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रामपुर तिराहा कांड के दोषी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ईश्वर ने दिया मृत्यु दंड

रामपुर तिराहा कांड के दोषी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ईश्वर ने दिया मृत्यु दंड

 

रामपुर तिराहा कांड के दोषी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ईश्वर ने दिया मृत्यु दंड 

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के सरंक्षक और उत्तराखंड के लोगों की हत्या के दोषी मुलायम सिंह यादव का सोमवार की सुबह निधन हो गया है। 82 साल की उम्र में यूरिन इन्फेक्शन के चलते वे 26 सितम्बर से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। 

उनके बेटे अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के ट्वीटर हैंडल पर जानकारी दी कि आज सुबह 8:16 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।  मुलायम सिंह यादव को 22 अगस्त को सांस लेने में तकलीफ और लो ब्लड प्रेशर की शिकायत के बाद मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था, हालांकि उनकी तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था जिसके चलते उन्हें 1 अक्टूबर की रात को आईसीयू में शिफ्ट किया गया था, जहां एक डॉक्टरो का पैनल उनका इलाज कर रहा था। 

उत्तराखंड के लोगों में आज भी मुलायम सिंह यादव के प्रति है नफरत 

उत्तराखंड के लोग उत्तर प्रदेश से पृथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलनरत थे। 1994 में जब आंदोलन तेजी पकड़ रहा था उस समय उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ही थे। उत्तराखंड के हर जन मानस में आंदोलन आग की तरह फ़ैल गया था जिससे उस समय कांग्रेस की केंद्र सरकार भी दवाब में थी। इस आंदोलन को कुचलने के लिए ही केंद्र सरकार ने मुलायम सिंह के साथ मिलकर साजिस रची।  1994 में जब उत्तराखंड आंदोलनकारी खटीमा में प्रदर्शन कर रहे थे तो उत्तरप्रदेश की सरकार ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पुलिस को गोली चलाने के आदेश दिए थे जिसमें कई आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। और फिर 2 सितंबर 1994 को मसूरी में आंदोलन कर रहे निहत्थे लोगों पर बिना पूर्व चेतावनी के पुलिसकर्मियों द्वारा गोलियां बरसाई जिसमें 6 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे।

इन दोनों कांडों के बाद पूरे उत्तराखंड के जनमानस में आक्रोश फ़ैल गया और उन्होंने मुलायम सिंह सरकार के खिलाफ आंदोलन और तेज कर दिया। आंदोलनकारियों ने 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली के जंतर मंतर पर विशाल धरना प्रदर्शन करना तय किया। इसके लिए देहरादून से दिल्ली कूच करने का फैसला किया गया लेकिन मुलायम सरकार ने पहले से तय कर लिया था कि किसी भी कीमत पर आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने से रोकना है। 

आंदोलनकारियों को रोकने के लिए पहले नारसन बॉर्डर पर पुलिस ने नाकेबंदी की लेकिन आंदोलनकारियों के आगे पुलिस बेबस नज़र आई। इसके बाद आंदोलनकारियों का काफिला दिल्ली की और आगे बढ़ा तो मुज़फ्फर नगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस ने उसे छावनी में तब्दील कर दिया था। 

मुलायम सरकार के निर्देशों का पालन करने के लिए पुलिस ने आंदोलनकारियों को रामपुर तिराहे पर रोक दिया। इनमे युवा, बृद्ध,बच्चे और महिलाएं थी जिन्होंने पुलिस का पुरजोर विरोध किया जिससे पुलिस ने बड़ी निर्ममता के साथ पूर्व नियोजित तरीके से उनपर लाठी भांजना और गोली चलाना शुरू कर दिया जिससे वहां भगदड़ मच गई और आंदोलनकारी अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे। इस गोली बारी में 7 आंदोलनकारी शहीद हो गए लेकिन मुलायम सरकार पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं रुकी उन्होंने वहां मौजूद महिलाओं के साथ भी घिनौना कृत्य किया जिसकी पूरे देश में निंदा हुई। लेकिन हमारे देश के कानून ने आज तक इस हत्याकांड के दोषियों मुलायम सिंह, बुआ सिंह को आज़ाद घूमने दिया जिसके लिए उत्तराखंड के लोगों में आज भी उनके प्रति गुस्सा और नफरत हैं। 

वो पिछले 28 सालों से न्याय के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं और 2 अक्टूबर को आज भी काला दिवस के रूप में मनाते हैं। उन्हें मलाल है कि हमारे लोगों के हत्यारे मुलायम को सजा नहीं हो पाई पर आज उनके चेहरों पर एक संतोष है कि देश की न्यायव्यवस्था जो नहीं कर पाई वो ईश्वर ने कर दिखाया। 

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