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कुछ सत्ता स्वीकार करे, कुछ हम स्वीकार करेंगे-हेमा उनियाल



कुछ सत्ता स्वीकार करे, कुछ हम स्वीकार करेंगे-हेमा उनियाल

(उत्तराखंड रजत जयंती वर्ष पर साहित्यकार डॉ. हेमा उनियाल की खास रिपोर्ट)

नई दिल्ली : उत्तराखंड राज्य अपनी स्थापना की 25 वीं वर्षगांठ (रजत जयंती वर्ष ) आज मना रहा है। 9 नवंबर 2000 को यह उत्तरप्रदेश से अलग होकर नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। सर्वप्रथम इस राज्य निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले और अपना बलिदान देने वालों को शत - शत नमन।

क्या पाया

इन 25 वर्षों में क्या हासिल किया और कितना कुछ बदला इस पर एक ज़मीनी आंकलन, गांवों में जाकर और स्थानीय लोगों से जानकारी लेकर समाज के सम्मुख रखने का मैंने प्रयास किया है।

बीते 8,10 वर्षों में उत्तराखंड के ग्रामवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है जैसे गैस के कनेक्शन, बिजली, पानी, राशन, वृद्धावस्था पेंशन, गांवों में पंचायत भवन, सामुदायिक भवन का निर्माण, पुश्तों का निर्माण, हर घर शौचालय, बीपीएल में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक लाख 30 हजार लोन की व्यवस्था, पक्की गौशाला के लिए 35 ,000 की मदद, बकरी बाड़ा के लिए मदद, जानवरों जिनमें गाय, बकरियों को बाघ , भालू द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने पर आर्थिक सहायता, मनरेगा के तहत स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथमिकता आदि कार्य हो रहे हैं।ग्रामवासियों का यह भी कहना है कि कोरोना काल में यदि सरकारी तौर पर राशन, दालें आदि सामान वितरित न किया गया होता तो आधे से अधिक लोग भूख से ही चल बसे होते। कुल मिलाकर इस दृष्टि से गांवों की स्थिति सुधरी है। यूनिफॉर्म सिविल कोड और धर्म की स्वतंत्रता विधेयक भी उत्तराखंड में लाया गया है।

क्या होना चाहिए

क्या होना चाहिए था जो नहीं हो पाया? इस पर अधिकांश लोगों की एक स्पष्ट राय है कि जैसे पानी के टैंक बन चुके हैं, हर घर नल लग चुके हैं किंतु कई गांवों में पानी अभी तक नहीं पहुंचा। अभी तक भी हर गांव में पक्की सड़क नहीं पहुंची है। स्वास्थ्य सेवाएं आम आदमी की पहुंच से दूर हैं। योजनाएं शुरू तो होती है किंतु उनकी समाप्ति की कोई तिथि निश्चित नहीं होती।कई वर्षों तक खींच जाती हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवागमन की सही व्यवस्था अभी तक न होने से गांवों से पलायन हुआ है।सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ा है। डेमोग्राफी चेंज हुई है। कारगर भू- कानून होना चाहिए था। साथ ही मेडिकल कॉलेज और नई कंपनियों में स्थानीय लोगों को कम प्रतिनिधित्व मिल रहा है। नशे का अधिक बोलबाला हुआ है, सुरक्षा के स्तर पर कमी आई है।गांवों के निकट के शहर सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर हुए हैं। चिड़ियाघर और शहरों से लाकर उत्तराखंड में जानवर छोड़े जा रहे हैं आदि।

बंजर खेती व खंडर होते मकान

अब गांवों में जो मकान और खेती बंजर हो रही है उसके विषय में कहा जाता है कि पूर्व में पारिवारिक स्थिति के अनुसार एक पिता के कई पुत्र होते थे तो आगे जो भी मकान व जमीन थी वह सभी भाइयों में बंट गई। अब प्रवास में अधिकांश लोग अच्छा ही कर रहे हैं तो उन्हें गांव के मकानों की कोई जरूरत महसूस नहीं हुई या इसके पीछे स्वास्थ्य कारण भी हो सकते हैं और उन्होंने दूसरे भाइयों को भी वह संपत्ति दान नहीं की । अधिक हिस्सेदारी और दूसरे भाइयों को भी बनाने के लिए न देना एक बड़ा कारण मकानों के खंडहर होने का रहा। चकबंदी का इसमें शामिल न होना भी एक कारण रहा है।यह विचार कि न हम बनाएंगे न किसी को बनाने देंगे इसके मूल में रहा।आज उन खंडहर मकानों को भी उसके स्वामित्वधारी किसी को देने को तैयार नहीं है।


कहा यह भी जाता है कि जब शहर में जाकर एक पहाड़ी व्यक्ति किसी भी आर्गेनाइजेशन, प्राइवेट सेक्टर में अपनी सेवाएं देता है तो वह अपना सर्वस्व उस कंपनी की सफलता के लिए लगा देता है इसलिए उत्तराखंड के लोगों की मेहनत और ईमानदारी को लेकर एक अच्छी शाख बनी हुई है। किंतु जब उसे अपने कार्य या व्यवसाय में मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती है तो उसकी गति धीमी पड़ जाती है।

शादी, ब्याहों में मदिरा का सेवन बड़ा है। बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं। नैतिक आदर्शों पर भी इससे फर्क पड़ा है। कुल मिलाकर स्थिति मिलीजुली है । जो मेहनती हैं वह शहरों से पहाड़ में आकर भी बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और पहाड़ से शहरों में जाकर भी लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं।

इसलिए अंत में यही कहा जा सकता है कि जो बड़े कार्य हैं जिन्हें व्यक्ति विशेष संपन्न नहीं कर सकता उन्हें सरकार एक निश्चित समय के अंतर्गत पूरा करे। योजनाओं के शुरू होने और समाप्त होने की एक निश्चित तिथि निर्धारित हो।पारदर्शिता, दूरदर्शिता, ईमानदारी उत्तराखंड के विकास को लेकर सभी में बने।अपने कार्य व्यवहार में हर किसी के द्वारा पूरे समर्पण और ईमानदारी से कार्य हो।

निःसंदेह हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं इसलिए कुछ सत्ता स्वीकार करे कुछ हम स्वीकार करेंगे। भ्रष्टाचारमुक्त एवं सुरक्षित उत्तराखंड सभी की प्रथम वरीयता है।

उत्तराखंड के विकास में सभी मिलजुलकर सहयोग करें।

दिव्य पहाड़ पोर्टल की ओर से सभी उत्तराखंड वासियों को "उत्तराखंड रजत जयंती" की हार्दिक शुभकामनाएं।


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