करंट पोस्ट

8/recent/ticker-posts

ITBP के खिलाफ सडकों पर उतरे मताली गांव के ग्रामीण-किया सत्याग्रह आंदोलन



ITBP के खिलाफ सडकों पर उतरे मताली गांव के ग्रामीण-किया

सत्याग्रह आंदोलन 

उत्तरकाशी: जनपद उत्तरकाशी के मताली गांव के लोग ITBP के रवैये से नाखुश है और काफी आक्रोशित भी है जिसके चलते उन्होंने सोमवार 27 दिसंबर को  जिला मुख्यालय पर ITBP के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया। भरी तादाद में महिलाओं संग ग्रामीणों ने आईटीबीपी की 12वीं वाहिनी के मुख्य गेट पर पहुंचकर जमकर नारेबाजी की।  इस दौरान उन्होंने मंदिर और स्कूल के लिये रास्ता दो के नारों के बीच चेतावनी दी कि यदि हमारी मांगे पूरी न हुईं तो वे आगे भी इसी तरह सत्याग्रह आंदोलन कर सकते हैं।

मताली गांव के लोगों ने विरोध स्वरुप  सत्याग्रह आंदोलन और धरना-प्रदर्शन के बीच ढोल-दमाऊं के साथ विशाल जुलूस भी निकाला । इस विरोध प्रदर्शन में बहुतायत में पहुंची महिलाओं का कहना है हमें आईटीबीपी से इस तरह की उम्मीद नहीं थी।  गांव वालों का कहना है कि रास्ता प्रतिबंधित किये जाने से हमें अपने इष्ट देव के दर्शनों के लिए भी कई किलोमीटर घूम कर जाना पड़ता है और खेल के मैदान पर भी बच्चों को खेलने नहीं दिया जाता  इसलिए हम चाहते हैं कि आईटीबीपी के साथ जो पुरानी सहमति बनी थी वो बहाल हो। 


आखिर क्या है मामला 

दरअसल यह मामला भूमि पर रास्ता न दिए जाने को लेकर है।  प्राप्त जानकारी के अनुसार मातली गांव के लोगों का कहना है कि वर्ष 1999-2000 में उन्होंने ITBP को अपने गांव की भूमि दी थी। उनके मुताबिक हमारे गांव में आईटीबीपी करीब 1977-78 के आसपास से है। उनको अपना मुख्यालय  बनाने के लिये अधिक  जगह की जरूरत थी जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने यह जमीन कुछ शर्तों के साथ आईटीबीपी को दी थी । अब ग्रामीणों का आरोप यह है कि हमारे द्वारा निशुल्क भूमि देने के बावजूद आईटीबीपी ने कपिल मुनि महाराज मंदिर और राजकीय इंटर कॉलेज मातली जाने का रास्ता रोका हुआ है। जबकि भूमि देते वक्त इन सभी मार्गों को हमेशा खुला रखने पर दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी थी।


इस बावत कपिल मुनि समिति के अध्यक्ष राम लाल नौटियाल ने बताया कि आईटीबीपी को हमारे गांव वालों ने अपना खेल का मैदान, बड़ा चारागाह और भूमि राष्ट्र प्रेम से प्रेरित होकर ही दान दी थी। उस समय आईटीबीपी और ग्रामीणों के बीच सभी रास्तों को खोले रखने पर सहमति बनी थी लेकिन बदलते वक्त के साथ आईटीबीपी ने इस सहमति को नजरअंदाज कर दिया है। उनके मुताबिक हमने सन 1999 में आईटीबीपी को एक पत्र दिया था, जिसमें हमने अपनी पूरी शर्तों के साथ जमीन देने का प्रस्ताव दिया था। क्योंकि आईटीबीपी को यहां अपना मुख्यालय स्थापित करना था। इसके लिये हम अपनी कीमती जमीन देने को तैयार हुए। प्रकिया शुरू होने के बाद आईटीबीपी ने हमारी सड़क के नीचे की पूरी जमीन, जो कि 5.363 हैक्टेयर उपजाऊ और सींचित भूमि है, का हमसे अधिग्रहण किया। हालांकि इस जमीन का तब हमें औने-पौने दामों में मुआवजा दिया गया। खेतों के बीच में मौजूद बंजर भूमि का कोई मुआवजा नहीं दिया गया।

उनका कहना है कि उस जमीन के बीच से हमारा मंदिर जाने का रास्ता और नहर थी। आज हम उसी रास्ते की मांग कर रहे हैं, जो खेतों के बीच से होकर मंदिर और इंटर कॉलेज तक जाता है। आईटीबीपी से सहमति में इस रास्तों को खुला रखने की बात हुई। लेकिन अब आईटीबीपी ने इसको प्रतिबंधित कर दिया है। जहां आज आईटीबीपी विराजमान है, वह पूरी जगह ग्रामीणों की थी। हमारे पुराने खेल के मैदान में आईटीबीपी द्वारा खेल-कूदों का आयोजन किया जाता है, वो भी केवल आईटीबीपी के लिये, ग्रामीणों के लिये नहीं। हम केवल अपने पुराने रास्ते की मांग कर रहे हैं

कपिल मुनि समिति समेत यहां के ग्रामीणों ने अपनी मांगों के लिये सुरजीत सिंह देशवाल, महानिदेशक, भारत तिब्बत सीमा पुलिस समेत कई अधिकारियों को भी ज्ञापन प्रेषित किया, लेकिन अभी तक मामला लटका हुआ है।

यहां के ग्रामीणों ने कहा कि हम सेनानी ITBP से दिये गये शपथ पत्र का विधिवव पालन करने की मांग कर रहे हैं जो हमारा हक़ है ।  लेकिन ग्रामीणों के इस बाबत बार-बार अनुरोध करने के बाद भी जब बात नहीं बनी तो गांव वालों ने सत्याग्रह का रास्ता चुना।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस पूरे प्रकरण पर ITBP के वरिष्ठ अधिकारी और जिला प्रशासन ने अब मामले को संज्ञान में  लिया है। नायब तहसीलदार डुंडा ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि उनकी मांग शासन-प्रशासन तक पहुंचाई जाएगी और जल्द ही इस मसले का हल निकाला जाएगा।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ