देहरादून : कर्नाटक चुनावों में जीत से कांग्रेस में एक नई शक्ति का प्रवाह हुआ है। इससे उत्तराखंड कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी संजीवनी मिली है। इससे पहले एग्जिट पोल में कर्नाटक में कांग्रेस की जीत तय बताते ही कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत ने लिखा था ''कांग्रेस नेतृत्व को जीत की बधाई देने दिल्ली पहुंचूंगा, राजनीतिक उद्देश्य से मेरा यह दिल्ली का अंतिम प्रवास होगा। दिल्ली से उनका मन भर गया। उन्होंने इच्छा जताई कि वह अपने जीवन की शेष शक्ति उत्तराखंड कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में लगाने चाहते हैं ।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में प्रदेश में उनके नेतृत्व में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था। उस समय कांग्रेस का जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई का प्रयास भी उन्हें ही करना चाहिए। संदेश साफ है, फिलहाल अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए रावत ने स्वघोषित रूप से पार्टी की कमान थाम ली है। प्रदेश में सक्रिय होने की उनकी चाहत से वर्तमान नेतृत्व में खलबली न मचे, इसे लेकर भी उन्होंने स्थिति स्पष्ट करने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि वह एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह ही काम करेंगे। उन्हें किसी पद की आकांक्षा नहीं है और वह चतुर्भुज नेतृत्व को निरंतर शक्ति देते रहेंगे।
संकेत मिल रहे हैं कि हरीश रावत अब राष्ट्रीय राजनीति में कोई जिम्मेदारी नहीं चाहते। यद्यपि, घोषणा के माध्यम से उन्होंने जिस प्रकार संदेश दिया है, पार्टी के अंदर एक गुट उसे पार्टी नेतृत्व को, उनकी ओर से दिए जा रहे संकेत के रूप में देख रहा है। देश में अगले वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। हरिद्वार संसदीय सीट की चाहत रख रहे हरीश रावत को पार्टी के भीतर से ही मजबूत चुनौती मिल रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए रावत अपने तरीके से प्रदेश में राजनीतिक बिसात बिछाने के मूड में हैं।

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