ढोल सागर के ज्ञाता की महिमा को उजागर करती उत्तराखंड के कवि भगवती जुयाल गढ़देशी की कविता-ढोली
ढोली
ढोली लगौ धड़ेक मैती पंडौं कू रांसू
जिकुड़ा कबलांस मन ह्वयूं च क्वांसू
सुणौं क्या बिंगौणा द्रोपदा बेबसी आंसू
कपटि शकुनी चाल फेंकौ कपटि पांसू
हे ढोली अमर रयां तेरा मुखार बोल
कस्यां रयां सदानि ढोल दमौ खोल
गुंजदि रयां तांबै विजेसारा गुंजदा बोल
कंदुड़ु पराज लगौंणा छन वु ब्रह्म बोल
हस्तिनापुर देख कन चौसर बिछीं च
रथि महारथ्यूं की देख चौकड़ी सजीं च
धर्मराज युधिष्ठरै दैब कनी मति हौरी
राज मुकुट धन वैभव बंधु द्रोपदा हारी
कागली लगौ दिदा तसंणा खैंचि खैंची
जुगराज रैयां जु तिन या कथा बांची
पितामह भीष्म ह्वलू बैठ्यूं सभा बीच
महांमत्री विदुर की जख क्वी पूछ नीच
सूत पुत्र कर्ण देख चटकारा होलू लेणू
युधिष्ठर द्रोपदा जब दांव ह्लालू लगौणू
अबला द्रोपदा बैश्या होलु स्यू बतौंणू
अर्जुन भीमसेन अपणी भुजा खुज्याणू
कृप द्रोणाचार्य बेबस ह्वे आंसू बगौंणा
देवब्रत भीष्म प्रतिज्ञा लाचार देखेणा
कंदूड़ धृतराष्ट का नी रैनी पिड़ौणा
राज मोह दुर्योधना शांखा छन फुलैणा
सोधी लगै ढोली ज्ञान कू छयीं भंडार
छौया छंछेडौ सी सुणै दे ढोल सागर
कपटी शकुनी खेलणू कपटि पौ बारा
द्रोपदै लाज बचौंदरा पंडौं ह्वयां लाचार
प्रकट करौ दिदा नरू का नारैण आज
थकौ मैती दुशासन का निर्लज हाथ
धर्म धवड़या छैं छैं ढोल सागारौ ज्ञानी
छुदा मिटै जा मनख्यूं कि छयां अज्ञानी
वुनि घुंड्या ढोल बजौ रस्यूलू मंडाण
चक्रव्यूह कमलव्यूह मकरव्यूह रचौण
बाला अभिमन्यू कु गर्भ ज्ञान सुणौन
सुणला मैति बाला परथुमण की कथा
रात खुलौंण सुणला कुरूक्षेत्रै व्यथा
धर्म अधर्म का बीच ह्वे जालू फैसला
कबलाट ह्वयूं जिकुड़ा राती जग्वाल
संजय सुणौणु ह्ववालु धर्म युद्धा हाल
दानबीर कर्ण कू ह्वयूं ह्व्लु जी जंजाल
माता कुन्ती देयां द्वी बचनु कू मलाल
मायापती की माया मायापती ही जाणू
बाला बबरबान तैं अधबठा गै रिझाणू
बोल बबरबान बोल तू कै की छैं तरफ
बोन बैठी बोल वू हिडम्बा सैंत्यूं पोता
जै की हार होली मि वे की रालु तरफ
लगौ मैती ढोली तु कथा सोधी सोधी
धर्म धवड़या छयीं छयीं तु मेरू मैती
4 टिप्पणियाँ
Excellent
जवाब देंहटाएंBhut badiya
जवाब देंहटाएंअति उत्कृष्ट। कविता दिल को छू लेने वाली है. शुभकामनाओं के साथ- महेंद्र कांडपाल
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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