बीना नयाल
14 जुलाई को इसरो द्वारा निर्देशित चंद्रयान मिशन ने जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को गौरवान्वित कर इतिहास के सुनहरे पन्ने पर नाम दर्ज किया, वहीं 19 जुलाई 2023 को मणिपुर में पिछले 3 महीने से जारी जातीय हिंसा के दौरान 4 मई को महिलाओं के साथ होने वाली बर्बर तथा अमानवीय घटना के वायरल वीडियो ने मानवता को शर्मसार कर दिया। जिस किसी ने इस दिल दहलाने वाले वीडियो को देखा, उसके रोंगटे खड़े हो गए ।
वीडियो में दिखाया जा रहा है किस प्रकार मणिपुर में भीड़ हैवानियत घरे अंदाज में दो महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र कर सड़कों पर परेड करवा रही है , उनके अंगों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है । पीड़ित महिलाओं के अनुसार, 21 वर्ष की महिला के भाई और पिता को उसके ही सामने हत्या कर उसका गैंगरेप किया गया, फिर उसे अन्य महिलाओं के साथ निर्वस्त्र कर घुमाया गया । यह घटना मणिपुर के कंगपोकपी जिले में स्थित बी - फाईनोम नामक गांव की है और पीड़ित महिलाएं मणिपुर की कुकी जनजाति से संबंध रखती है । घटना ने मानव अधिकारों और नारी अस्मिता की सारी हदें पार कर दी हैं।
घटना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखा जाए तो इसकी जड़ें मणिपुर में कुकी जनजाति तथा मैत्रई समुदाय के आपसी टकराव मे पाई जाती है। यहां मैत्रई समुदाय के लोग बहुसंख्यक है ,लेकिन घाटी के छोटे क्षेत्रफल में रहने को विवश हैं। जबकि कुकी और नागा जनजाति अल्पसंख्यक हैं लेकिन विस्तृत पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने के साथ-साथ वहां के संसाधनों का उपभोग करते हैं ।
कुकी जनजाति और नागा को यहां राज्य की जनजाति का दर्जा तथा दर्जे के नाते विशेषाधिकार प्राप्त हैं जबकि मैत्रई जाति से 1949 के बाद जनजाति का दर्जा छीन लिया गया। राजनीति, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में विशेष योगदान तथा संख्या बल होने के बावजूद राज्य के संसाधनों तक सीमित पहुंच के कारण उनमे असंतोष लाजमी था। अतः लंबे समय से मैत्रई जाति जनजाति का दर्जा मांग रही थी । मामला हाईकोर्ट में लंबित था। 3 मई 2023 को हाईकोर्ट ने मैत्रेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के मामले में राज्य सरकार व केंद्र सरकार से राय मांगी थी और 4 हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा था । पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समूह ने हाई कोर्ट के निर्देश का गलत आकलन तथा विश्लेषण किया और और इसे इस प्रकार दुष्प्रचारित किया गया कि मैत्रई समुदाय को उच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया है। कुकी जनजाति के विरोध का आधार था कि हाई कोर्ट के इस निर्णय से उनके विशेष अधिकारों का हनन तथा संसाधनों का अनावश्यक बटवारा होगा ।
इस फैसले के बाद दोनों समुदायो में खुलेआम जातीय हिंसा का संघर्ष जारी है ,जिसमे दोनों ही समुदाय के उग्रवादी तत्व एक दूसरे के घरों में आग लगाने, हत्या और लूटपाट पर उतर आए ।
केंद्र सरकार द्वारा मणिपुर के हालातों से निपटने हेतु सशस्त्र बल तथा पुलिस तैनात करने के बावजूद महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र कर भीड़ में घुमाने का वीभत्स वीडियो सामने आया है जो राज्य की अस्थिरता और तंत्र की विफलता को उजागर करती है।
महिलाओं के साथ इस जघन्य , बर्बर दिल दहलाने वाली घटना ने न केवल मानवता को शर्मसार किया बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय छवि भी धूमिल हुई है।
इससे भी अधिक निराशाजनक है कि घटना की व्याख्या तथा विश्लेषण कुछ लोग अपने अपने राजनीतिक और जातीय दृष्टिकोण से कर रहे हैं, पर इमानदारी से मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो हाई कोर्ट का निर्देश तार्किक था , मैत्रई समुदाय की मांग भी उचित है। अल्पसंख्यक के विशेष अधिकारों के नाम पर बहुसंख्यक के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता और ना ही दो समुदाय के पारस्परिक विद्वेष और नफरत का ज्वालामुखी महिलाओं की अस्मिता को तार-तार कर उदगारित किया जाना चाहिए।
द्वापर युग में द्रौपदी के वस्त्रों तक दुशासन के हाथ पहुंचने की परिणिति महाभारत के युद्ध के रूप में हुई , और तत्कालीन महानुभावों के मौन और अत्याचार की भरपाई उन्हें महाभारत युद्ध में अपनी मृत्यु से चुकानी करनी पड़ी । द्रोपदी चीर हरण में जो जो महानुभाव प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी थे , इतिहास ने उन्हें क्षमा नहीं किया ।
अब कलयुग में तो पराकाष्ठा हो गई है । मणिपुर में महिलाओं के साथ जो अमानवीय और बर्बर व्यवहार किया गया , वह मानव जाति के ऊपर कलंक है । ऐसा तो कदाचित आदिमानव युग में भी नहीं होता होगा जब मनुष्य को जब तन ढकने का भी बोध नहीं था।
भारत जैसे विशाल और प्रगतिशील लोकतंत्र वाले देश में लगभग 2 महीने बाद इस घटना का वीडियो वायरल होना प्रदेश में महिला सुरक्षा तथा अधिकारों की निर्मम स्थिति को उजागर करता है और हर व्यक्ति को जो स्वयं को समाज का बुद्धिजीवी, उत्तरदायी तथा जागरूक मानते हुए जो उत्तरदायी पदों पर आसीन है , स्वयं का आंतरिक विश्लेषण करने को विवश करता है कि हम कितने संवेदनशील ,मानवीय और सामाजिक मामलों में मुखर है ।
इस घटना पर उचित और संज्ञान लेते हुए इसका जाति ,क्षेत्र और धर्म जैसे संकुचित भावना से ऊपर उठकर मानवीय आधार पर कार्यवाही होनी चाहिए और दोषी चाहे किसी भी समुदाय के हो इसी प्रकार का जघन्य और निर्मम दंड सबक के रूप मे दिया जाना चाहिए ।
देश की समस्त महिलाओं को पूर्ण उम्मीद है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नही होगी और इस पर सर्वोच्च न्यायालय त्वरित और उचित कार्यवाही करेगा, और पूरा राष्ट्र इस मुद्दे पर मानवीय आधार पर एकजुटता दिखाएगा क्योंकि अगर किसी देश में नारी का सम्मान नहीं होता वहां धीरे-धीरे समृद्धि के सभी रूपों का लोप हो जाता है।
शासन तंत्र और न्याय प्रणाली की उचित कार्यवाही के अभाव में सभ्यता की अवनति तथा बर्बरता का विस्तार ही होता है।
0 टिप्पणियाँ