आंग्ल नव वर्ष पर विशेष
राजेंद्र प्रसाद जोशी
नई भोर के साथ सुख का सूर्योदय भी होता ही है
समय अच्छा बुरा नहीं होता है। उस काल खंड में घट रही घटनाएं अच्छी बुरी होती हैं। समय अपनी ही गति से चलता रहता है। उसे न अच्छे से प्रेम होता है और न ही बुरे से घृणा। वह किसी भी घटना या दुर्घटना का मात्र साक्षी होता है।अथवा यूँ कहें वास्तव में वह साक्षी भी नहीं होता है। प्रत्येक काल खंड में घट रही घटनाएं मानव को प्रभावित करती हैं। हम उन घटनाओं को समय के साथ जोड़ देते हैं।शुभ को हम सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं, अशुभ को हम शीघ्र भूलना चाहते हैं यह सोच कर कि समय सदा एक सा नहीं रहता, यह अशुभ घड़ी भी शीघ्र ही बीत जायेगी। दुखों का अंत निश्चित है, दुख का अंत होना ही है। कभी कभी दुख की काली बदली हमारे जीवन को कुछ लंबे अंतराल के लिए ढक लेती है लेकिन फिर नई भोर के साथ सुख का सूर्योदय भी होता ही है, सुख का अभाव ही दुख है। दुख के जाते ही सुख लौट आता है। दुख और सुख साथ साथ चल नहीं सकते।
सुख हमारा स्वभाव है। सत्य हमारा स्वभाव है। शांति,अहिंसा हमारे जीवन के अनिवार्य अंग हैं। विघटन, बिखराव, दुख, विषाद सब क्षणिक हैं, आकस्मिक हैं। असत्य को पराजित होना ही है क्योंकि सत्य साश्वत है। अशुभ का साक्षात्कार कोई नहीं चाहता, वह आकस्मिक दुर्घटना के रूप में हमारे जीवन में प्रविष्ट होता है, हम अशुभ से शीघ्रता के साथ छुटकारा पाना चाहते हैं। अशुभ के अंत के साथ ही शुभ का प्रादुर्भाव होता है। सुख, शांति, सत्य, अहिंसा, मानव मात्र के उत्थान के लिए आवश्यक है। समय अपनी धूरी पर चल रहा है। समय के साथ संपूर्ण सृष्टि गतिमान है। पतझड़ के साथ ही बसंत का आगमन होता है। पुराने पत्ते झड़ कर मिट्टी के साथ एकाकार हो जाते हैं।उनकी जगह पौधों से वृक्षों से नई कोंपलें फूटने लगती हैं। देखते ही देखते समस्त वन उपवन प्रकृति के नव श्रृंगार से सज उठता है यही सृष्टि है, यही प्रकृति है, यही सृजन है, यही जीवन का चक्र है, यही ईश्वरीय व्यवस्था है। यह व्यवस्था बिना व्यवधान के समय के साथ चलायमान है। इन्हीं स्वचालित व्यवस्थित प्रावधानों के साथ संपूर्ण ब्रह्माण्ड की अकल्पनीय घटनाएं तारतम्यता के साथ खरबों वर्षों से (मानवीय गणना के अनुसार ) निरंतर गतिशील हैं।
विदाई का शोक और आगत का स्वागत चलता रहता है।
निर्जीव पड़े घोंसले में अंडों के भीतर से जीवन उभर आता है। नन्हें चूजों की चहचाहट से घोंसला जीवित हो उठता है। जीवन मरण का अनिवार्य चक्र अविराम चल रहा है।एक जाता है उसकी जगह कोई अन्य ले लेता है। समय को न जाने वाले का विषाद है न आने वाले का हर्ष। समय अनवरत चल रहा है अपनी ही गति से। कैलेंडर पर अंकित अंक क्या वास्तव में समय की गणना कर सकते हैं? या कि फिर हमने ही अपने सुभीते के लिए समय को खांचे में ढाल लिया है। सत्य तो यह है कि समय को न दीवाल घड़ी के सहारे चलाया जा सकता है और न ही अन्य अनेक समय सारणियों द्वारा। समय का अदृश्य रथ चल रहा है अपनी चाल से। अतीत, वर्तमान, भविष्य सब शब्द हैं, मानव द्वारा निर्मित। काल के गाल में सब समाहित है तथापि - अतीत में जो अशुभ घटित हुआ है वह हमारे मन से विस्मृत हो जाये। दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। हम शोक से अशोक की ओर अग्रसर हों। मानव मात्र के जीवन से तमस मिटे। हम सब का जीवन प्रकाशमय हो। हमारे जीवन में सुख हो, समृद्धि हो, शांति हो, अहिंसा हो।हम सत्य और धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ते जायें। नव वर्ष पर यही शुभकामनायें हैं। यही मंगल कामनायें हैं।
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