DPMI DEHRADUN : दिवाली से पूर्व अपनी संस्कृति को बचाने के लिए डीपीएमआई के बच्चों ने अपनी मेहनत से मोमबत्तियां तैयार की। उन्हें बेचकर जो कमाई हुई उसे सहयोग के तौर पर उत्तराखंड संस्कृति के ध्वजवाहक ढोल वादक पंकज दयाल और अखिलेश को प्रदान किया। उनकी इस पहल का सभी ने स्वागत किया।
उत्तराखंड को लोग देवभूमि भी कहते हैं और यहां की संस्कृति में ढोल दमाऊ विशेष महत्व रखते हैं। चाहे देवताओं का आह्वान करना हो या फिर कोई शादी विवाह अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रम करना हो वो ढोल दमाऊं के बिना अधूरा है। लेकिन आज DJ कल्चर के दौर में इन वाद्य यत्रों को बजाने वालों का अस्तित्व खतरे में दिखाई देता हैं। इंस्टिट्यूट के छात्रों ने अपनी संस्कृति व अपने पारम्परिक वाद्य यंत्रों को बचाने के लिए ये अनोखा तरीका अपनाया। ऐसा करके उन्होंने न केवल नई पीढ़ी को एक संदेश दिया है बल्कि कलाकारों का सम्मान भी रखा है।
इंस्टिट्यूट के संचालक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने छात्रों द्वारा की गई इस सराहनीय पहल की तारीफ की और कहा कि ढोल दमों हमारी संस्कृति की रीढ़ है। हमारे यहां जब देवताओं का आह्वान होता है तो ढोली द्वारा वृद्ध के साथ ढोल की विभिन्न तालें बजने से देवता भी धरती पर आकर नाचने लगते हैं। हमारे इन वाद्य यंत्रों और इनके कलाकारों को जीवंत करने के लिए हम सदैव अपने छात्रों के साथ खड़े हैं।
इस अवसर पर बद्रीश छावड़ा, विक्रम श्रीवास्तव, पुष्कर सिंह नेगी, डॉ महेंद्र राणा के साथ साथ DPMI के स्टाफ सदस्य व छात्र मौजूद रहे।
रिपोर्ट पुष्कर सिंह नेगी
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