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विधायक बृजभूषण गैरोला ने गैरसैंण विधानसभा में उठाया गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं का सवाल

 विधायक बृजभूषण गैरोला ने गैरसैंण विधानसभा में उठाया गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं का सवाल


देहरादूनः गैरसैंण में 19 अगस्त से आहूत विधानसभा सत्र में डोईवाला से भाजपा विधायक श्री बृजभूषण गैरोला ने भाषा मंत्री श्री सुबोध उनियाल से अपने लिखित तारांकित प्रश्न संख्या 2 के माध्यम से जानना चाहा कि क्या उत्तराखण्ड सरकार गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनूसूची में शामिल करने हेतु विधानसभा से प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार को भेजने पर विचार कर रही है? 

जिसके लिखित जवाब में भाषा मंत्री ने बताया कि समय-समय पर प्रदेश सरकारों की तरफ से केन्द्र सरकार को पत्र प्रेषित किये गए हैं तथा भारत सरकार जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सचेत है। 

इसी प्रश्न के दूसरे खण्ड में विधायक श्री बृजभूषण गैरोला ने पूछा कि क्या यह सत्य है कि कभी गढ़वाली, कुमाउनी भाषायें राजाओं के समय में राजभाषा  रही हैं? 

इसके जवाब में मंत्री जी की तरफ से बताया गया कि कह नहीं सकते तथापि पहले राजा रहे हैं।

विधायक श्री बृजभूषण गैरोला ने प्रश्न के तीसरे खंड में पूछा कि क्या प्रदेश सरकार गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु सदन में प्रस्ताव रखने पर विचार कर रही है। 

इसके लिखित जवाब में मंत्री ने बताया कि अभी सरकार का ऐसा कोई विचार नहीं है।

साथ ही श्री गैरोला ने पूछा कि यदि हां तो कब तक? (मतलब अगर सरकार गढ़वाली और कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजने पर विचार करी है तो कब तक भेजा जायेगा? )  इसके जवाब में बताया गया कि उपरोक्तानुसार। मतलब उक्त जवाब के हिसाब से।

विधायक द्वारा फिर पूछा गया कि अगर नहीं तो क्यों? मतलब अगर प्रदेश सरकार उक्त प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है तो इसके क्या कारण हो सकते हैं?  तो सरकार की तरफ से बताया गया कि प्रश्न नहीं उठता। मतलब सरकार गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रतिबद्ध है। 

उपरोक्त तारांकित प्रश्न पर अगर सदन में चर्चा होती तो भाषा मंत्री लिखित जवाब के अलावा चर्चा के दौरान मौखिक रूप से भी विधायक द्वारा पूछे गये सवालों संबधी जवाब देते। ऐसा अक्सर तारांकित प्रश्न के जवाब में होता है कि विधानसभा अध्यक्ष सवाल पूछने वाले विधायक को अपना सवाल पढ़कर बताने के लिए कहतें हैं तथा उस समय संबधित विभाग का मंत्री या राज्य मंत्री सदन में जवाब देने के लिए उपस्थित होते हैं तथा विधायक द्वारा इच्छित जानकारी का जवाब देते हैं और वह सदन की कार्यवाही में अंकित होता है। जो कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाता है। लेकिन सुनने में आया कि उस दिन सदन की कार्यवाही बार-बार बाधित होने के कारण उक्त प्रश्न पर चर्चा नहीं हो सकी। 

कुल मिलाकर विधायक श्री बृजभूषण गैरोला ने इस प्रश्न के माध्यम से गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की वर्षों पुरानी मांग को पुर्नजीवित कर दिया है। अक्सर सामाजिक व राजनैतिक हलकों में भाषा को एक नीरसतापूर्ण विषय माना जाता है। अधिकांश संगठन व समाज का बड़ा तपका गीत-संगीत और नाच गाकर ही समझता है कि हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं। जब कि भाषा बचेगी तभी संस्कृति भी बचेगी और तभी उस समाज की पहचान भी बची रहेगी। 

अब सवाल यह भी है कि प्रदेश सरकार सदन में प्रस्ताव लाकर उस पर चर्चा करने के बाद केन्द्र सरकार को अपनी संस्तुति क्यों नहीं भेजना चाहती है? जब कि दशकों से गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठ रही है। हाल के वर्षों में भी कई संगठनों द्वारा केन्द्र सरकार को कई ज्ञापन व प्रदेश सरकार को भी ज्ञापन सौंपे जा चुके हैं।

उत्तराखण्ड सरकार के वर्तमान भाषा मंत्री श्री सुबोध उनियाल स्वयं भाषा प्रेमी हैं और समय-समय पर उन्होंने मंचों से तथा उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के प्रतिनिधि मण्डल को भी गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रस्ताव आदि पर सकारात्मक पहल करने का संकेत दे चुके हैं। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी समय-समय पर अपने भाषणों में क्षेत्रीय भाषाओं के पक्ष में बात करते रहते हैं। अभी हाल ही में  15 अगस्त, 2025 को लालकिले से भी मोदी जी ने अपने उद्बोधन में स्थानीय भाषाओं का संरक्षण करने व इन भाषाओं के प्रचार-प्रसार हेतु काम करने पर बल दिया। साथ ही नई पीढ़ी को अपनी दुधबोली यानी अपनी मां की भाषा को सीखने व उससे जुड़े रहने की नसीहत दी। लेकिन जब प्रदेश सरकारें इन भाषाओं को संरक्षण देंगी और इन भाषाओं की बात को केन्द्र के पास सिद्दत से रखेंगी तभी इन भाषाओं के बोलने वालों, लिखने वालों व भाषाई सरोकारों पर काम करने वाले लोगों का प्रयास फलीभूत होगा। तथा उत्तराखण्ड की दोनों प्रमुख भाषाओं को तभी केन्द्र सरकार द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की दिशा में पहल की जा सकेगी, जब प्रदेश सरकार इस दिशा में पहल करेगी। 

वर्षों से भाषा साहित्य के लिए काम करने वाले संगठन उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संरक्षक डॉ विनोद बछेती ने बताया कि डोईवाला से भाजपा के लोकप्रिय विधायक श्री बृजभूषण गैरोला ने सदन में गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं के सरोकारों पर सवाल पूछकर इन भाषाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। तथा भारत सरकार व प्रदेश सरकार की नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत जिसमें देशभर में प्राथमिक कक्षाओं में छात्र/छात्राओं को अपनी मातृ भाषा में शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया है। ज्ञातव्य हो कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली विगत 2016 से दिल्ली एनसीआर समेत श्रीनगर गढ़वाल, देहरादून, अल्मोड़ा, स्याळदे व इंग्लैंड में भी गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का संचालन करता आ रहा है। 

उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी ने बताया कि मंच ने समय-समय पर भाषा सम्मेलनों व कार्यशालाओं के माध्यम से मंच लगातार काम कर रहा है। गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु गृहमंत्री भारत सरकार व प्रधानमंत्री कार्यलय को कई ज्ञापन सौंप चुका है। उत्तराखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी तथा भाषा  मंत्री श्री सुबोध उनियाल को भी ज्ञापन सौंपकर व मुलाकात करके भी अनुरोध कर चुका है कि प्रदेश सरकार को सदन से प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार को भेजना चाहिए कि भारत सरकार गढ़वाली, कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु पहल करे। इस दिशा में प्रदेश सरकार की पहल ही हमारी भाषाओं को उनका मान व सम्मान दिला सकती है।

श्री ध्यानी ने बताया कि उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली वर्ष 2012 से महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान व विभिन्न सम्मान प्रदान करता आ रहा है व वर्ष 2016 से गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का संचालन करता आ रहा है। इससे पहले स्वर्गीय प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल ने वर्ष 2002 के दौरान अपने यूएई प्रवास के समय गढ़वाली, कुमाउनी प्रवासी बच्चों को गढ़वाली, कुमाउनी भाषा सिखाने के लिए विदेश में अनूठी पहल शुरू की थी। हाल तक स्वर्गीय बड्थ्वाल उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली से जुड़े रहे। 

कहने का मतलब यह है कि देश और दुनियां में हो रहे पलायान एवं बाजारवाद के प्रभाव से लोग अपनी भाषा, संस्कृति से विलग हो रहे हैं लेकिन कुछ लोग और संगठन ऐसे हैं कि जिन्होंने इस पीड़ा को वर्षों पहले भांप लिया था और लगातार इन भाषाओं के संरक्षण व प्रचार-प्रसार के लिए चुपचाप काम कर रहे हैं। विधायक श्री बृजभूषण गैरोला ने इन लोगों की आवाज बनकर भाषा प्रेमी लोगों के मन में विश्वास को और अधिक मजबूत किया है कि कभी न कभी प्रदेश सरकार इन भाषाओं की सुध लेगी तथा गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु पहल करेगी व विधानसभा से प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार को भेजेगी।

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