करंट पोस्ट

8/recent/ticker-posts

जीवन का एक ऐसा संस्मरण जब बाघ से हुआ हमारा आमना-सामना



जीवन का एक ऐसा संस्मरण जब बाघ से हुआ हमारा आमना-सामना 

आज वर्ष 2021 का अंतिम दिन है और कोरोना फिर से लोगों के दिल में भय पैदा करने लगा है। इस भय के चलते ही मुझे आज एक बहुत पुराना संस्मरण याद आ गया। सन तो याद नहीं पर मेरा नव यौवन का दौर था उस समय गांव में हम उम्र मित्रों के साथ खूब हठखेलियां करते रहते थे। यौवन के चंचल स्वाभाव के कारण कई बार हमारी हरकतों से बड़े बुजुर्गों को असहजता भी महसूस होती है पर यौवन तो अपने प्रवाह में बहता रहता है वो कहां किसी की परवाह करता है वही सब हमारे साथ भी चल रहा था। 

पहाड़ों में जब धान की कटाई होती है तो उसके बाद च्यूडे (चिवड़ा) बनाने की परंपरा काफी थी और आपने भी कभी बनाए हैं तो आपको ज्ञात होगा ताजे ताजे च्यूडे कितने स्वादिष्ट होते थे। स्टार्टर में उस समय इसका काफी प्रचलन देखने को मिलता था और लोग भी बड़े चाव से इसे खाते थे किन्तु जबसे शहरीकरण हुआ और  फ़ास्ट फ़ूड का जमाना आया तो धीरे धीरे लोग इस स्वादिस्ट और स्वास्थ्यवर्द्धक च्यूडे को भूलते चले गए। कहने का तात्पर्य यह है कि च्यूडे केवल स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं अपितु दिलों को जोड़ने का काम भी करता था क्योंकि जब सब मिलकर एक साथ इसे बनाते थे तो भूजते और कूटते समय एक दूसरे का सुख-दुःख और दिल की भावनाओं का आदान प्रदान होता था जिससे आपस में प्रेम बढ़ता था और समस्याओं का समाधान भी तुरंत मिल जाता था।  

खैर बात करते हैं युवाओं की जिसमें मेरे साथ मेरी कुछ बुवाएं, बहनें, चाचा और भाई थे जो दिनभर कुछ न कुछ नया प्लान बनाते रहते थे।  एक दिन सबने मिलकर च्यूडे बनाने का प्लान बनाया और शाम को खाना खाने के बाद का समय तय हो गया। रात खाना खाने के बात सभी तय समयनुसार चेतराम चाचाजी के चौक में पहुंच गए और चूल्हे के  लिए लकड़ी व भिगोये हुई धान के साथ अपनी तयारी में लग गए। धान को भुनने का काम लड़कों ने संभाला और कूटने का लड़कियों ने। यहाँ बता दूं की धान भूनते समय जब वो थोड़ा सा भूरे रंग के और उछलने लगे तब उन्हें तुरंत ओखली में डालकर कुटा जाता है। अच्छी तरह कूटने के बाद उन्हें फेंटकर भूसा अलग कर दिया जाता है। इस च्यूड़ा बनाने के क्रम में व आपस में हंसी मजाक करते हुए हमें अपने आस पास क्या घट रहा है उसका भी आभास नहीं था बस हम च्यूडे बनाने के आनंद में डूबे हुए थे। इसी बीच हमारे साथ बहादुर काका थे वो बीड़ी सुलगाने लगे तो अचानक उनकी नज़र पास में ही कुशला चाचा के चौक में बड़ी मस्ती में लेटे बाघ पर पड़ी और वो जोर से चिल्लाये। उनके इस तरह चिल्लाने पर हम सभी घबरा गए और उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने बाघ की और इशारा कर दिया। बाघ को देखते ही हम सभी डर से कांपने लगे क्योंकि हमारे शोर से बाघ भी उठकर हमारी और ही देख रहा था ऐसे में हमें कुछ नहीं सूझ रहा था की क्या करें पर इतने में बहादुर काका जी थोड़े संभले और उन्होंने चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर बाघ की और फेंक दी आग देखकर बाघ ने एक लंबी छलाँग निचे की और लगाई और देखते देखते आँखों से ओझल हो गया।  उसके चले जाने के बाद भी हम सब इतने भयभीत थे कि कुछ देर तक तो कुछ समझ ही नहीं आया की यह क्या हो गया।  कुछ देर बाद फिर से एक दूसरे का मजाक बना नार्मल हुए और सभी अपने अपने घरों को गए। जीवन से जुड़े ऐसे कई संस्मरण हमारे साथ होते है जो विकट समय में हमारा हौंसला बढ़ाते हैं। 

©द्वारिका चमोली (डीपी)













एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ