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उत्तराखंड : जनपद चमोली में प्रतिवर्ष लगने वाले दो दिवसीय अनुसूया मेले की तैयारियां हुई शुरू

 
उत्तराखंड : जनपद चमोली में प्रतिवर्ष लगने वाले दो दिवसीय अनुसूया मेले की तैयारियां हुई शुरू

गोपेश्वर : उत्तराखंड के चमोली जनपद में प्रतिवर्ष दत्तात्रेय जयंती के पावन अवसर पर आस्था और सांस्कृतिक उत्साह का सबसे बड़ा पर्व माने जाने वाले सती शिरोमणि माता अनुसूया मेले का आयोजन 3 और 4 दिसंबर को होने वाला है। इस दो दिवसीय मेले की प्रशासन ने जोर शोर से तैयारियां शुरू कर दी है। 

माता अनुसूया मेले को सफल बनाने के लिए पुलिस ने प्रभारी निरीक्षक गोपेश्वर नरेश राठौड की अध्यक्षता में मंडल में एक महत्वपूर्ण गोष्ठी आयोजित की गई। इस बैठक में मंदिर समिति के पदाधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों, मंदिर समिति और व्यापार मंडल के लोगों के साथ मंथन किया गया। 

प्रभारी निरीक्षक ने सभी स्थानीय स्टेकहोल्डर्स के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया, ताकि मेले के दौरान किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो। इस दौरान विशेष रूप से मेला क्षेत्र में पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती, भीड़ प्रबंधन और असामाजिक तत्वों पर पैनी नज़र रखने की रणनीति बनाई गई। मेले के दौरान वाहनों के दबाव को देखते हुए पार्किंग व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने और जाम की समस्या से निपटने के लिए यातायात पुलिस द्वारा विशेष प्लान तैयार किया जाएगा। 

माता के आशीर्वाद से संतान प्राप्ति की मनोकामना होती है पूर्ण 

माना जाता है कि अनुसूया माता के दर्शन और पूजन से संतान-प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है, इसी कारण देशभर से निसंतान दंपत्ति यहां आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। मेले की सबसे विशेष परंपरा रातभर चलने वाला वह अनुष्ठान है, जिसमें देव डोलियों के आगे बैठकर महिलाएं माता की स्तुति करती हैं, फिर स्वप्न-दर्शन की प्रार्थना के साथ विश्राम करती हैं। स्वप्न में माता के दर्शन मिलने पर वे बाहर आती हैं और प्रातःकाल दंपत्ति माता की डोलियों की पूजा कर आशीष प्राप्त करते हैं।

अनुसूया माता मंदिर से एक किलोमीटर आगे अत्रि मुनि आश्रम स्थित है, जहाँ चट्टानों में बनी उनकी गुफा दर्शनीय है।

कैसे पहुंचे अनुसूया माता मंदिर 

अनुसूया मंदिर पहुँचने के लिए श्रद्धालु पहले चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर पहुंचे फिर वहां से लगभग 10 किलोमीटर दूर मंडल बाजार तक बस या टैक्सी से जाया जाता है, और वहाँ से मंदिर तक 5 किलोमीटर पैदल मार्ग है। मेले के दौरान मंदिर परिसर में ठहरने के लिए धर्मशालाएँ और कमरे उपलब्ध रहते हैं। 


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