पंडित अनिल पुरोहित
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती है जिसमें से 4 संक्रांति ही महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति प्रमुख हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्राति के दिन से ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है।
1. उत्तरायण प्रारंभ : सौर मास के दो हिस्से है उत्तरायण और दक्षिणायम। सूर्य के मकर राशी में जाने से उत्तरायण प्रारंभ होता है और कर्क में जाने पर दक्षिणायन प्रारंभ होता है। इस बीच तुला संक्रांति होती है। उत्तरायन अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। अत: यह पर्व 'उत्तरायन' के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। इस दिन से दिन धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है।
2. देवताओं का दिन प्रारंभ : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।
3. गीता में महत्व : भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया।
4. संपूर्ण भारत का पर्व : मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है। मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है। यह सूर्य आराधना का पर्व है जिसे भारत के प्रांतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। भारत के अलग-अलग प्रांतों में इस त्योहार को मनाए जाने के ढंग भी अलग हैं, लेकिन इन सभी के पीछे मूल ध्येय सूर्य की आराधना करना है। संक्रांति के आसपास लोहड़ी, पोंगल और बिहू पर्व मनाया जाता है। ये सभी संक्रांति के ही स्थानीय रूप हैं।
मकर सक्रांति को पतंग उत्सव, तिल सक्रांति आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का, तिल-गुड़ खाने का तथा सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व है। यह दिन दान और आराधना के लिए महत्वपूर्ण है। मकर संक्रांति से सभी तरह के रोग और शोक मिटने लगते हैं। माहौल की शुष्कता कम होने लगती है।
5. सौर नववर्ष का प्रारंभ : इसी दिन से सौर नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। सूर्य जब एक राशि ने निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब दूसरा माह प्रारंभ होजा है। 12 राशियां सौर मास के 12 माह है। दरअसल, हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित है। सूर्य पर आधारित को सौर्यवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारिक को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सौर्यवर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है। नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।
6. फसल कटाई का समय : इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।
7. पौराणिक तथ्य : महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है।
🚩इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
8. इस पर्व का भौगोलिक विवरण : पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में 4 स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें 21 मार्च और 23 सितंबर को विषुवत रेखा, 21 जून को कर्क रेखा और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन 4 स्थितियों को 12 संक्रांतियों में बांटा गया है जिसमें से 4 संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति।
9. ऐतिहासिक तथ्य : मकर संक्रान्ति का उद्गम बहुत प्राचीन नहीं है। एक हजार ईसा पूर्व लिखे गए उपनिषद और ब्राह्मण ग्रंथों में उत्तरायण के छ: मासों का उल्लेख मिलता। इसमें 'अयन' शब्द आया है, जिसका अर्थ है 'मार्ग' या 'स्थल। गृह्यसूत्रों में 'उदगयन' उत्तरायण का ही द्योतक है जहां स्पष्ट रूप से उत्तरायण आदि कालों में संस्कारों के करने की विधि वर्णित है। उदगयन' बहुत शताब्दियों पूर्व से शुभ काल माना जाता रहा है।
10. वार युक्त संक्रांति : ये बारह संक्रान्तियां सात प्रकार की, सात नामों वाली हैं, जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन के आधार पर उल्लिखित हैं; वे ये हैं- मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता। घोरा रविवार, मेष या कर्क या मकर संक्रान्ति को, ध्वांक्षी सोमवार को, महोदरी मंगल को, मन्दाकिनी बुध को, मन्दा बृहस्पति को, मिश्रिता शुक्र को एवं राक्षसी शनि को होती है। इसके अतिरिक्त कोई संक्रान्ति यथा मेष या कर्क आदि क्रम से मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी, मिश्रित कही जाती है, यदि वह क्रम से ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर या मिश्रित नक्षत्र से युक्त हों।
नक्षत्र युक्त संक्रांति 27 या 28 नक्षत्र को सात भागों में विभाजित हैं- ध्रुव (या स्थिर)- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृदु- अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष, क्षिप्र (या लघु)- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, उग्र- पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा, चर- पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति, शतभिषक क्रूर (या तीक्ष्ण)- मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण)- कृत्तिका, विशाखा। उक्त वार या नक्षत्रों से पता चलता है कि इस बार की संक्रांति कैसी रहेगी।
मकर संक्रांति पर्व का पुण्य काल15 जनवरी को
धर्म शास्त्रों अनुसार इस बार मकर संक्रान्ति पर्व का पुण्य काल 14 जनवरी की बजाय 15 जनवरी को अरुणोदय वेला में होगा। पंडित गौड़ ने बताया कि धर्म शास्त्रों अनुसार अगर रात्रि में संक्रांति लगती है तो अगले दिन अरुणोदय वेला में इसका पुण्य काल माना जाता है। इस बार सूर्य 14 जनवरी को रात्रि 8 बजकर 43 मिनिट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे इसलिए पुण्यकाल 15 जनवरी रविवार को किया जायेगा।
भगवान श्री सूर्यनारायण इस वर्ष 14 जनवरी शनिवार, पौष कृष्ण सप्तमी को रात्रि में 8:43 बजे मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं।
इसलिए संक्रांति का पुण्यकाल दान करनें का दिन 15 जनवरी रविवार के दिन सूर्योदय समय सुबह 7:31 बजे से माना गया है। इस हेतू इस दिन ही दान करके पुण्य कर सकेंगे।
संक्रांति के वाहनादि फल इस प्रकार है
इस बार संक्रांति का वाहन बाघ है, उपवाहन घोड़ा है, पीले वस्त्र पहने हुए हैं, सर्प जाति की हैं, हाथों में गदा धारण किये हुए हैं,भाल में केसर का तिलक लगाया है, सुवासित रहनें के लिए हाथों में जूही का पुष्प लियें हुए हैं, अलंकार में मोती के आभूषण धारण किये हुए हैं, दूधपाक का भक्षण कर रहीं हैं, उनका वार नाम राक्षसी और नक्षत्र नाम मंदाकिनी हैं, दक्षिण दिशा से आ रही हैं और उत्तर दिशा की ओर जा रही है, उनका मुख पश्चिम दिशा की ओर हैं एवं उनकी दृष्टि इशान कोण में हैं, जिससे भारत देश के दक्षिण दिशा एवं इशान कोण में रहनें वाले लोगों को सुख की प्राप्ति होंगी, 30 मुहूर्त होने से इस वर्ष बारिश भी मध्यम मात्रा में होंगी।
संक्रांति के साथ संबंधित वस्तुओं और व्यक्तिओ को तकलिफ हो सकतीं हैं शेर-अश्व जाति के प्राणीओं को रोग हो सकता हैं और शायद इनमें से कुछ जाति लुप्तप्राय अवस्था में आ सकतीं हैं, हल्दी, सुवर्ण, पीले वस्त्र, चने की दाल आदि वस्तुएं महंगी होंगी, दूध और दूध से बननेवाली चीज़ वस्तुएं-चांदी वगैरह महंगी होगी, कुमार या कुमारी अवस्था वालों को अपना विशेष रूप से ध्यान रखना होगा। "संक्रांति में करने योग्य कार्य" ।
संक्रांति जो वस्तुएं धारण करे हुए हैं उन वस्तुओं का केवल कर्मकांड करने वाले ब्राह्मण को दान करें।
इस दिन ये करे उपाय
संक्रांति के दिन सफेद तिल के तेल को अपने शरीर पर लगाकर एवं तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए, तिल मिश्रित जल पीने के लिए भी उपयोग करें, तिल - गुड-हरे चने-गन्ना-तांबे के बर्तन-नयें पीले वस्त्रों-सुवर्ण -सप्त धान्य-भूमि का दान-गौ दान करें,गाय को हरा चारा खिलाये,तिल और गाय के दूध में पके हुए चावल के साथ गाय का घी मिलाकर भगवान सूर्य देव का हवन करें ।भगवान सूर्यनारायण को इस दिन जल मिश्रित दूध का अर्घ्य प्रदान करें।
मकर संक्रांति राशि अनुसार करेंगे दान तो मिलेगी बेशुमार धन-दौलत और यश-कीर्ति-सम्मान
मकर संक्रांति दान का पर्व है। इस दिन अगर अपनी राशि के अनुसार दान दिया जाए तो दान से मिलने वाला फल कई गुना बढ़ जाता है। आइए जानें आपकी राशि के अनुसार कौन सा दान शुभ है....
♦️मेष- चादर एवं तिल का दान करें तो शीघ्र ही हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
♦️वृषभ- वस्त्र एवं तिल का दान करें तो शुभ रहेगा।
♦️मिथुन- चादर एवं छाते का दान करें तो बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।
♦️कर्क- साबूदाना एवं वस्त्र का दान करना शुभ फल प्रदान करने वाला रहेगा।
♦️सिंह - कंबल एवं चादर का दान अपनी क्षमतानुसार करें।
♦️कन्या- तेल तथा उड़द दाल का दान करें।
♦️तुला- रुई, वस्त्र, राई, सूती वस्त्रों के साथ ही चादर आदि का दान करें।
♦️वृश्चिक- खिचड़ी का दान करें साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार कंबल का दान भी शुभ फलदायी सिद्ध होगा।
♦️धनु- चने की दाल का दान करें तो विशेष लाभ होने की संभावना बनती है।
♦️मकर- कंबल और पुस्तक का दान करें तो हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
♦️कुंभ- साबुन, वस्त्र, कंघी व अन्न का दान करें।
♦️मीन- साबूदाना,कंबल सूती वस्त्र तथा चादर का दान करें।
मकर संक्रांति 2023 : तिल के 11 प्रयोग आपकी किस्मत चमका देंगे
मकर संक्रांति पर तिल, गुड़ और खिचड़ी का बहुत महत्व होता है। इसी के साथ सूर्य को अर्घ्य देना और श्री हरि विष्णु की पूजा करने का भी खास महत्व माना गया है। आओ जानते हैं मकर संक्रांति के दिन कौन से ऐसे 11 कार्य करें कि आपका भाग्य खुल जाए।
1. काले तिल और गुड़ के लड्डू बनाकर खाने से घर में सुख समृद्धि आती है
2. काले तिल और गुड़ का दान करने से सूर्य और शनि दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
3. संक्रांति के दिन काले तिल के लड्डू, नमक, गुड़, काले तिल, फल, खिचड़ी और हरी सब्जी का दान अतिशुभ माना गया है। इस दिन तिल गुड़ या रेवड़ी का दान किया जाता है।
4. मकर संक्रांति के दिन एक मुठ्ठी काले तिल लेकर परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर 7 बार उसार कर घर के उत्तर दिशा में फेंक देने की भी मान्यता है, इससे अनायास होने वाली धनहानि में कमी आकर घर में धन की बरकत बनी रहती है।
5. इस दिन पानी में तिल मिलाकर स्नान करना शुभ माना जाता है। तिल का उबटन लगाकर भी स्नान कर सकते हैं। इस उपाय को करने से बुरी नजर से आप बच सकते हैं।
6. इस दिन तिल मिला पानी सूर्यदेव को अर्पित करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। संक्रांति के दिन सूर्य को तांबे के लोटे के जल भर कर उसमें कुंकुम, अक्षत, तिल तथा लाल रंग का फूल डालकर जल अर्पित करें। जल अर्पित करते समय *•‘ऊँ घृणि सूर्याय नम:”* मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से आपकी मनोकामना पूरी होगी।
7. इस दिन पितरो की शांति के लिए जल युक्त अपर्ण करें। पितरों को जल देते समय उसमें तिल का प्रयोग करें इससे घर-परिवार को आरोग्य, सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
8. इस दिन सरसों के तेल में तिल मिलाकर उस तेल को एक लोहे की कटोरी में भरकर उसका दीपक जलाकर उसे शनि मंदिर में रखने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
9. एक स्वच्छ लोटे में शुद्ध जल भरे और उसमें थोड़े काले तिल डालकर उसे "ॐ नम: शिवाय" का मंत्र जपते हुए शिवलिंग पर अर्पित करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी और सभी रोग दूर होंगे।
10. तिल की आहुति देने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
11. तिल के छह प्रयोग विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं-
1. तिल जल से स्नान करना। 2. तिल दान करना। 3. तिल से बना भोजन। 4. जल में तिल अर्पण। 5. तिल से आहुति। 6. तिल का उबटन लगाना

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