उत्तराखंड की लोककला ऐपण की बढ़ी लोकप्रियता- इस कला से निर्मित राखियों को मिला बाजार
उत्तराखंड की प्राचीन कला ऐपण का नाम सुनते ही हर किसी को अपने घर आंगन व देहरी याद आने लगती है जो अक्सर दिवाली या कोई तीज त्यौहार में ही बनाई जाती थी लेकिन इस कला में हुनर रखने वाले कलाकारों ने इसका व्यवसायीकरण कर ऐपण को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी पहचान दिलाने का बेडा उठा लिया है। ऐपण को व्यवसायीकरण का रूप हालाँकि उत्तराखंड की संस्कृति के जाने पहचाने नाम यशोधर मठपाल को जाता है जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से इस कला को अपनी कूची से पोस्टर में उतारा जिसे कलाप्रेमियों ने खूब सराहा। उनके द्वारा बनाए पोस्टरों को लोग गिफ्ट देने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं।
उनके आदर्शों पर चलकर आज उत्तराखंड के खासकर कुमाऊँ क्षेत्र के कई युवा इस कला को बड़े स्तर तक ले जाने के लिए प्रयासरत है। इनके प्रयासों का ही परिणाम है कि अब ये कला देहरी,आंगन से निकलकर व्यावसायिक रूप धारण कर चुकी है। आज के संस्कृति प्रेमी युवा अपनी प्राचीन कला को पूजा थाल, मंदिर के आसन, तोरण, फ्लावर पॉट, केतली, प्लेट, इत्यादि के अलावा अब राखियों में उकेर रहे है।
कुमाऊं की कुछ स्कूली छात्राओं द्वारा इस कला को नया रूप देकर उसे जीविकोपार्जन का जरिया बना दिया गया है। उनके द्वारा बनाई जा रही कृतियों को लोगों द्वारा खूब सराहा जा रहा है। उत्तराखंड के दर्जनों कलाकार अब ऐपण कला को विकसित कर रहे हैं उन्ही में से एक ममता व मीनाक्षी के द्वारा ऐपण निर्मित राखियों की बाजार में खूब डिमांड है। ये कलाकार सोशल मिडिया फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर के माध्यम से भी अपनी कला को प्रचारित व प्रसारित कर रही है ताकि इस कला को विश्वस्तर पर पहचान मिल सके।




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