नई दिल्ली : विगत सप्ताह हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली और भाषा प्रयोगशाला श्रीनगर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में गढ़वाली भाषा के मानकों को तय करने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें जिसमें अनेकों साहित्यकारों के साथ साथ विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग किया। गढ़वाली भाषा की कार्यशाला से शोधार्थी अत्यंत उत्साहित थे। उन्होंने कहा कि हमने पहली बार गढ़वाली भाषा में इस तरह कि कार्यशाला का आयोजन होते देखा है। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन समय समय पर होते रहना चाहिए ताकि हम जैसे युवाओं को अपनी भाषा के प्रति आकर्षण बढे। वहीं अन्य प्रदेशों के शोधार्थियों ने गढ़वाली भाषा के गूढ़ शब्दों और साहित्य का बोध कराने के लिए आयोजकों का आभार जताया। इस आयोजन में देशभर से गढ़वाली भाषा के विशिष्ट भाषाविद् और साहित्यकार शामिल हुए। कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हमें नई पीढ़ी को अपनी भाषा सरोकारों से जोड़ना होगा। गढ़वाल विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यशाला की शुरूआत में उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी और भाषा प्रयोगशाला समन्वयक डॉ. अरुषि उनियाल ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा आयोजन के उद्देश्य पर अपनी बात रखी। ध्यानी ने बताया कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा श्रीनगर कार्यशाला से देश और विदेश में रहने वाले भाषा प्रेमियों को एक सन्देश देना है कि हमें गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु संगठित प्रयास करने होंगे। जब हमारी भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल होगी तभी रोजगार पूरक बनेगी और फिर किसी विधायक को गढ़वाली में शपथ लेकर दुबारा अन्य भाषा में शपथ नहीं लेनी पड़ेगी।
भाषा प्रयोगशाला समन्वयक डॉ. अरुषी उनियाल ने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि भविष्य में इस प्रकार की कार्यशालाओं का आयोजन होता रहे। ताकि नई पीढ़ी को अपने भाषाई सरोकारों से जुड़ने का मौका मिले। उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली ने जो पहल की है उसे आगे बढ़ना चाहिए। हमारी कोशिश रहेगी कि हम भाषा प्रयोगशाला के माध्यम से नई पीढ़ी को और सिद्दत से जोड़ पाएंगे। कार्यशाला में उपस्थित मुख्य अतिथि प्रो0 एम एस नेगी अधिष्ठाता छात्र कल्याण ने कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाओं से नई पीढ़ी को अपनी भाषा से जुड़ने का मौका मिलेगा। भाषा शंकाय की अधिष्ठाता प्रोफेसर मंजुला राणा ने कहा कि गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए अब आन्दोलन की आवश्यकता है। जहाँ-जहाँ भी गढ़वाली भाषाभाषी लोग हैं उन सबको एकजुट होकर गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की आवाज बनना होगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के नितन्तर प्रयास स्तुत्य हैं। आज हमारे विश्वविद्यालय में आयोजित इस दो दिवसीय कार्यशाला से नई पीढ़ी के बच्चों को भी जुड़ने का मौका मिला है जो कि इस आयोजन की सफलता दर्शाता है। गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली के पूर्व उपाध्यक्ष व बरिष्ठ समाजसेवी मनबर सिंह रावत ने कहा कि दो दिवसीय इस कार्यशाला में जिस प्रकार से नई पीढ़ी के शोध छात्रों ने भाग लिया एवं अपनी बात को बेबाकी से रखा उससे लगता है कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली व भाषा प्रयोगशाला का यह आयोजन सफल रहा। दिल्ली में पहले से ही उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच,लगातार दिल्ली लगातार काम कर रहा है। श्रीनगर में इस प्रकार का आयोजन करना वह भी दिल्ली से बहुत ही साहस की बात है। आशा है आगे भी इस प्रकार के आयोजन होते रहेंगे। डा० नंदकिशोर हटवाल ने गढ़वाली ध्वनि और वर्णमाला पर अपनी बात रखते हुए कहा कि देवनागरी में जो ध्वनियां गढ़वाली में प्रयुक्त नहीं होती हैं उनको हटाया जा सकता है। ‘ळ’ जैसी नई ध्वनियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए। गढ़वाली भाषा के संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण पर चर्चा करते हुए बीना बेंजवाल ने हिंदी व्याकरण से किस प्रकार भिन्न है, पर अपनी बात साझा की। आशीष सुंदरियाल ने लिंग, वचन और कारक पर और वीरेंद्र पंवार तथा रमाकान्त बेंजवाल ने क्रिया रूपों पर कार्यशाला को संचालित किया। कार्यशाला में गिरीश सुन्दरियाल की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘गढ़वाल की लोक गाथाएं’ का लोकार्पण भी किया गया। डॉ प्रीतम अपछ्याण व डॉ विष्णु दत्त कुकरेती की पुस्तकों का भी लोकार्पण किया गया। साहित्यकार रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस, मदन मोहन डुकलाण, मनबर सिंह रावत, डॉ विष्णु दत्त कुकरेती, नंदकिशोर हटवाल आदि ने विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता की। सभी विद्वानों कहना था कि उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली तथा भाषा प्रयोगशाला गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर द्वारा आयोजित यह कार्यशाला गढ़वाली भाषा के सम्बर्धन व संविधान की आठवीं अनुसूची के लिए अहम साबित होगी। इसका बड़ा सन्देश गया है।
दो दिवसीय कार्यशाला के समापन सत्र में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया कि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में गढ़वाली भाषा पीठ की स्थापना की जाये तथा स्नातक व स्तानकोत्तर पाठ्यक्रम में गढ़वाली भाषा को एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए। उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने सभी आगन्तुकों का धन्यवाद किया उन्होंने कि हम भाषा प्रयोगशाला तथा हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर की कुलपति प्रो0 अन्नपूर्णा नौटियाल का विशेष आभार व्यक्त करते हैं, जिनके नेतृत्व में यह दो दिवसीय कार्यशाला संपन्न हुई। श्री ध्यानी ने भाषा प्रयोगशाला की समन्वयक डॉ अरुषि उनियाल का आभार व्यक्त किया साथ ही कहा कि इस आयोजन के श्रीनगर समन्वयक जिनसे उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच,दिल्ली को आयोजन सम्बन्धी सहयोग मिलता रहा डॉ सर्वेश उनियाल का विशेष धन्यवाद ज्ञापित करते हैं जिनके सहयोग से इस आयोजन को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया गया। इस कार्यशाला में सर्वश्री लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी, डॉ नन्दकिशोर हटवाल, रमाकांत बेंजवाल, बीना बेंजवाल, गिरीश सुन्दरियाल, मदन मोहन डुकलाण, कुलानंद घनशाला, संदीप रावत, मनोज भट्ट गढ़वाळि, गणेश खुगशाल ‘गणी’, धर्मेन्द्र नेगी, ओमप्रकाश सेमवाल ओम बधाणी, डॉ० वीरेन्द्र बर्त्वाल, शांति प्रकाश जिज्ञासु, डॉ० सत्यानंद बडोनी, पयाश पोखड़ा,महेशानंद, विमल नेगी, वीरेन्द्र पंवार, संदीप रावत, देवेन्द्र उनियाल, रेखा रावत, डॉ० प्रीतम अपछ्याण, कमल रावत, दर्शन सिंह रावत, दर्शन सिंह नेगी, विमल नेगी, अनूप वीरेंद्र कठैत, जगमोहन सिंह बिष्ट, राकेश मोहन ध्यानी, दर्शन सिंह रावत, रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस , दीनदयाल बंदुनी, भगवती प्रसाद जुयाल गढ़देशी, जयपाल सिंह रावत, आंदोलनकारी राजेन्द्र शाह, दर्शन सिंह रावत, अनिल कुमार पंत, गिरधारी रावत, जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, प्रदीप रावत, द्वारिका चमोली, उमेश ध्यानी, द्वारिका भट्ट, आशीष सुन्द्रियाल, आदि साहित्यकार प्रेमी तथा गढ़वाल विश्वविद्यालय शोध छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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