करंट पोस्ट

8/recent/ticker-posts

प्रोo हरेन्द्र सिंह असवाल की पुस्तकों "खेडा़खाल" और "हाशिए के लोग" का हुआ लोकार्पण

प्रोo हरेन्द्र सिंह असवाल की पुस्तकों "खेडा़खाल" और  "हाशिए के लोग" का हुआ लोकार्पण


नई दिल्ली : शुक्रवार 20 सितंबर को दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के सभागार में एक भव्य समारोह में प्रोo हरेन्द्र सिंह असवाल की दो पुस्तकों  खेडा़खाल और  हाशिए के लोग का लोकार्पण मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर बलराम पाणी अधिष्ठाता महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय और प्रोफ़ेसर अनिल राय अधिष्ठाता अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, समाज विज्ञान एवं मानविकी, हिन्दी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय एवं कॉलेज के प्राचार्य प्रोफ़ेसर नरेन्द्र सिंह के द्वारा किया गया ।

खेड़ाखाल हरेन्द्र सिंह असवाल का एक कविता संग्रह हैं और हाशिए के लोग में, हिन्दू समाज के उन  कलाकारों का स्मरण किया गया है जिन्होंने हिन्दू संस्कृति को हज़ारों वर्षों तक अनपढ़ होते हुए भी निरन्तर ज़िन्दा रखा लेकिन बदले में वर्ण व्यवस्था ने उन्हें हमेशा हाशिए पर रखा । 

"खेड़ाखाल" कविता संग्रह में छोटी बड़ी 83 कविताएँ हैं । ये कविताएँ जहां वर्तमान समाज का दर्पण हैं वहीं हिमालय और प्रकृति की कविताएँ भी हैं । लेखक ने नदी, पहाड़, अपना स्कूल, उनके निर्माताओं, और अपने गुरुओं को समर्पित कविताओं का भी इसमें समावेश किया है। लेखक ने अपनी स्कूली शिक्षा जहां से प्राप्त की यह पुस्तक उसी स्कूल को समर्पित है । "खेड़ाखाल" उस स्कूल का ही नाम है ।  

"हाशिए के लोग" एक तरह से संस्मरणात्मक लेखों का संग्रह है । ये पुस्तक उन लोगों को याद करने की एक छोटी सी कोशिश हैं जिन्हें हिन्दू समाज ने हाशिए पर रखा लेकिन उन्हीं लोगों ने उस हिन्दू संस्कृति को अमर बना दिया । ये भारतीय संस्कृति के सबसे निचले पायदान के लोग हैं लेकिन भारतीय, संस्कृति, साहित्य और  कलाओं को जिन्होंने निरन्तर ज़िन्दा ही नहीं रखा ,उसे ऊर्जावान भी बनाए रखा । जिन्हें हम ज्ञानवान पंडित मानते थे उन्होंने अपने स्वार्थ के आगे कई बार घुटने भी टेके, लेकिन इन लोगों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी पारंपरिक ज्ञान को ज़िन्दा रखा ।

डॉ  खीमानन्द बिनवाल ने दोनों पुस्तकों पर अपने विचार रखे । उन्होंने विस्तार से कविताओं और लेखों पर सरसरी तौर पर अपने विचार रखे । 

लेखक ने कहा मुजरिम हाज़िर है ,उन्होंने  कहा लेखक सत्ता  का मुजरिम होता है क्यों कि वह सत्ता के दमन के खिलाफ लिखता है इसलिए  सत्ता का  मुजरिम होता है , दूसरी तरफ़ वह दलितों उपेक्षितों  की अगर आवाज़ नहीं बनता तो वह उन तमाम उपेक्षितों का मुजरिम होता है । लेखक ने कहा मैं ने जो कहना थान वह  लिख दिया अब इस पर विचार विमर्श करना आप विद्वानों का काम है । क्या यह विचार कि ये लोग ,सम्मान के हक़दार थे या नहीं ? 

प्रोफ़ेसर अनिल राय ने पुस्तक पर गंभीर चर्चा की । समाज के इन हाशिए के लोगों का जिक्र करते  हुए प्रोफ़ेसर राय ने “ गगनी दास “  को याद करते हुए सीता , द्रौपदी , और गगनी दास के सवालों को उठाते हुए वर्मान समाज में स्त्री और दलितों के प्रश्नों पर फिर से विचार करने के लिए बाध्य किया है  । हिन्दी के महान कवि घाघ भड्डली वाले लेख को प्रोफ़ेसर अनिल राय ने अनुसंधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बताया और कहा साहित्य में घाघ जैसा कवि जो अपनी पत्नी से संवाद करता हुआ जीवन , खेती बाड़ी की समस्याओं पर संवाद शैली में बात करता है ,ऐसे लोक कवि को भी हमारे आचार्यों ने हाशिए पर ही रख छोड़ा । उन्होंने कहा इसमें जितने भी ऐसे हाशिए के लोग हैं , उन्हें हमें मुख्यधारा में रख कर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है । 

कविता संग्रह की बेटियों वाली कविता का ज़िक्र करते हुए प्रोफ़ेसर राय ने लेखक से सहमत होते हुए कहा कि सच में घर की रोशनी बेटियाँ ही होती हैं जो सारा दुख दर्द पी जाती हैं ।

घर का चिराग़ जिनको कहते रहे हैं लोग 

उन्हीं के घर आँगन में पसरा रहा अंधेरा

घर-घर में रोशनी फैलाती हैं बेटियाँ

दुनियाँ जहां का दर्द अपना लेती हैं बेटियाँ ।

प्रोफ़ेसर बलराम पाणी ने अपने वक्तव्य में गाँवों की बात करते हुए समाज और देश की मुख्य इकाई गाँव बताया और गाँवों से ही हमारा समाज बनता है,गाँवों से ही देश बनता है । हम सब अगर इसी तरह अपने गाँव ,अपने समाज ,की चिंता करते रहें ,उसकी समस्याओं को सामने रखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करें , तो देश अपने आप एक विकसित राष्ट्र बन सकता है । प्रोफ़ेसर पाणी ने लेखक की कविताओं पर भी बात की  ।इन छोटी छोटी कविताओं का आकार भले ही  देखने में छोटा हो लेकिन ये जीवन की वास्तविक सच्चाइयों को उजागर करती हैं । 

प्राचार्य प्रोफ़ेसर नरेन्द्र  सिंह ने हिमालयय कविता का पाठ करते हुए कहा कि यह कविता जितनी हिमालय के बारे में है उतनी ही लेखक की सादगी , सच्चाई और अडिगता का प्रमाण है । 

हिमालय न झुकने का नाम है 

 न पिघलने का ,न टूटने का ।

हिमालय पिघलता है ममता से 

झुकता है सच्चाई से और 

टूटता है प्रेम में बिछने के लिए।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ