नम आंखों में आज भी बसी हैं आपकी स्मृतियां........
1 सितम्बर 1994 का दिन उत्तराखंडियों के लिए भुलाए नहीं भूलता। क्योंकि इसी दिन खटीमा में उत्तराखंड पृथक राज्य की मांग कर रहे लोगों पर पुलिस ने बिना चेतावनी के बड़ी बर्बता के साथ गोलियां बरसाई थी। इस गोली कांड में 7 लोग शहीद हो गए थे और अनेकों लोग घायल हुए थे। इस घटना के बाद उत्तराखंड में चारों तरफ आक्रोश फ़ैल गया और पहाड़ी क्षेत्रों में आंदोलन और तेज हुआ जिसने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया था। इसी के बाद मंसूरी गोली कांड भी हुआ। आज भी लोग श्रद्धांजलि सभाएं कर अपने इन शहीदों को याद कर अतीत की स्मृतियों में चले जाते हैं।
अगर देखा जाए तो पृथक राज्य के लिए लोगों के संघर्ष और कुर्बानियां काम आई। उन्हीं के संघर्षों का नतीजा था कि पहाड़ के लोगों को उनके स्वप्नों का एक अलग राज्य तो दे दिया गया किंतु उसमें कुछ मैदानी क्षेत्रों को जोड़कर एक कुचक्र भी किया गया जिसका खामियाजा वहां के आंदोलनकारियों और लोगों को आज तक उठाना पड़ रहा है। राज्य बनने के बाद जिस तरह रेवड़ियां बंटी उसमें सभी आंदोलनकारियों को दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि अभी भी अनेकों आंदोलनकारियों को चिन्हित नहीं किया गया है।
शहीदों को समर्पित गढ़वाली भाषा में एक रचना
बलिदान
उत्तराखंड का बाना
जौन दिनी अपणी जाण
सदा याद आलु हमतैं
ऊनरो यु बलिदान।
लुटण लग्या सब यख
आपक स्वेणो कि आन
नेतों तैं बणी यु स्वोने खान
जनता हिस्सा पलायने घाण।
आस टूटी पाड़ रुठि
हर्चि ज्वानि अर पाणि
रीती रिवाज बार त्यौहार छूटि
अर लुट ग्ये अब हर धाणी।
आपन लम्फु बण बाटु दिखाई
कुछ चमचोंळ प्रदेश लुटै द्याई
आन्दोलनकारियुं दुर्दिन देखण से
अच्छु व्हे आंख मूंदी तुम चल ग्याई।
©द्वारिका चमोली (डीपी)

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