केदार ताल जिसके जल से भगवान शिव को मिली थी शांति
मानव और प्रकृति का संबंध शरीर और आत्मा जैसा ही है क्योंकि दोनों ही ईश्वर के बनाए रूप है। यही कारण है कि मनुष्य ईश्वर से जुड़े प्राकृतिक स्थलों की खोज कर उसके विषय में जानकारियां जुटा खुद को ईश्वर के करीब रहने की कोशिश करता रहता है। देव भूमि उत्तराखंड में भी ऐसे अनेकों स्थान है जिनका संबंध भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। जनपद उत्तरकाशी को आप गंगोत्री धाम के रूप में ही जानते होंगे किंतु यहां बहुत से ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल है जिनके विषय में आम जनता अनभिज्ञ है ऐसा ही एक स्थान है केदार ताल, जिसके विषय में आज हम आपको जानकारी दे रहे हैं।
केदार ताल या अच्छराओं का ताल
हिमशिखरों से घिरी उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत झीलों में एक झील है केदार ताल जो उत्तराखंड के जनपद उत्तरकाशी में समुद्रतल से 4750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कहा जाता है कि यह भगवान शिव को समर्पित है। इसलिए इसे शिव झील के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे अच्छराओं का ताल भी कहते हैं।
इस झील के विषय में जानकर दिल में एक रोमांच पैदा होता है और मन बरबस उसे देखने को लालायित होने लगता है। गंगोत्री धाम से लगभग 18 किमी० के दुर्गम रास्ते से होते हुए आप इस खूबसूरत झील का अवलोकन कर सकते हैं। इसके पास ही हैं प्रसिद्ध मृगुपंथ और थलयसागर पर्वत जो अपनी चोटियों के प्रतिबिंब से ताल की शोभा में चार चांद लगाते हैं। केदारताल से केदारगंगा निकलती है जो भागीरथी की एक सहायक नदी है। चांदनी रात में जब इसमें पर्वत श्रृंखलाओं और आसमान में टिमटिमाते सितारों का प्रतिबिम्ब बनता है तो वो अलौकिक दृश्य देखकर आप खुद को ईश्वर से जुड़ा पाते हैं।
केदार ताल से जुडी मान्यता
प्रकृति की इस अनमोल धरोहर केदारताल के विषय में मान्यता है कि भगवान शिव ने इस ताल के जल को पिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्रमंथन हुआ था तो उसमें से निकलने वाले 14 रत्नो में से एक रत्न हलाहल विष भी था जिसके भयंकर परिणाम को देखते हुए भगवान शिव ने उस विष को पीकर अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रकोप से उनका कंठ जलने लगा जिसे शांत करने के लिए उन्होंने गंगोत्री से कुछ किलोमीटर दूर स्थित इस ताल के जल को पिया जिसके कारण लोग इसे केदार ताल के नाम से जानने लगे। इस पवित्र झील की धारा से केदारगंगा का निर्माण हुआ जिसे गंगा की सहायक नदी माना जाता है।
एक खूबसूरत और दुर्गम स्थान होने के कारण ट्रैकिंग के दीवानों को ये स्थान खूब भाता है। गंगोत्री से आगे लगभग 18 किलोमीटर पैदल यात्रा में आपको प्रकृति की खूबसूरत चित्रकारी मंत्रमुग्ध कर देगी। इस यात्रा के दौरान आपको दुर्लभ नीली भेड़ें, काले भालू (रीछ) और विभन्न दुर्लभ व बहुत ही सुंदर पक्षियों की प्रजातियां देखने को मिल जाती है।
कब और कैसे जाएं
उत्तरकाशी की घाटी अक्सर नवम्बर के बाद बर्फ की सफ़ेद चादर से ढकी रहती है ऐसे में अप्रैल से अक्टूबर के बीच यहां जाना अति उत्तम समय है। इस दौरान मौसम भी सही रहता है और प्रकृति भी अपने पूरे शबाब में होती है। यहां जाने के लिए आपको पहले रेल व हवाई मार्ग से ऋषिकेश और देहरादून आना होगा फिर सड़क मार्ग से उत्तरकाशी होते हुए केदार ताल पहुंचा जा सकता है। देहरादून से उत्तरकाशी की दूरी लगभग 145 किलोमीटर और ऋषिकेश से लगभग 172 किलोमीटर होगी।
यदि आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने मित्रों व संबंधियों को शेयर करें तांकि उन्हें भी पहाड़ से जुडी जानकारियां दिव्य पहाड़ के जरिये मिलती रहे।
©द्वारिका चमोली (डीपी)
0 टिप्पणियाँ