चंद्र सिंह रावत "स्वतंत्र"
देवभूमि हिमवंत के जनपद अल्मोड़ा विकास खंड स्याल्दे पट्टी बिचला चौकोट में । जुनियागढ़ी के ठीक पूर्व में जौरासी का ढैया और हिमालय की धवल चोटियां, पश्चिम में भारत विख्यात मां कालिंका (काली जी) का मंदिर और समूचा पौड़ी गढ़वाल, उत्तर में उफरैखाल, विनसर महादेव और चमोली गढ़वाल, तथा दक्षिण में मां मानिला का मंदिर और विश्व प्रसिद्ध नेशनल कॉर्बेट पार्क है। यहां से हिमालय की चोटियों को देखने का अपना ही एक अलौकिक आनंद है। चारों ओर दृष्टिपात करें तो उत्तराखंड की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। वर्तमान में जुनियागढ़ी की चोटी पर मां वैष्णो देवी का ख्यातिलब्ध मंदिर स्थापित है। देश के कोने कोने से लोग यहां मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के उद्देश्य से आते हैं। जो भी यहां आता है मां के दरबार से खाली नहीं जाता ऐसी जनश्रुति है। जुनियागढ़ी जाने के लिए आप देश के किसी भी कोने से बस, अपनी कार, मोटर साइकिल या रेल मार्ग से रामनगर तक आ सकते हैं। उसके बाद नेशनल कॉर्बेट पार्क, मरचूला, डौटियाल, चित्तौड़, इकूखेत होते हुए जुनियागढ़ी के मंदिर तक पहुँच सकते हैं। रामनगर से इसकी दूरी 110 किलोमीटर है। यह स्थान कभी गढ़वाल और कुमाऊँ के राजाओं का केंद्र होता था। यहां पर कभी राजा का महल होता था। यहां पर गोरखाओं के आक्रमण से बचने के लिए बड़ी बड़ी सुरंगें बनाई गईं थी। जिनके अवशेष यहां पर यदा कदा मिलते रहते हैं। यहां से सुरंगें केलानी, खडकू भनेरिया, सेरा, चौंरीखाल, ग्वाड़ीगाँव, जालीखान, आदि गांवों के लिए बनाई गईं हैं। जिन पर काम होना शेष है।
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जुनियागढ़ी के बांज के जंगलों के स्रोतों से पानी निकलकर खड़कू भनेरिया से सिसकणी रौल और वहां से तल्ला भनेरिया के रौल से होते हुए सेरा गाँव के सौणी गदयर तक बहती है। दूसरी तरफ ग्वाड़ीगाँव से नीचे सेरा गाँव के क्यारू रौल तक बहती है। तीसरी तरफ गुदलेख गाँव से बहकर सेरा गाँव के क्यारू रौल तक बहती है। चौथी तरफ कमेटपानी से चोंफला रौल, सेरा गाँव के शिवालय तक बहती आती है। ये सभी गधेरे बगोचया आमौ डाअ स्थान पर मिलते हैं और फिर ठंडपाणी में संगम होता है। मल्ला मसोड़ के ढैये से भी एक छिरोली बहती है जिसमें सिर्फ वर्षा ऋतु में पानी होता है। जालीखान, इकूखेत, बाँजाडय्यारा, मल्ला ग्वालीगाँव, तल्ला ग्वालीगाँव, मल्ला चनोली की तरफ से बहकर केलानी सिरफटयू होते हुए सेरा के ठंडपाणी में संगम होता है। इसके अतिरिक्त मल्ला चनोली और तल्ला चनोली की तरफ से भी एक छिरोली बहती है जो सिरफटयू में कड़ाकोटियों के घट पर मिलती है। जड़पानी, तल्ला चनोली, सिलकोट की तरफ से बहकर यह पंचोलीगाँव के घट पर मिलती है। मल्ला मसोड़, तल्ला मसोड़ से भी एक छोटी छिरोली बहती है। वहां से यह पंचोलीगाँव, सिमलचौरा होते हुए रतखेत की ओर बहती है। जहां से इसको डोभरी ढलान नाम मिलता है। तिमिलखेत, बितोड़ी की तरफ से भी एक गधेरा बहकर जयंतेश्वर पर मिलता है। सिमलचौरा, रतखेत, तल्ला सिरा, पिलखी के रौल को डोभरी ढलान कहते हैं जहां से यह बिनौ (विनोद नदी) में मिल जाती हैं।
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विनोद नदी भाकुड़ा, नगरगांव, तामाढोन, स्याल्दे तया, तिमली, छियाणी, चचरौटी होते हुए केदार में रामगंगा में समाहित होती है। केदार से सानण, जैनल, भिकियासैण होते हुए मरचूला के रास्ते कालागढ़ बांध से मुरादाबाद की तरफ बढ़ती है। तत्पश्चात इन सब नदियों का पानी अंत में गंगाजी में मिलकर गंगासागर में चला जाता है। कहने का अर्थ यह है कि हिमवंत की छोटी छोटी रौली, गधेरी, छिरोलियों का निर्मल, स्वछ जल भारत के अनेक हिस्सों से भ्रमण कर अंत में महासागर में समाहित हो जाता है।
रामगंगा नदी पर कालागढ़ नामक स्थान पर एक बाँध बनाया गया है, जहॉं बिजली का उत्पादन तथा तराई के मैदानों में सिंचाई की सुविधाऐं उपलब्ध होती हैं। रामगंगा के किनारे चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल, बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, फर्रुखाबाद तथा हरदोई जिले पड़ते हैं। रामगंगा के किनारे आने वाले मुख्य तीर्थ तथा गॉंव दाड़िम डाली शिव मंदिर, मेहलचोरी, चौखुटिया, स्वीठौ (कत्यूरीवंश का पवित्र तीर्थ), श्रीरामपादुका, आदिग्राम, सोमनाथेश्वर महादेव, कनौणी, मासी, काला चौना, रामघाट बूढ़ा केदार, रूदरेश्वर महादेव, और नौला आदि। इसकी सहायक नदियां विनोद नदी, गगास नदी, खोह नदी, कोशी नदी और अरल नदी।
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