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जौनपुर का ऐतिहासिक मौण मेला जिसमें मछलियां पकड़ने की है परंपरा

JAUNPUR ROORKEE

जौनपुर का ऐतिहासिक मौण मेला जिसमें मछलियां पकड़ने की है परंपरा 

देहरादून : उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के स्थानीय मेले वहां की संस्कृति और परंपरा में विशेष महत्व रखते हैं। ये मेले न केवल वहां के लोगों के जन जीवन को उजागर करते हैं अपितु पर्यावरण के लिए भी लाभदायक होते हैं। ऐसा ही एक मेला टेहरी के जौनपुर क्षेत्र में मनाया जाता है जो राज मौण मेले के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि इस मेले की शुरुआत टेहरी नरेश ने सन 1866 में की थी।  तब से यह मेला हर वर्ष जून माह के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है। 156 वर्षों से मनाये जा रहे राज मौण मेला नदी में मछली पकड़ने के अनूठे तरीके के कारण लोगों का आकर्षण का केंद्र आज तक बना हुआ है और हज़ारों की संख्या में लोग इस मेले में पहुंचते हैं। 

विगत दो सालों के बाद आयोजित जौनपुर का ऐतिहासिक राज मौण मेला रविवार को धूमधाम से मनाया गया। रविवार के दिन कई गांवों के लोग सुबह से ही ढोल नगाड़ों की थाप पर लोकगीतों के साथ लोकनृत्य करते हुए नदी तट पर पहुंचे और फिर पूजा अर्चना कर नदी में मछलियां पकड़ने के लिए उतर गए ।  मेले में जौनपुर, जौनसार, रंवाई घाटी समेत आसपास के क्षेत्र के लगभग 20 हजार से अधिक ग्रामीणों ने शिरकत की। इस दौरान नदी में एक साथ आठ क्विंटल से अधिक टिमरू पाउडर डाला फिर जाल लेकर नदी में मछली पकड़ने के लिए कूद पड़े। प्रदीप कवि ने बताया कि अबकी बार नैनबाग क्षेत्र के करीब 16 गांवों के लोगों ने दो से तीन सप्ताह में टिमरू पाउडर को तैयार किया। दो साल बाद आयोजित हुए मेले को लेकर ग्रामीणों में उत्साह और खुशी देखी  गई।

क्या है मौण मेला 

राजपरिवार द्वारा शुरू हुए इस मेले में मौण का प्रयोग किया जाता है। मौण एक प्रकार का पाउडर होता है जिसे औषधीय पौधे टिमरू की छाल से तैयार किया जाता है जिससे नदी के पानी और मछलियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। 

जिस टिमरू पाउडर को ग्रामीण मछली पकड़ने के लिए नदी में डालते हैं, उसको बनाने के लिए गांव के लोग एक माह पूर्व से तैयारी में जुट जाते है। प्राकृतिक जड़ी बूटी और औषधीय गुणों से भरपूर टिमरू के पौधे की तने की छाल को ग्रामीण निकालकर सुखाते हैं फिर छाल को ओखली या घराट में बारीक पीसकर पाउडर तैयार करते हैं। टिमरू पाउडर के नदी में पड़ने के बाद कुछ देर के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं जिन्हें ग्रामीण पकड़ते है और जो पकड़ में नहीं आती वो ताजे पानी में जाकर जीवित हो जाती हैं। मौण मेले को पर्यावरण संतुलन के लिए भी उपयुक्त बताया जाता है।  बताते हैं कि जब लोग हजारों की संख्या में नदी में उतरते हैं तो उससे नदी के अंदर जमी काई और अन्य प्रकार की गन्दगी साफ होकर पानी में बह जाती है। 

स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ लोग नदी में ब्लीचिंग पॉवडर डालकर मछलियों का अवैध पतन कर रहे हैं जिस पर कि तुरंत रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जागरुकता अभियान चलाकर लोगों को इसके प्रति जागरूक करेंगे। 

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