लेखक- भीष्म कुकरेती
पात्र-सूत्रधार -खरगोश,भेड़िया
सूत्रधार - एक खरगोश न अपर रक्षा हेतु कन भेड़िया तै धोखा दे ये नाटक म हम दिखला। एक खरगोश एक पख्यड़ बिटेन ऊंदो आणु छौ कि तौळ बिटेन एक भेड़िया आंद दिखे।
खरगोश (स्वतः ) - बूड बुड्यों बुलण च खरगोश का धर्म घास पौधा जलड़ खाण च अर भेड़ियों द्वारा पशु खाण धर्म च। किन्तु प्रत्येक पशु तै अपर रक्षा करण पैलो कर्तव्य च। भेड़िया से बचणो कुछ सुचदो। ..
भेड़िया (स्वतः ) - आज खरगोश का शिकार अर चार पांच दिनों कुण भोजन बान डबखणो अवकाश।
खरगोश (शीघ्रता दिखैक - अरे पशु भाइयो ! पशु भाईयो ! स्यु आकाश स्यूं तौळ आणु च। सावधान आकाश तौळ आणु च। अरे भेड़िया भाई ! सावधान आकाश तौळ आणु च। तुम पख्यड़ क पत्थर पकड़ो अर धीरे धीरे मथि सरको। धीरे धीरे सरको। मि तौळ बिटेन द्वी टिक्वा लांदो तो हम द्वी टिक्वा क सहारा से बच जौला।
सूत्रधार - भेड़िया मूर्ख जि छौ वो पख्यड़ो पत्थर पकड़ी धीरे धीरे मथि सरकणो छौ अर खरगोश फटाफट तौळ भगणु छौ।
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भेड़िया - अरे खरगोश भाई ! आ दौड़ी आ ! पख्यड़ पकड़िक मि तक ग्यों। असहय तक लग गे। आ शीघ्र आ टिक्वा लेक आ।
भेड़िया (स्वतः ) अब आकाश तौळ आवो तो आवो मे से पत्थर नी पकड़ेणु च। मि तौळ जान्दो।
सूत्रधार भेड़िया रड़दो रड़दो , घुसे घुसेक एक गदन गिर गे। किन्तु खरगोश नि दिखे। पुनः खरगोश भगद भगद एक ताल्व का छल आयी तो पैथर पैथर भेड़िया बि आयी। तालाब म चन्द्रमा की छाया पड़नी छे।
खरगोश (स्वतः ) - दान सयाणो बुल्युं च बल अपर रक्षा कुण धोखा या झूठ सब सही हूंद।
खरगोश (तीब्र ध्वनि से ) - अहा ! तालाब म गोळ पनीर च। स्वादिष्ट पनीर च। अर्थात यु जल अम्र जल च यदि हम ये तालाब क पाणि प्याला तो हम अम्र ह्वे जौला।
भेड़िया - अच्छा तालाब क जल पीण से हम अम्र ह्वे जौला ?
खरगोश - हां ! एक कार्य कारो। तुम पाणी प्यावो अर जल समाप्त करणो प्रयत्न कारो। मि तब तक अन्य पशुओं तै भगाइक आंदो। निथर तौन सब जल पे लीण।
भेड़िया - भलो भलो ! मि जल पीण शुरू करदो तुम पशुओं तै भगाइक आवो।
खरगोश - सही सही। मि पक्षों तै भगाणो जाणु छौं तुम जल पीण बंद नि कर्यां।
सूत्रधार -खरगोश भेड़िया तै दिखा देकि भाज गे अर भेड़िया पाणि पीण म व्यस्त ह्वे गे। बिंदी पाणि पीण से भेड़िया क पुटुक उगै गे अर वो मोर गे। खरगोश कुण सदा हेतु चैन ह्वे गे।
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