जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए
चंद्र सिंह रावत (स्वतंत्र)
पूरा विश्व भारतीय स्वाधीनता दिवस के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव का आयोजन धूम धाम से मना रहा है। हर घर तिरंगा से भारत माँ की गोद तिरंगामय हो गई है। जहां देखो, चहुं ओर तिरंगा ही तिरंगा लहरा रहे हैं। मानो आज ही भारत आजाद हो रहा हो। अंग्रेजों ने वर्षों तक भारत पर राज किया और भारतीयों पर अनेक प्रकार से जुल्म ढाए। जब तक हमारे पूर्वज सहन कर पाए उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों को सहन किया किंतु जब अत्याचार अपनी चरम की पराकाष्ठा को पार कर गया और हमारे देवतुल्य पूर्वजों के लिए यह सब असहनीय हो गया तब उन्होंने एक होकर (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई) अंग्रेजों के विरुद्ध अनेक प्रकार के आंदोलन पूरे देश में करने शुरू कर दिए और अंग्रेजी शासकों को जब लगने लगा कि हिन्द की धरती पर टिकना/रहना अब मुमकिन नहीं है तो उन्होंने 14 अगस्त 1947 की अर्धरात्रि में भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कर दिया किंतु साथ ही साथ एक बड़ा घाव भी दे गया।
जिन लोगों ने एक सम्मिलित स्वर से देश को आजाद किया उन्हीं को दो दुकड़ों में बांट दिया। हिंदुस्तान और पाकिस्तान – दुनिया के मानचित्र में दो देश बन गए। मेरी नजर में एक पिता के दो पुत्र आपस में बिछुड़ गए जो सदियों से एक साथ रहते आए थे थोड़ी सी नासमझी या यूं कहें कि अपने व्यक्तिगत अहं के कारण पृथक हो गए। मेले में बिछुड़ने वाले मिल जाते हैं किंतु ये दोनों कभी एक न होने के लिए बिछुड़े। बिछुड़ क्या गए वे दोनों कट्टर दुश्मन बन एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। मुझे लगता है दोनों की आवाम को लगता है कि शायद ये कभी एक हो जाएं किंतु इस दुनिया में हथियारों के सौदागर हैं वे कभी नहीं चाहेंगे कि कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान नाम के दो भाई कभी एक हों क्योंकि यदि ये आपस में कभी मिल गए तो उनके सामने रोजी/रोटी का सवाल खड़ा हो जाएगा। दोनों देशों के नेता कभी नहीं चाहेंगे कि दोनों का मिलन हो क्योंकि फिर किस आधार पर वोट मांगने जाएंगे। आवाम शांति, अहिंसा, समृद्धि, सुख और चैन चाहती है किंतु उनकी सुनेगा कौन?आओ उन सब महान आत्माओं को हृदय से स्मरण करें जिन्होंने स्वाधीनता के इस समर में योगदान दिया है। उन वीर पुत्रों और वीरांगनाओं को शत शत नमन जिन्होंने अपने प्राण इस भूमि को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने में न्यौछावर कर दिए। अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए और घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया। जिन अंग्रेजों का सूरज कभी अस्त नहीं होता था उसे अस्त कर दिया। पर भारत की छाती में जो दाग दे गया उसकी भरपाई क्या कभी कोई कर पाएगा। क्या कोई पाकिस्तान की धरती से या हिंदुस्तान की धरती से कोई महात्मा पैदा होगा जो इन्हें वापस एक कर देगा। यह एक यक्ष प्रश्न है? हाँ अवश्य यह संभव होगा यदि दुनिया में हथियारों के सौदागरों के पेट जिस दिन भर जायेगें और वे हथियार बेचते बेचते थक जाएंगे और फिर कोई महावीर, बुद्ध इन (दोनों) पावन धरती पर जन्म लेगा तब मेरा यह सपना साकार होगा।
जय हिन्द!
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