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मौन स्नेह का धधकता लावा है पिता- फादर्स डे पर एक विशेष रिपोर्ट


Father's Day


अभी मोक्ष की दरकार नहीं है

भारतीय संस्कृति और धर्म शास्त्रों में मोक्ष प्राप्ति को जीवन का उद्देश्य माना गया है। संसार के आवागमन के चक्र से मुक्त होकर जीव तथा परमात्मा की एकाकार होने की स्वाभाविक लेकिन दुर्लभ प्रक्रिया । लेकिन संतान के लिए तो माता-पिता भी परमात्मा के ही समान है जिनका सान्निध्य संसार की दुर्लभ छत है तो विछोह तपता हुआ निर्जन रेगिस्तान जहां हर कदम पर आप को भ्रमित करने वाले मरूद्यान का एहसास होता है ।

आज फादर्स डे है तो पिता पुत्री के संबंधों पर प्रकाश डालना चाहूंगी । पुत्री के जन्म पर सबसे अधिक हर्षित पिता ही होता है । पिता का वात्सल्य रूपी झरना पुत्री को पुत्र से थोड़ा अधिक भिगोता है इसका मूल कारण कहीं ना कहीं विपरीत लिंग के प्रति स्वाभाविक आकर्षण भी है लेकिन इन संबंधों में आकर्षण की प्रवृत्ति थोड़ी भिन्न हैं जो मर्यादा तथा वात्सल्य का अथाह सागर समेटे हुए है ।

पुत्री के जन्म के पश्चात पिता का अनुराग जो पहले पत्नी की होता है उसका बड़ा अंश रूपांतरित होकर पुत्री की ओर स्थानांतरित हो जाता है और पुत्र के जन्म के पश्चात इसी प्रकार पत्नी का प्रेम भी रूपांतरित होकर पुत्र की ओर आकृष्ट हो जाता है ।

पिता और पुत्री के मध्य जो स्नेह है वहा भावनाओं का कोई दुराव छिपाव नहीं है , वहां कोई रीति रिवाज , नीति  के बंधन नहीं है । वहा नाराजगी , दिखावा , भय या मजबूरी नहीं है। यह तो स्नेह की ऐसी मजबूत डोर है जो  दूरियों के साथ-साथ और भी अधिक मजबूत होती चली जाती है। पुत्री और पिता के संबंधों में गर्माहट तथा संवाद जितना अधिक होता है वहां पुत्री के व्यक्तित्व पर पिता की छाप भी अत्यधिक होती है । पुत्री अपने भावी जीवनसाथी के व्यवहार तथा जीवन शैली की तुलना सदैव अपने पिता से करती है ।

पिता पुत्री के संबंधों की मूल प्रवृत्ति समान होने पर भी गहराई की मात्रा तो सबकी भिन्न-भिन्न होती है  ।

जिन बेटियों ने युवावस्था में भी  पिता की उंगली थाम कर रखी हो वहां पुत्री की विदाई भी बेहद कष्टकारक होती है। ऊपर से समाज के आगे कठोर दिखने वाला नारियल स्वरूप पिता बेटी की विदाई में सबसे अधिक द्रवित होता है और विवाह के पश्चात भी पुत्री के दांपत्य जीवन के सुख और आनंद की तुलना स्वयं और पुत्री के वात्सल्य संबंधों से करता है ।

इस तुलना का तुला यदि बराबरी पर रहता है पिता हर्षित हो जाता है, खुद के स्नेह का पलड़ा हल्का हो जाए तो थोड़ा सकारात्मक इर्ष्या का भाव रहता है परंतु मन में संतोष तथा सुकून के भाव भी रहते हैं ।

लेकिन यदि पुत्री के दांपत्य सुख का पलड़ा हल्का रहे तो पिता की रातों की नींद उड़ जाती है , चिंता दीमक की भांति उसे भीतर ही भीतर खोखला कर जाती है। पुत्री पिता की आत्मजा होती है और आत्मा का अंश यदि छटपटा रहा हो तो पूर्ण कैसे सुकून में रह सकता है । 

खैर बेटियों का भाग्य ही ऐसा है पिता पुत्री को जीवन का सारा वैभव दे सकता है लेकिन स्वयं का भाग्य और कर्म की छाया उसे कहां छोड़ती है ।

 एक समय आता है जब  संतान  के जीवन में आसमान रुपी पिता अचानक से विदा ले लेता है। पिता को तो फिर भी इंतजार रहता है पुत्री के मायके आने का लेकिन पिता के साथ छोड़ने के बाद पुत्री के जीवन में पिता की रिक्ता हर पल बेचैन करती है।

 लेकिन विदाई की भी एक रीति होती है। आश्वासन देने की, जाने से पूर्व सलाह मशवरा देने की ताकि बेचैन मन को थाह मिल जाए और इस आश्वासन के सहारे जीवन के पल सुकून से कट जाए। 

कोरोना काल में शायद मेरे ही  पिता की भांति अनेक ऐसे पिता थे जो बिना मिले , बिना संवाद और आश्वासन दिए अनंत यात्रा पर चल दिए और दे गए असहनीय दर्द तथा अंतिम संवाद की कसक जो भावी जीवन यात्रा को सुगम बना देता।

 जीवन की बगिया आज भी पुष्पित पल्लवित है परंतु वह महक कहां से लाई जाए  जो पिता रूपी  सूरज के कारण बागीचे में थी ।  पिता रूपी धधकते सूरज की उषणता सहनीय होती है परंतु उनकी कमी जीवन को अपूर्ण कर देती है। 

वात्सल्य की प्यास अभी अधूरी है जीवन गागर में वास्तलय का कोना अभी रिक्त है और अपूर्ण कभी पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता।

  इसलिए तुम्हारे सानिध्य की अभी एक जन्म और दरकार है जहां वात्सल्य की बूंदे जीवन की गागर को तृप्त कर दे और पिता पुत्री दोनों के लिए मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होना सहज हो जाए ।

फिलहाल मोक्ष की दरकार नहीं है दरकार है तो फिर से मिलने की और उन जीवंत संबंधों को फिर से जीने की जिनकी महक मन के हर कोश को आनंदित और प्रतीक्षारत किए हुए हैं।

बीना नयाल 

9599310800

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