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बचे ल्यावा़ अपणा पूर्वजों कि धरती तैं अब भी टैम च-सुण दिदा

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सुण दिदा 

बल हे दिदा हे भुला 
प्रदेश बड्यां बीस साल व्हे ग्याई 
मेरी मुखड़ी पर भी 

चमलाट कम व्हे ग्याई 
आंखों जोत भि झिलमिल च कनि 
पर मि तैं दिखण म यन लगणु 
सब दें का बल्दू जन रिटणा 
पर यु विकास कख ग्याई। 

अरे भैजी क्या बतों 
उल्टो चलणु बथों 
जनुल ते फुकड़याँ प्रदेशा बाना 
अपणी मवासी घाम लगाई 
सि त भैर च च्वटायां  
अर जु छाई च्वट्या बाज 
तौंगि सरकारी ग्वल्थ्य खै 
मौज च आईं
अर विकास तैं 
चौमासी बरखा जन 
बगैं के फुण्ड ले ग्याई। 
  
अरे दिदा न जाणि अपणा जीता जी 
क्या क्या दीखिन अब 
खैना पुंगड़ा बांजा पड़ ग्याई 
गौं का मनखी भैर तिण बैठ ग्याई 
बेटि ब्वारियूं तैं शैर रिझे ग्याई 
अर हमेरी काष्ठ कलां तैं 

सीमट कंक्रीट ळ अड़े द्याई। 


ठिक ब्वना साब तुम 
गौं गौं कि हवा पाणि बदळ ग्याई 
जु भैर चलिगी वूं तैं 
गौं से क्वे मतलव नि रै ग्याई 
अर जु गौं  म छिन तो तैं 
बांदर सुंगरुं डैर खै ग्याई 
कु जाणि अब कै कु राज आळो 
मेरा पाडे माटु तैं के 
रंग में रंग जाळो। 

©द्वारिका चमोली (डीपी)







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