आधुनिक जीवन शैली के चलते पहाड़ी रसोईघरों से लुप्त हो गया है
भड्डू
आप सभी ने तरह- तरह के उत्तराखंडी व्यंजनों के विषय में तो जाना है कि वो बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के साथ साथ हमारे स्वास्थ्य को भी दुरस्त बनाये रखते है। इन व्यंजनों को स्वस्दिष्ट बनाने के लिए उत्तराखंड में विशिष्ट प्रकार के बर्तनों का उपयोग किया जाता है जो समय के साथ लुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसा ही एक बर्तन भड्डू है जिसमें बनाई दाल और शिकार के टेस्ट को लोग वर्षों तक नहीं भूलते।
पहले पहल उत्तराखंड के लोगों का जीवन यापन कृषि पर ही निर्भर था और वो जलवायु व मौसम के हिसाब से अधिकतर मोटे अनाज की ही खेती करते थे। उस समय प्रत्येक घर में भोजन चूल्हे में ही बनाया जाता था और भोजन पकाने के लिए तांबे और कांसे के बर्तनों का अधिक उपयोग किया जाता था जो कि स्वास्थ्य के लिहाज़ से भी ठीक थे। भोजन के लिए पहाड़ में दाल भात का नियम अधिक था जो आज तक बदस्तूर जारी है। दालें सभी लोग अपने खेतों की ही इस्तेमाल करते थे। पहाड़ी दालों में गैथ, उड़द, राजमा, रेंस, तोर, मसूर, सोयाबीन भट्ट इत्यादि चलन में थी। कहते हैं पहाड़ी खाने के बहुत शौक़ीन होते हैं और वे इन दालों को भी इस तरह बनाते थे कि खाने में आनंद आ जाए। अधिकतर दालों को बनाने के लिए भड्डू का प्रयोग किया जाता था।
दिखने में कैसा और क्या गुण है भड्डू के
कांसे और तांबे की धातु से निर्मित भड्डू दिखने में डेकची की तरह दिखाई देता है। यह निचे से गोलाकार और ऊपर से सुराई नुमा और मोटी परत लिए होता है इसलिए इसे गर्म होने में थोड़ा समय लगता है। इसे इस्तेमाल करने का तरीका भी बहुत ही अजीब था जो आजकल के बच्चों को सोचने पर मजबूर करता है। भड्डू में पानी-दाल और मिर्च मसाले डालकर चूल्हे में चढाने से पहले राख को गीला भड्डू को बाहर से लेप दिया जाता है फिर चूल्हे में चढ़ाकर ऊपर से अच्छी तरह ढक कर मीठी आंच पर दाल को पकने के लिए छोड़ दिया जाता है। दाल को पकाने में ये काफी समय लेता है लेकिन जब दाल पककर तैयार होती है तो आस पड़ोस के लोगों को भी पता चल जाता है की फलां के घर में किसकी दाल बनी है।
यही नहीं यदि आप मांसाहारी हैं तो इस पर बनाये चिकन मट्टन के स्वाद को आप जीवनपर्यन्त याद रखेंगे। इसकी मोती परत के कारण वस्तु अधिकतर भाप में पकती है जिसके कारण उसके पौष्टिक तत्व नष्ट नहीं होते और स्वाद बढ़ जाता है।
आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूट गया है भड्डू
समय के साथ आधुनिक जीवन शैली में रसोई में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों ने भी नया रंग रूप लिया है। मनुष्य की व्यस्तता के कारण वो हर कार्य अब फटाफट करना चाहता है और यही कारण है कि अब भड्डू की जगह प्रेसर कूकर ने ले ली है जो चंद मिनटों में ही भोजन को तैयार कर देता है। आज मनुष्य इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है कि उसे फुर्सत के क्षणों का अहसास ही नहीं है और भड्डू अब एक कोने में दम तोड़ने को मजबूर है।
©द्वारिका चमोली
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