ग्राम चमोला में पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई गई पाती (नंदा अष्टमी) पूजा
भगवान शिवजी को उत्तराखंड में सबसे अधिक पूजा जाता है उसके बाद मां नंदा की पूजा होती है। मां नंदा तो यहां के रोम रोम में बसी है और लोग उनको अपनी आराध्य देवी, ध्याण के रूप में अधिक मानते है। नंदा हिमालय की पुत्री है और शिवजी से उनका विवाह हुआ है इस कारण उनका मायका भी और ससुराल भी उत्तराखंड में है। जब वो ससुराल से मायके आती है तो लोग ख़ुशी से झूम उठते लेकिन उनके ससुराल विदा होते समय लोग अधिक व्याकुल हो उठते है और उन्हें विदा करते समय सभी क्षेत्रवासी आँखों में अश्रु लिए उन्हें दूर तक छोड़ने जाते है। नंदा अष्टमी मनाने का यही धेय भी है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी चमोली जिले के अनेक गांवों में 13 और 14 सितम्बर को पाती (नंदा अष्टमी ) पूजा का आयोजन किया गया। इस विशेष पूजा में गांव के सभी लोग मिलकर गेंहू को एक मिट्टी के पात्र या लोटे में भिगोकर अपने अपने घरों में रखते हैं जिसे स्थानीय भाषा में ब्यूडा कहा जाता है। इसके लिए विधिवत पूजा होती है और गांव में माता के थान पर ढोल दमाऊ की थाप पर स्त्रियों के द्वारा मां नंदा के गीतों से उनके जीवन का पूरा वृतांत बयां किया जाता है और उन्हें अपने थान पर आने का आह्वान किया जाता है।
अगले दिन फिर से स्नान ध्यान करने के बाद पूजा अर्चना के साथ ही सभी ने माता के दर्शन किये और फिर कुछ लोगों ने मां नंदा के दूसरे स्वरुप उफ्रें देवी की पूजा के लिए गांव से आधा किलोमीटर ऊपर उफ्रें धार में पूजा स्थल पर जाकर तो कुछ लोगों ने केदारु देवता के स्थान पर जाकर उनकी पूजा अर्चना की और वही पर सबने मिलकर प्रसाद बनाया जिसका भोग लगाकर सबने वही पर बैठकर प्रसाद ग्रहण किया उसके बाद सब अपने अपने घरों को विदा हुए और फिर रात को जिसे काल रात्रि कहा जाता है में पहुँचकर जागरण में बैठ जाते है वहां पर पूजा की सारी विधियों के बीच गांव पर छाई काली छाया को दूर करने के लिए सतनाजा रखकर और देवताओं को याद कर छाने को गांव से दूर किसी स्थान पर रखा जाता है फिर महिलाओं के मधुर स्वर में मां नंदा के जागर गीतों और औजी (बाजे वाले) द्वारा बृध लगाकर ढोल दमों की विभिन्न तालों पर देवलोक से देवता भी मां नंदा को आशीर्वाद देने के लिए अवतरित होते है। अंतिम दिन प्रातः ब्यूडों की गागरी को मंगरे (कुवें या फिर पानी की धारा) पर ले जाकर धोया जाता है और फिर पूरे विधान के साथ मां के मंदिर पर लाकर उनकी ससुराल विदाई की तैयारी की जाती है।
पइयाँ के पेड़ की टहनी में कोंडी ( एक प्रकार का अनाज) को उसमें लगाकर साड़ी और चुन्नी के साथ डोली तैयार की जाती है फिर मंत्रो के साथ उसे जागृत कर वाद्य यंत्रों की थाप के साथ डोली गांव के प्रत्येक घर से विदा लेने जाती है। करुणा से भरी मां नंदा सबके गले लगकर अत्यंत दुखी मन से विदा लेती है और सभी लोग अपने सामर्थ्य व श्रद्धा से समोण के रूप में कुछ न कुछ मां नंदा को भेंट स्वरूप देते हैं। यह दृश्य देखकर हर व्यक्ति की आँखों से अश्रु धारा स्वतः बहने लगती है। ऐसा ही दृश्य मां के ससुराल में उनके आगमन की तैयारी में देखा जा सकता है।
इस सुन्दर आयोजन को देखने के लिए गांव के सभी लोगों के अलावा आस पास के गांवों से भी लोग पधारे थे। इस आयोजन की पूरी तैयारी भूतपूर्व प्रधान समीर मिश्रा और बबलू चमोली के नेतृत्व में हमारे गांव की युवा टीम ने बहुत ही शानदार और भक्तिभाव के साथ की जिसके लिए हम सभी ग्रामवासी उन्हें साधुवाद देते हैं।
द्वारिका चमोली
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Jai maa Nanda Devi
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