ज्योतिर्मठ : बुधवार को ज्योतिर्मठ विकास खंड के अंतर्गत सलूड़ डुंग्रा गांव में विश्व प्रसिद्ध रम्माण मेले का आयोजन किया गया। आयोजन में पौराणिक परम्पराओं से पूजा अर्चना कर ढोल दमाऊं की 18 तालों पर जागर गीतों के साथ रामायण का मंचन किया गया। भूमियाल देवता मंदिर के प्रांगण में लोक कलाकारों ने ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते हुए राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान बने पात्रों ने रामायण का मंचन किया। जिसमें राम जन्म, सीता स्वयंवर, वन प्रस्थान, सीता हरण, हनुमान मिलन, लंका दहन का वर्णन किया गया। दर्शकों के मनोरंजन के लिए मेले का विशेष आकर्षण मुखौटा नृत्य आयोजित किया गया। जिसमें मोर-मोरनी नृत्य, बणियां- बणियांण, ख्यलारी आदि नृत्य किए गए। मेले के दौरान भूमियाल देवता के पाश्वा ने भी नृत्य किया। उसके बाद माल नृत्य किया गया। पौराणिक परंपरा के मंचन व नृत्य को देखकर लोग भाव विभोर हो गए।
रम्माण, सलूड़ गांव की 500 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी परम्परा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन यूनेस्को द्वारा साल 2009 में इस रम्माण को विश्व की सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया गया था। जोड़े पारंपरिक ढोल-दमाऊं की थाप पर मोर-मोरनी नृत्य, बण्या-बाणियांण, ख्यालरी, माल नृत्य सबको रोमांचित करने वाला होता है और कुरजोगी सबका मनोरंजन करता है।
मान्यता है कि आदिगुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में नई जान फूकने के लिए पूरे देश में चार मठों की स्थापना की थी। ज्योतिर्मठ के आस पास, शंकराचार्य के आदेश पर उनके कुछ शिष्यों ने गांव-गांव में जाकर पौराणिक मुखौटों से नृत्य करके लोगों में चेतना जगाने का प्रयास किया था जो धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में इस समाज का अभिन्न अंग बन गया।
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