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भगवान नरसिंह के रौद्र रूप को शांत करने वाली नारसिंही देवी (निकुंबला देवी) की पौराणिक कहानी

नारसिंही देवी

पंडित अनिल पुरोहित "गुरु जी"

(श्री श्री कालिशिला शक्ति पीठम)

नारसिंही देवी का ही एक नाम प्रत्यंगिरा देवी भी है। इन्हें ही निकुंबला देवी के नाम से भी जाना जाता है। दशानन रावण की कुल देवी भी प्रत्यंगिरा देवी थीं। इनका सर शेर का और बाकि शरीर नारी का है। प्रत्यंगिरा देवी शक्ति स्वरूपा देवी हैं। यह देवी विष्णु, शिव, दुर्गा का एकीकृत रूप है।

यह बात उस समय की है जब भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और लोगों को हिरण्यकश्यप के अत्याचार से मुक्ति देने के लिए नरसिंह अवतार लिया था। श्रीहरि विष्णु का यह अवतार अत्यंत रौद्र और क्रोधी था। हिरण्यकश्यप के वध के पश्चात भी भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ और वे अत्यंत रौद्र रूप में आ गए। विनाश की आशंका से डर कर, सभी देवता भगवान भोलेनाथ के पास जा पहुंचे। उन्होंने वहां भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे भगवान नरसिंह का क्रोध शांत करें। तब भोलेनाथ ने शरभ का रूप धारण किया जो आधा पक्षी और आधा सिंह था। तब भगवान शिव का अवतार शरभ और विष्णु अवतार नरसिंह के बीच महायुद्ध शुरू हो गया।

दोनों काफी समय तक बिना निर्णय के लड़ते जा रहे थे। भगवान शिव और भगवान् विष्णु की शक्तियों का महायुद्ध धीरे धीरे इतना उग्र हो गया था कि, सृष्टि पर प्रलय का संकट मंडराने लगा था। ऐसे में इन दोनों महाशक्तियों को रोकना असम्भव लग रहा था। तब देवताओं ने आदिशक्ति, महाशक्ति योगमाया दुर्गा का आवाहन किया। क्योंकि इन दो शक्तियों को रोकने की क्षमता महाशक्ति दुर्गा के पास थी।

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महाशक्ति ने आधा सिंह और आधा मानव रूप लेकर अवतार धारण किया, और अत्यंत तीव्र वेग और तीव्र हुंकार के साथ उनके बीच में प्रकट हो गई,ये देख दोनों स्तब्ध हो गए और उनके बीच का युद्ध समाप्त हो गया।

देवी ने दोनों के क्रोध आवेश और रौद्रता को अपने में शामिल करके दोनों को शांत कर दिया। इस प्रकार नरसिंह को शांत करने वाली देवी माता का यह रूप नारसिंही देवी के नाम से जगत में विख्यात हुआ। प्रत्यंगिरा देवी भगवान शिव और विष्णु की संयुक्त विनाशकारी शक्ति को अपने अंदर धारण करती है। प्रत्यंगिरा देवी को अघोर लक्ष्मी, सिद्ध लक्ष्मी, पूर्ण चंडी और अथ्वर्ण भद्रकाली के नाम से भी पुकारा जाता है ।

श्री नृसिंह देव जी , जो भगवान विष्णु के अवतार थे। कहा जाता है कि जब उन्होंने राक्षसों को मारकर उनका रक्त पिया था, तब उसके कारण उनके शरीर में काफी क्रोध आया था। उसके बाद वह बहुत हाहाकार मचाने लगे , परंतु उसमें शिव को भी अपयश आया । जैसे की शिव ने देखा भगवान नृसिंह शांत नहीं हो रहे हैं , भगवान शिव जी ने शरभ नामक एक महाकाय पक्षी का अवतार धारण किया । इस पक्षी के एक पंख पर शूलिनी देवी विराजमान थी और दूसरे पंख पर प्रत्यंगिरा देवी विराजमान थी । इस शिव के अवतार को श्रीशरभेश्वर कहा जाता हैं।  परंतु , श्री शरभ और श्री शूलिनी देवी भी नृसिंह जी को शांत करने में अपयशी हो गई। तब शरभ जी के एक पंख से प्रत्यंगिरा देवी अलग हुई और उसने नृसिंही देवी रूप धारण किया । और उस रूप में उसने भगवान नृसिंह जी को शांत किया । उस समय और एक शक्ति निर्माण हुई उसे गंड भेरुण्डा नाम से कहा जाता हैं। यह एक महाभयंकर दैवीय शक्तियां थी । श्रीनृसिंह श्रीशरभ श्रीप्रत्यंगिरा इसको ट्रिनिटी कहा जाता हैं ।

श्रीप्रत्यंगिरा देवी का अनुभव आना अथवा उनका दर्शन होना काफी बड़ी बात कही जाती हैं। वह अपने सिंह मुख से अनेको कठनाइयों को हटा देती हैं। इसका बीज मंत्र हैं ” क्षं ” ।

एक कहानी के अनुसार श्री शरभेश्वर भगवान का अहंकार तोड़ने के लिए इस देवी का निर्माण हुआ ऐसा भी कहा हैं । श्रीप्रत्यंगिरा देवी में काफी प्रकार हैं । जैसे की , विपरीत प्रत्यंगिरा देवी , बगला प्रत्यंगिरा , काली प्रत्यंगिरा आदी.

प्रत्यंगिरा देवी , साधक के शरीर के अंगों में बस जाती हैं। इसलिए उसे प्रत्य + अंग ऐसा कहा हैं। इसकी साधना से शरीर में काफी बदलाव होकर , साधक के आसपास के लोग उसे एक उच्च मान देते हैं और उसका एक वजन प्रतिष्ठा बढ़ती हैं , शत्रु भी नरम रहते हैं।  नियमित साधना से शरीर की ओरा तेजमय बनती हैं।  नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव जल्दी महसूस होना शुरू होता हैं ।

श्री नृसिंह देव जी , जो भगवान विष्णु के अवतार थे , जब उनोने राक्षसों को मारकर उनका रक्त पिया था , तब उसके कारण उनके शरीर में काफी क्रोध आया था। उसके बाद वह बहुत हाहाकार मचाने लगे , परंतु उसमें शिव को भी अपयश आया । जैसे की शिव ने देखा भगवान नृसिंह शांत नहीं हो रहे हैं , भगवान शिव जी ने शरभ नामक एक महाकाय पक्षी का अवतार धारण किया । इस पक्षी के एक पंख पर शूलिनी देवी विराजमान थी और दूसरे पंख पर प्रत्यंगिरा देवी विराजमान थी । इस शिव के अवतार को श्रीशरभेश्वर कहा जाता हैं।  परंतु , श्री शरभ और श्री शूलिनी देवी भी नृसिंह जी को शांत करने में अपयशी हो गई। तब शरभ जी के एक पंख से प्रत्यंगिरा देवी अलग हुई और उसने नृसिंही देवी रूप धारण किया । और उस रूप में उसने भगवान नृसिंह जी को शांत किया । उस समय और एक शक्ति निर्माण हुई उसे गंड भेरुण्डा नाम से कहा जाता हैं। यह एक महाभयंकर दैवीय शक्तियां थी । श्रीनृसिंह श्रीशरभ श्रीप्रत्यंगिरा इसको ट्रिनिटी कहा जाता हैं ।

श्रीप्रत्यंगिरा देवी का अनुभव आना अथवा उनका दर्शन होना काफी बड़ी बात कही जाती हैं। वह अपने सिंह मुख से अनेको कठनाइयों को हटा देती हैं। इसका बीज मंत्र हैं ” क्षं ” ।

एक कहानी के अनुसार श्री शरभेश्वर भगवान का अहंकार तोड़ने के लिए इस देवी का निर्माण हुआ ऐसा भी कहा हैं । श्रीप्रत्यंगिरा देवी में काफी प्रकार हैं । जैसे की , विपरीत प्रत्यंगिरा देवी , बगला प्रत्यंगिरा , काली प्रत्यंगिरा आदी.

प्रत्यंगिरा देवी , साधक के शरीर के अंगों में बस जाती हैं। इसलिए उसे प्रत्य + अंग ऐसा कहा हैं। इसकी साधना से शरीर में काफी बदलाव होकर , साधक के आसपास के लोग उसे एक उच्च मान देते हैं और उसका एक वजन प्रतिष्ठा बढ़ती हैं , शत्रु भी नरम रहते हैं।  नियमित साधना से शरीर की ओरा तेजमय बनती हैं।  नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव जल्दी महसूस होना शुरू होता हैं ।

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