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उत्तराखंड के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है बसंत पंचमी-बिना मुहर्त के संपन्न होते है शुभ कार्य



उत्तराखंड के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है बसंत पंचमी-बिना मुहर्त के 

संपन्न होते है शुभ कार्य  

माघ माह की शुक्ल पंचमी को सरस्वती पूजा का विधान है और इसी दिन से ऋतुओं के राजा बसंत का भी आगमन होता है। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती कमल पर विराजमान होकर वीणा और पुस्तक लेकर अवतरित हुई थी इसीलिए इस दिन को उनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। मां सरस्वती को विद्या और संगीत की  देवी माना गया है जिन्हें बागेश्वरी, शारदा, वीणा देवी, हंसवाहिनी आदि नामों से जाना जाता है। 

उत्तराखंड के अधिकांश लोग कृषक हुआ करते थे और उन्हें प्रकृति से बहुत लगाव रहता है ।  यहां के लोगों के जीवन में  ये दिन विशेष महत्त्व रखता हैचूंकि इस ऋतू में प्रकृति चारों और खिली हुई और बसंती रूप लिए रहती है और चहुँ और फसलें भी लहलहा रही होती है। सरसों के खेत और गेहूं की बालियां खेतों को पीले रंग से सजा देती है वहीं हर ओर विभिन्न  रंगों के पुष्प खिले होते है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने रंगोली सजा रखी हो। अच्छी फसल की खुशी में लोग इस दिन मां सरस्वती को गुलाल, रोली, अक्षत, दीप, धूप, पीले फूल,पीले वस्त्र आदि चढ़ाकर पूजा अर्चना करके अपने घरों के मुख्य द्वार पर गोबर  के साथ गेंहू की बालियां लगाते है और डेल्ही पर पीले पुष्प लगा मां से विद्या व समृद्धि की कामना करते हैं। इस दौरान संस्कृति के वाहक ढोल दमाऊं बजा कर मां सरस्वती का आह्वान करते हैं और सभी लोग उन्हें अनाज रुपी दक्षिणा देकर विदा करते हैं। इस दिन गांव के स्त्री पुरुष ख़ुशी में सामूहिक रूप से चौंफला नृत्य भी करते हैं। आज ही के दिन बैल और हल की पूजा कर खेतों को जाता जाता है और स्वालि (पूरी) पकोड़ी व अन्य पकवान खिलाए जाते हैं। इस दिन से ही उत्तराखंड में रंगों के त्यौहार होली का भी शुभारंभ हो जाता है। माना जाता हैं कि आज के दिन गंगा स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। 

कहते हैं इस दिन सूर्य उत्तरायण में होने से उसकी किरणें धरती पर पड़ते समय पीले रंग में दिखाई देती है वहीं व्रहस्पति गुरु को भी पीला रंग अति प्रिय है इस कारण इस दिन पीले वस्त्रों को धारण किया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी भी कहा गया है। इसे सृष्टि से भी जोड़ा गया है। कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल छिड़का।  पृथ्वी पर जल पड़ते ही वृक्षों के बीच से एक अद्भुत सुंदरी प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा और एक में पुस्तक थी एवं अन्य हाथ में माला थी। उन्हें देखकर ब्रम्हा जी ने उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया उनके ऐसा करते ही संसार के समस्त जीवों को वाणी प्राप्त हो गई। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें वाणी सरस्वती नाम दिया। ऋग्वेद में भी वाणी सरस्वती का वर्णन मिलता है। 

मां सरस्वती की जन्मोत्सव बसंती पंचमी के दिन को सभी प्रकार से शुभ माना गया है इसलिए इस दिन कोई भी शुभकार्य बिना मुहर्त के किया जाता है। चाहे वो शादी व्याह हो , मुंडन संस्कार हो, यगोपवित्र संस्कार, बच्चों के हाथ में कलम पकड़ाकर विद्या की शुरुआत हो। इसी दिन नई फसल को भी मां सरस्वती को भेंट स्वरुप चढाने का भी प्रावधान है। कहा जाता है कि इस दिन यदि मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा की जाए तो उनकी कृपा भक्तों पर बरसती है जिससे उन्हें शिक्षा, कला, संगीत के क्षेत्र में आशातीत सफलता मिलती है इसलिए इस दिन दिन सरस्वती वंदना और उनसे जुड़े मंत्रो का जाप करना चाहिए। 





    


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