उम्मीद
सोचा था एक नई आशा का
दीप जलाएगा साल दो हज़ार बीस
पर बसंत पे यौवन आते आते
टूटने लगी हमारी सारी उम्मीद।
एक जीवाणु न जाने कहाँ से आया
पूरे विश्व में उसने कहर बरपाया
सबके शक के घेरे में था चीन
टूटने लगी हमारी सारी उम्मीद।
चहुँ ओर भीड़ का लगा था अम्बार
अनेक अफवाहों से सजा था बाजार
अपने ही अपनों पे उतार रहे थे खीज
टूटने लगी हमारी सारी उम्मीद।
नौकरिया
छीनी व्यापार पे लगा दिया ताला
नेताओं
और अस्पतालों ने किया गड़बड़झाला
गरीबों
के बुझ गए चूल्हे उड़ गई थी नींद
टूटने लगी हमारी सारी उम्मीद।
एक एक कर बिछड़ रहे थे सबके अज़ीज़
ऐसे में स्वास्थ्य कर्मी और पोलिस बने मीत
फिर भी बिखर रहे थे रिश्ते मिट रही थी रीत
टूटने लगी हमारी सारी उम्मीद।
अन्धविश्वास की जड़ें जमने लगी थी
हर तरफ पाप की नहरें खुदने लगी थी
गूँज रहे थे देश को तोड़ने वाले गीत
टूटने लगी हमारी सारी उम्मीद।
इस विपदा
में एक लहर ऐसी भी चली
लौटा लाई
अपनों को गाँवो की तस्वीर बदली
मनुष्य ने
संयम रख अपने डर पर पाई जीत
शायद नव वर्ष
पूरी करे हमारी सारी उम्मीद।
©द्वारिका
चमोली
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