नई दिल्ली : दिल्ली एनसीआर समेत उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाउनी भाषा शिक्षण कक्षाओं का संचालन करने वाले व गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वाले अग्रणी संगठन उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली ने उत्तराखण्ड सरकार से मांग की है कि उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाउनी भाषा अकादमी का गठन किया जाये। साथ ही उत्तराखण्ड विधानसभा से गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रस्ताव पास करके केंद्र सरकार को भेजा जाये।
अदद भाषा अकादमी का गठन नहीं होना निराशाजनक
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली से संयोजक दिनेश ध्यानी ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भेजे पत्र में उक्त मांगे रखी हैं। उन्होंने कहा कि मंच द्वारा इस सम्बन्ध में पूर्व में भी कई बार पत्र भेजकर व मुख्यमंत्री व मंत्री से मुलाकात करके भी मांग पत्र सौंपा गया है लेकिन अभी तक इस सम्बन्ध में प्रदेश सरकार की तरफ से कोई निर्णय नहीं लिया गया है। श्री ध्यानी ने कहा कि हमें आशा है कि प्रदेश सरकार हमारी उक्त जायज मांगों पर शीघ्र ही निर्णय लेगी। जब उत्तराखण्ड राज्य माँगा गया था तब हमारी पहचान का अहम् सवाल था जो कि हमारी भाषा, संस्कृति, सरोकारों पर आधारित था। इसलिए राज्य बनने के पच्चीस साल बाद भी एक अदद भाषा अकादमी का गठन नहीं होना निराशाजनक है। जिस राज्य के लिए दर्जनों शहीदों ने बलिदान दिया, वर्षों तक जनता ने संघर्ष किया, यातनायें झेलीं लेकिन राज्य बनने के बाद भी हालात जस के तस हैं। इसलिए अब तो कम से कम सरकार को इस पर निर्णय लेना चाहिए।
गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने हेतु सरकार करे पहल
एक सवाल के जवाब में कि कुछ लोगों का कहना है कि उत्तराखण्ड में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए कार्य कर रहा है तो अलग से अकादमी की क्या जरूरत है? श्री ध्यानी ने कहा की जो लोग इस प्रकार की बातें करते हैं उनको पता होना चाहिए कि उत्तराखण्ड में हिंदी, संस्कृत, उर्दू, पंजाबी अकादमी पहले से हैं और ये सब भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं लेकिन उत्तराखण्ड भाषा संस्थान इन भाषाओं के लिए भी कार्य करता ही है कई सम्मान व पुरस्कार प्रदान करता है। अगर भाषा संस्थान ही भाषा विकास का आधार है तो फिर उक्त चारों भाषाओं की अकादमी क्यों? श्री ध्यानी ने कहा हम किसी भाषा के विरोधी नहीं हैं। लेकिन उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाउनी भाषा अकादमी का गठन होना ही चाहिए। साथ ही गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रदेश सरकार का सहयोग चाहिए। इसलिए उत्तराखण्ड विधानसभा से प्रस्ताव चर्चा के बाद पास करते केंद्र को भेजने की हमारी मांग प्रदेश सरकार से है।
श्री ध्यानी ने कहा कि जब देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के पक्षधर हैं, उत्तराखण्ड आगमन पर मोदी जी ने कई बार अपने सम्बोधन में कहा है कि उत्तराखण्ड के लोगों को अपनी भाषा, साहित्य की रक्षा करनी चाहिए। ये भाषा बची रहनी चाहिए। साथ ही भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति- 2020 के माध्यम से देश में प्राथमिक स्तर तक मातृ भाषा में शिक्षा देने का प्रावधान रखा है। साहित्य अकादमी पूर्व में हमारे कई साहित्यकारों को सम्मान प्रदान कर चुकी है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं की पुस्तकों का अनुवाद अन्य भाषाओं में किया जा रहा है व अन्य भाषा की पुस्तकों का अनुवाद गढ़वाली, कुमाउनी में हो रहा है तो फिर हम लोग ही अपनी पौराणिक भाषाओं के प्रति उदासीन क्यों हैं ?
नई पीढ़ी को अपनी भाषा, साहित्य व संस्कृति से जोड़ना होगा
श्री ध्यानी ने कहा कि अब समय आ गया है कि अगर हमने अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति की रक्षा करनी है तो इस दिशा में सरकारी व संस्थागत आगे आना होगा। क्योंकि आज के समय में पलायन और कई वैश्विक परिवर्तन के कारण स्थानीय भाषा व साहित्य, संस्कृति आदि का अस्तित्व खतरे में है। उत्तराखण्ड की गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं के साथ भी यही सब हो रहा है। हम एक समाज के रूप में तो उन्नति कर रहे हैं, निजी स्तर पर विकास कर रहे हैं। लेकिन जब भाषा, साहित्य की बात आती है तो अधिकांश लोग चुप ही रहते हैं। इसलिए आज समय की आवश्कयता है कि हमें अपनी भाषाओं के प्रति इस उदासीनता को त्यागना होगा। नई पीढ़ी को अपनी भाषा, साहित्य, संस्कृति से जोड़ना होगा। हमारी चिंता यह है कि अगर हम अपनी भाषाओं की इसी प्रकार से अवहेलना करेंगे तो फिर आने वाले समय में हमारी गढ़वाली, कुमाउनी भाषाएँ भी संकट में आ जाएँगी। इसलिए आज समय की आवश्यकता है कि उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाउनी भाषा अकादमी बने, साथ ही गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।

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