पहाड़ों में अब कम ही देखने को मिलता है चकोतरा (जकोत्रा) फल
द्वारिका चमोली
वर्षों पहले का एक वाक्या जो मुझे आज भी याद है ! मैं दिल्ली से अपने गांव चमोला (तहसील कर्णप्रयाग जिला चमोली) गया था स्वाभाविक है कि हम उम्र के साथ उठना बैठना अच्छा लगता है तो में भी अपने हम उम्र मित्रों के साथ बैठा था हालाँकि उनमें से अधिकतर रिश्ते में चाचा लगते थे किन्तु हम उम्र होने के कारण मित्रों जैसी घनिष्टा थी ! इधर- उधर की बातों के बीच मुझे एक ऐसे फल खाने की इच्छा हुई जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जिसे गांव में चकोतरा (जकोत्रा) बोलते थे इस विषय में मैंने सबको बताया तो वे भी उत्साहित हुए किन्तु फल लाने की अनिच्छा जाहिर करने लगे चूँकि गांव में केवल एक व्यक्ति के यहाँ ही वह फल होता था जिन्हे में "जम्मू दादा" के नाम से जानता था वे स्वभाव से थोड़े सख्त थे जिस कारण मित्रों की हिम्मत नहीं हो रही थी पर में बाहर से गया था तो मुझे भी निरास नहीं करना चाहते थे काफी विचार विमर्श के बाद उन्होंने इसका उपाय भी निकाल लिया और मुझे कहा की यदि तू उनसे फल की इच्छा करेगा तो वो कभी मना नहीं करेंगे मुझे भी निर्णय अच्छा लगा पर वहीं पर ये फैसला भी हुआ कि अगर उन्होंने फल नहीं दिया तो फिर चोरी ही उपाय है जिसमें गाली खाने के चांस अधिक थे क्योंकि "स्वर्गीय जम्मू दादा" काफी सतर्क रहते थे खैर हम सब उनके घर पर पहुँच गए ! सेवा सौंळि के बाद इधर उधर की बातें होने लगी फिर बातों बातों में मैंने चकोतरा (जकोत्रा) फल खाने की इच्छा जाहिर की, दादा जी भी तुरंत गए और फल तोड़ लाये फिर हम सब ने मिलकर उस फल का आनंद उठाया ! उस रसीले फल की मिठास व मित्रों का प्रेम आज भी मन में जीवित है !
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👌👌
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