नै दिल्लीः 22 जनवरी, 2023 डीपीएमआई सभागार न्यू अशोक नगर दिल्ली म उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच द्वारा आहूत गढ़वाळी, कुमाउनी, जौनसारी भाषा विमर्श गोष्ठी/ बैठक का दौरान ध्वनिमत से य बात सबुन स्वीकार कैरि कि गढ़वाळि, कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल कना खातिर सबु तैं मिलिकै जतन करण होलु। यों द्वी भाषाओं म प्रचुर साहित्य व हर तरां से हर मानदण्ड पूरू कना सांसु छा। इलै अमणि बगता कि मांग बि चा कि हम सब यों भाषाओं तैं वोंकु उचित स्थान दिलौणा खातिर जतना करला जां से औण वळि पीढियों तैं हम भाषा कि एक यनि थाति सौंपि सकला कि नै पीढ़ि बि गर्व कारलि। अर य बात तभी संभव होण जब गढ़वाळि व कुमाउनी भाषा संविधानै आठवीं अनुसूची म शमिल होलि।
ज्ञातव्य हो कि कुछ लोग पिछला काफी टैम बिटिन बुना छन कि उत्तराखण्ड एक प्रदेश चा त यख एक भाषा होण चैंद। वों कु बुनु चा कि उत्तराखण्ड का वास्ता सौब भाषाओं तैं मिलैकि एक प्रतिनिधि उत्तराखण्डी भाषा बणये जाण चैंद। ये विषय परैं यीं बैठक म जोरदार चर्चा होंणा का बाद उत्तराखण्डी भाषा या प्रतिनिधि भाषा का पैरोकार बि बुना छया कि हां भै गढ़वाळि, कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल कना खातिर सबु तैं मिलिकै जतन करण होलु। स्य बात अलग चा कि कुछ लोग कै दिनों बिटिन प्रतिनिधि भाषा कि बात कैरिकि समाज तैं अपणि बात बिंगाणा कोशिश कना छन।
यीं गोष्ठी म जब लोगोंन पूछि कि कैन बोलि कि प्रतिनिधि भाषा बणण चैंद? कैन बोलि कि क्वी संस्था, सरकार या व्यक्ति क्वी भाषा बणै सकदन ता फिर यों लोगों म क्वी जवाब नि छौ। उत्तराखण्डी या प्रतिनिधि भाषा का पक्ष देवभूमि की पुकार पाक्षिक समाचार पत्र का संपादक व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ बिहारी लाल जलन्धरी व हिमवंत संस्था का संयोजक व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पृथ्वी सिंह केदारखण्डी न अपणि बात राखि। सभी लोगोंन यीं बात को तर्क सहित विरोध कैरि कि अमणि लोग अपणि भाषा बात नि करणां छन ता स्यु नै भाषा की बात नौ से ठीक नी। वरिष्ठ नाटककार श्री दिनेश बिजल्वाण न बोलि कि अमणि हमरि गढ़वाळि, कुमाउनी भाषा संकट का दौर से गुजरणीं छन ता फिर यु नै उत्तराखण्डी भाषा की बात न तर्क संगत चा अर जरूरी चा। जु भाषा अस्तित्व म छैं छन वों कु संरक्षण व वोंकि सुध ल्यावा न कि बे बाती कु नै भाषा कि बात कारा ज्व न तर्क संगत चा अर न व्यवहारिक। जख तलक एक प्रदेश का वास्ता एक भाषा कि बात चा ता फिर एक देश का वास्ता बि भोळ क्वी एक भाषा कि मांग कारलु ता क्या य बात संभव चा? कम से कम भाषा का नौं परैं यनि बात उचित नि छन जु समाज म बैमनस्यता फैलाणी छन। यनि बातों से बचण चैंद।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री पूरन चन्द्र कांडपाल, , श्री रमेश घिल्डियाल, श्री जबर सिंह कैंतुरा, श्री सुशील बुडाकोटी, श्री जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, श्री सुरेन्द्र सिंह रावत, श्री रमेश हितैषी, श्री प्रतिबिंब बडथ्वाळ, श्री दिनेश ध्यानी समेत कै साहित्यकारों न बोलि कि अमणि बगता कि जरूरत चा कि गढ़वाळि, कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल करे जा। यांका खातिर उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली लगातार सरकार तैं ज्ञापन देणों चा। अगनै बि मंच यीं मांग तैं पुरजोर ढंग से उठालु। अर उत्तराखण्डी या प्रतिनिधि नौं से न क्वी भाषा छै अर न भविष्य म क्वी व्यक्ति, संस्था या सरकार कै बि भाषा तैं यनि बैणै सकदा। भाषा क्वी खिचड़ि या साग नी जु वै तैं बणये जौ। भाषा ता सतत चलण वळि प्रक्रिया चा जैम एक शब्द तैं औण म अर हैंकि भाषा म जाण म दशकों लगि जंदन ता फिर कुछ लोग बैठिकि भाषा कु निर्माण कनम कैरि सकदन?
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली का संरक्षक डॉ विनोद बछेती न बोलि कि आज समय ऐगे कि हम तैं गढ़वाळी, कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल कना खातिर हा संभव प्रयास कन पोड़ला व अपणि मांग तैं तेज करण पोडलु। यां का खातिर रंगमंच, संस्कृति कर्मी, सामाजिक संगठनों तैं एक मंच परैं ल्याण पोडलु अर सब्यों कि सांझि आवाज जब उठलि ता सरकार तैं हमरि बात मनण खुणि मजबूर होण पोडलु।
श्री खजान दत्त शर्मा न बोलि कि गढ़वाळि अर कुमाउनी भाषाओं का दगड़ि जौनसारी भाषा तैं बि संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल करे जाण चैंद। वोंन बोलि कि हलांकि अज्यों जौनसारी म साहित्य सम्पदा उतगा नी जतगा हूण चैंद पण नै पीढि ल्यखणी चा। हमरि कोशिश चा कि लगातार जौनसारी म लेखन हो। उत्तराखण्ड लोक भाषा-साहित्य मंचा संयोजक श्री दिनेश ध्यानी न बोलि कि निकट भविष्य म जौनसारी परैं सेमिनार कु आयोजन करे जाण चैंद। मंच ये सेमिनार कि हर व्यवस्था तैं उठाणा खुणि तैयार चा पण जौनसारी का साहित्यकारों तैं अगनै औण पोड़लु।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश चन्द्र घिल्डियाल न अन्त म अपणि बात रखदा बोलि कि सच बात या चा कि तथाकथित उत्तराखण्डी या प्रतिनिधि भाषा कु न ता क्वी अस्तित्व चा न क्वी जरूरत चा। अमणि जरूरत यीं बात कि चा कि हम गढ़वाळि व कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल करणां खातिर जतना करां ता वो तर्क संगत बि चा अर समय कि मांग बि चा। ध्वनिमत से सब्योंन श्री घिल्डियाल जी की बात को समर्थन कैरि। डॉ बिहारी लाल जलन्धरी अर डॉ पृथ्वी सिंह केदारखण्डी न बोलि कि हम बि गढ़वाळि व कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल कना खातिर सहयोक कना खुणि तैयार छंवा। जै कु सब्योंन स्वागत कैरि अर यों द्वी साहित्यकारों से अपेक्षा कैरि कि भविष्य म हम सब लोग गढ़वाळि,कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवीं अनुसूची म शामिल कना खातिर मिलिकै जतन करला अर उम्मीद चा कि भाषा का नौ परैं अब क्वी बि यनि बात कै का तरपां बिटिन नि आण चैंद कि जां से कै तैं बि लाग लु कि गढ़वाळि, कुमाउनी भाषाओं तैं संविधानै आठवी अनुसूची म आणा म क्वी अवरोध या ब्यवधान लगौणा छन।
यां का अतिरिक्त उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा विगत साल 2016 बिटिन ग्रीष्मकालीन गढ़वाळि, कुमाउनी कक्षाओं का ऐ साल बि सफल संचालन का वास्ता सब साहित्यकारों न बोलि कि नै पीढी तैं भाषा संप्रेषण का खातिर ग्रीष्मकालीन कक्षाओं को आयोजन हूण चैंद। दगड़ा दगड़ि मंच को पंजीकारण व मंच द्वारा निकट भविष्य म एक स्मारिका को प्रकाशन करे जालु यीं बात परैं बि सब सहमत छया। सब्यों कु बुनु छौ कि सन् 2012 बिटिन उत्तराखण्ड लोक -भाषा साहित्य मंच दिल्ली महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान का अलावा लगातार भाषा सेमिनार समेत हर भाषाई आयोजन करदा आणों चा। यां का खातिर मंच तैं एक स्मारिका को प्रकाशन करण चैंद।
वरिष्ठ आन्दोलनकारी व भाषा प्रेमी श्रीमती प्रेमा धोनि ल बोलि कि सब्बि साहित्यकारों तैं गढ़वाळी, कुमाउनी का वास्ता काम करण चैंद व ये काम म समाज व संस्थाओं कु सहयोग बि लेण चैंद।
ये अवसर परैं उक्त वक्ताओं का अतिरिक्त कै साहित्यकार, समाजसेवी उपस्थित छया जौं म मुख्य सर्वश्री अनिल पन्त, श्री बृज मोहन शर्मा वेदवाल, श्री उमेश चन्द्र बन्दूणी, श्री प्रताप सिंह थलवाल, श्री दयाल नेगी, श्री आनन्द बल्लभ जोशी, श्री प्रदीप रावत खुदेड, श्री अनोप सिंह नेगी, श्री चन्द्र सिंह रावत स्वतंत्र, श्री नीरज बवाडी, श्री दीप नारायण भंडारी, श्री ओम प्रकाश ध्यानी, श्री राकेश शर्मा, श्री सुल्तान सिंह तोमर आदि उपस्थित छया। कार्यक्रम को संचालन उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच का संयोजक श्री दिनेश ध्यानी अर श्री रमेश हितैषी न संयुक्त रूप से कैरि।

1 टिप्पणियाँ
भलू प्रयास च। उम्मीद अर आस भी च कि जल्द ही "हमरी भाषा हमरी पछाण" संविधाने के 8वीं अनुसूची म शामिल होली
जवाब देंहटाएं