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मकर संक्रांति को भगवान आदिबद्री के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुले

मकर संक्रांति को भगवान आदिबद्री के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुले


कर्णप्रयाग: उत्तराखंड के जनपद चमोली में स्थित आदिबद्री मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। कपाट खुलते ही बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने भगवान आदिबद्री के दर्शन कर खुद को सौभाग्यशाली बताया। कपाटोत्सव के शुभ अवसर पर स्थानीय विधायक अनिल नौटियाल और पूर्व भाजपा जिला महामंत्री समीर मिश्रा भी मौजूद रहे।

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में 4 बजे मंदिर के मुख्य पुजारी चक्रधर थपलियाल ने पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना और अभिषेक पूजा संपन्न करवाई। जिसके बाद भगवान नारायण का श्रृंगार, भोग और पंच ज्वाला आरती के बाद मंदिर में 6 बजे से दर्शनों की प्रक्रिया शुरु कर दी गई। जिसके बाद महिला मंगलदलों ने शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम से मंदिर परिसर को भक्तिमय बना दिया। इस दौरान मंदिर परिसर में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। 

आदिबद्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही सात दिवसीय शीतकालीन पर्यटन एवं सांस्कृतिक विकास मेला भी शुरू हो गया।  मेले का उद्घाटन मंदिर परिसर में बने मंच पर मुख्य अतिथि द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। पर्यटन विभाग द्वारा पहली बार शीतकालीन धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मंदिर और बाजार क्षेत्र को आकर्षक ढंग से सजाया गया था। रात्रि के समय आदिबद्री धाम का पूरा क्षेत्र रौशनी से जगमगा रहा है। मंदिर की इस भव्य अलौकिक छटा को देखकर भक्त और पर्यटक मंत्रमुग्ध हैं। 

भगवान आदिबद्री धाम के कपाट साल में पौष माह के लिए बंद रहते हैं । पिछले 15 दिसंबर को मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे। आदिबद्री मंदिर भगवान नारायाण को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के ही अवतार थे। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान नारायण की काले पत्थर की मूर्ति है। धार्मिक मान्यता के अनुसार आदिबद्री को ही भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु बद्रीनाथ जाने से पहले सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों युगों के दौरान आदिबद्री में निवास करते थे। 

आदिबद्री धाम कर्णप्रयाग से मात्र 17 किलोमीटर और उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 


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