमती रेखा धस्माना उनियाल जी ने भी उनके गीतों को अपनी आवाज दी है | उनके कई गढ़वाली गीत उस दौर में बहुत लोकप्रिय हुए | जिनमें 'बिजी जावा बिजी हे.... मोरी का नारैण', 'ऊँचा हिमालै का मूड' आदि गीत आज भी सुनने वालों को रोमांचित कर देते हैं |






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