गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषाओं पर दिल्ली में होगा गहन मंथन
नई दिल्ली: आगामी 2 एवं 3 अप्रैल 2022 को उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा पहली बार दो दिवसीय गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी भाषा का राष्ट्रीय सम्मेलन तथा पुस्तक मेले का आयोजन गढ़वाल भवन दिल्ली में किया जा रहा है जिसमें उत्तराखण्ड समेत देश के विभिन्न छेत्रों से कई साहित्यकार/भाषाविद भाग ले रहे हैं। दिल्ली में संस्थागत अपनी तरह का यह पहला आयोजन होगा।
गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषाओं का वर्षों पुराना इतिहास है व इन भाषाओं में साहित्य की अनेक विधाओं में पुस्तकों का भी भंडार उपलब्ध है जो देवनागरी लिपि में लिखी गई हैं यही नहीं बताया जाता है कि इसमें शब्दों का अथाह भंडार है जो अन्य किसी और भाषा में नहीं पर फिर भी अभी तक इसे संविधान की 8 वीं अनुसूचि में स्थान नहीं मिला है। यही इन भाषाओं के साहित्यकारों और भाषाविदों के लिए चिंतन का विषय है जिसपर वे वर्षों से कार्य कर रहे हैं और अब दिल्ली में इसके संवर्धन व जन चेतना जगाने के लिए गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।
भाषा को संविधान की 8 वी अनुसूची में शामिल कराना व मानकीकरण होगा मुख्य उद्देश्य
उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने बताया कि इस दो दिवसीय आयोजन में गढ़वाली- कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु एक ज्ञापन फ़ाइनल करने के साथ साथ इन भाषाओं के कुछ शब्दों का मानकीकरण भी किया जायेगा और जौनसारी भाषा के साहित्यकारों से गोष्ठी में यह जानने की कोशिश होगी कि जौनसारी भाषा सृजन की रफ़्तार क्या और कैसी है । इन भाषाओं के कुछ शब्दों के मानकीकरण पर देहरादून में एक गोष्ठी पर पहले ही चर्चा हो चुकि है बाकि कुछ शब्दों पर दिल्ली में चर्चा होगी।
मंच के समन्वयक अनिल पंत के मुताबिक इस आयोजन में भाषा पर चर्चा के साथ साथ पुस्तक मेला भी लगाया जायेगा। आम जनता व साहित्य प्रेमी पुस्तक मेले में 2 अप्रैल 2022 प्रातः 10 बजे पहुंचकर अपनी पसंद के साहित्यकारों की पुस्तकों को खरीद सकते है लेकिन भाषा कार्यशाला सभागार में आम जनता का प्रवेश वर्जित है क्योंकि साहित्यकार और भाषाविद कार्यशाला में उक्त विषयों पर चर्चा करेंगे। लेकिन 3 अप्रैल 2022 को दोपहर 2 बजे से गढ़वाल भवन का मुख्य सभागार आम जनता के लिए खुला रहेगा जहां वे साहित्यकारों व भाषाविदों के साथ भाषा-साहित्य पर जनसंवाद कर सकेंगे। उन्होंने कहा की इस अवसर पर बरिष्ठ साहित्यकार श्री ललित केशवान, श्री रमेश घिल्डियाल, श्री रमेश हितैषी, और श्री सुखदेव दर्द की गढ़वाली पुस्तकों का लोकार्पण भी किया जायेगा।
उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती ने बताया कि हमें अअपनी व समाज की उन्नति के साथ भाषायी सरोकारों के प्रति भी सजग होना होगा। हम चाहे दुनियां के किसी भी कोने में रहें लेकिन अपनी भाषा के संरक्षण के लिए हमें कार्य करना ही होगा। मैं समझता हूं कि इस तरह के आयोजन हमारी नई पीढ़ी को अपने सरोकारों से जोड़े रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। हमें चाहिए की अब वो समय आ गया है जब हमें अपनी गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के प्रयास और तेज करने होंगे।
बता दें कि उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच वर्ष 2012 से महाकवि कन्हैयालाल डंडरिया साहित्य सम्मान, गढ़वाली-कुमाउनी भाषा शिक्षण कक्षाओं का आयोजन तथा गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी भाषाओं के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए निरन्तर आयोजन करता आ रहा है।
इस आयोजन में प्रमुख साहित्यकारों और भाषाविदों में धाद संस्था के संस्थापक श्री लोकेश नवानि, भाषाविद श्री रमाकांत बेंजवाल, श्रीमती बीना बेंजवाल,डॉ नंदकिशोर ढौंडियाल, डॉ हयात सिंह रावत,डॉ हेमा उनियाल, डॉ हरिसुमन बिष्ट समेत कई विद्वान शामिल होंगे। आशा की जानी चाहिए कि गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में जरूर स्थान मिलेगा। देखना यह भी होगा कि दिल्ली में लाखों की तादाद ने रहने वाले लोग और खासकर नई पीढ़ी इस भाषा सम्मलेन और पुस्तक मेले का कैसे आनंद लेते है।
इस आयोजन में प्रतिभाग करने वाले साहित्यकार, भाषाविद व समाजसेवी
3 टिप्पणियाँ
भौत बढिया सार्थक प्रयास, सबकु स्वागत
जवाब देंहटाएंनिरंतर गढ़वळि भाषा का संवर्धन का वास्ता सब्यूँ नै पीढ़ी थैं ऐथर आण व ल्याण चयेंद । भौत सा कवि अर गितारौं कु नौं शामिल नि कयूँ पर निश्वार्थ भौ से कार्य परें लग्यां राला । जय बद्री केदार बाबा जय माँ भगवती नंदा । जय भारत ।।
जवाब देंहटाएंउत्तराखंड से उतराखण्डी की पहचान हो, जैसे गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल को मिलाकर उतराखण्ड राज्य बना उसी तरह गढ़वाली कुमाऊनी के समान शब्दों के आधार पर उत्तराखंडी भाषा के लिए का किया जा सकता है।
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