आजकल देश में भारत और इंडिया नाम चर्चा में है। इस पर देश के लोगों के अपने अपने मत है, जिन्हें समझकर लगता है कि हम भारतीय आपस में बंटे हुए है। ऐसे में कवियों ने भी इस विषय पर कविता के माध्यम से देश को जोड़े रखने का प्रयास शुरू कर दिया हैं। उन्हीं में से एक युवा कवियित्री बीना नयाल देश से कर रही है आह्वान ।
आह्वान
छोड़िए इंडिया बनाम भारत का अलाप
राष्ट्रीय हित में प्रज्वलित करे नूतन मशाल
कोढ़ सी महंगाई पर बेरोजगारी रूपी खाज
हताश ह्रदय कैसे करें शताब्दी वर्ष का आगाज
नित संसाधनों का दोहन और अमृत की बंदरबाट
घुट घुट विष व्याकुल जन, देखें कौन से हाट
देख लड़खड़ाते पाए, लोकतंत्र की सेज के
कूकती कलम राग दरबार, आस में दहेज के
पितरों के तर्पण संग, गलियाने का चला रिवाज
अंग अंग छेदन को उद्धत, राहुपुत्रों की कतार
हित गगन को छूने को उद्धत , बढ़ती मन की लघुता
हो नाम से कैसे इंसाफ, इंसानियत से जो हो शत्रुता
बदले तन का आवरण ,चित्त न निर्मल हो पाता
रिस रहा हो पोर पोर , वंशानुक्रम न अछूता रह पाता
जाग जनता तू जनार्दन, प्राण पाता तुझसे यंत्र
तू भाग्य रचयिता भारत का, स्वप्न देखे जो भरत
तुलसी सी राष्ट्रभक्ति हो, कर्म गीता हो प्रधान
हो निर्मल अंतःकरण, करने से पूर्व महाप्रयाण
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