वैज्ञानिकों की शोध के मुताबिक हिमालयन बुरांश कोरोना वायरस
की अचूक औषधि
नई दिल्ली: आज जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी बीमारी से परेशान है ऐसे में भारत के हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से इसका इलाज मौजूद है। उत्तराखंड समेत कई हिमालयी क्षेत्रों के जंगलों में खिलने वाले बुरांश से आप सभी भलिभांति परिचित होंगे। उत्तराखंड व हिमांचल के लोग बुरांश के औषधीय गुणों को वर्षों से जानते हैं और विभिन्न रोगों में इसका इस्तेमाल भी करते आ रहे है। किंतु अब सामने आई एक ताज़ा रिसर्च रिपोर्ट ने बुरांश को कोरोना महामारी के दौर में और भी ज्यादा उपयोगी बना दिया है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक शोध में पाया गया है कि हिमालयी फूल बुरांश के अर्क का सेवन करने से कोरोना वायरस से निजात पाया जा सकता है। उनके मुताबिक कोरोना बीमारी को दूर करने के लिये बुरांश का पौधा एक अचूक औषधि है।
बता दें कि बुरांश का पौधा ज्यादातर उत्तराखंड, हिमांचल और कश्मीर के ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है। स्थानीय लोग इसकी पंखुड़ियों से निर्मित जूस का प्रयोग वर्षों से करते आ रहे है। उनके मुताबिक इसके सेवन से स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है और हार्ट के लिए तो यह रामबाण औषधि है।
वैज्ञानिकों के मतानुसार बुरांश का पौधा (रोडोडेंड्रन अर्बोरियम) कोरोना जैसी वाइरस से लड़ने में हमारी मदद कर सकता है। इसके फूलों के पंखुड़ियों में मौजूद फाइटोकेमिकल नामक पदार्थ कोरोना को मल्टीप्लाई होने से रोकता है। इसमें ऐसे एंटी वायरल गुण होते हैं जिसके कारण वायरस इनके सामने टिक नहीं पाते।
बायोमोलिक्यूलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी (IIT, Mandi) और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा बुरांश पर गहन शोध के बाद यह रिपोर्ट पेश की गयी । कोरोना महामारी के बीच वैज्ञानिकों की यह शोध रिपोर्ट मानव जाति के लिये बड़ा वरदान साबित हो सकती है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बुरांश की पंखुड़ियों को पानी में उबालकर जो अर्क निकाला गया उसमें काफी मात्रा में क्विनिक एसिड और इसके डेरिवेटिव पाए गए। प्रायोगिक परीक्षण के नतीजों में पाया कि बुरांश की पंखुड़ियों के अर्क की गैर-विषाक्त खुराक से वेरो ई 6 कोशिकाओं में कोविड का संक्रमण रुकता है। लेकिन खुद इसकी कोशिकाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
मॉलिक्युलर गतिविधि के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि बुरांश की पंखुड़ियां फाइटोकेमिकल्स वायरस से लड़ने में दो तरह से प्रभावी होती हैं। ये मुख्य प्रोटीएज से जुड़ जाते हैं, जो (प्रोटीएज) एक एंजाइम है और वायरस को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस शोध में वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व डॉ. श्याम कुमार मसकपल्ली, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोएक्स सेंटर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंस, आईआईटी मंडी ने किया है। डॉ. रंजन नंदा और डॉ. सुजाता सुनील इस शोध टीम के अहम सदस्य रहे हैं। शोध-पत्र के सह-लेखक डॉ. मनीष लिंगवान, शगुन, फलक पहवा, अंकित कुमार, दिलीप कुमार वर्मा, योगेश पंत, लिंगराव वीके कामतम और बंदना कुमारी।
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