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डिजिटल होती दुनिया में शिक्षकों का वेबनार के माध्यम से शैक्षिक संवाद- किए अपने अनुभव सांझा



डिजिटल होती दुनिया में  शिक्षकों का वेबनार के माध्यम से शैक्षिक

संवाद- किए अपने अनुभव सांझा 

शैक्षिक संवाद: शनिवार 27 नवंबर 2021 को वेबनार के माध्यम से अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की और से शैक्षिक संवाद का आयोजन किया गया था। इसमें उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों के कुल चार शिक्षकों ने प्रतिभाग किया जिसमे उन्होंने स्कूल के अपने अनुभवों को एक-दूसरे के साथ सांझा किया। सभी ने कहा कि इस तरह की श्रृंखला से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी अपितु शिक्षकों व शिक्षार्थियों को ज्ञान अर्जित करने का अवसर भी मिलेगा। 

बता दें कि आज़मी प्रेमजी फाउंडेशन की पहल पर ये शैक्षिक संवाद शुरू किया गया है और कार्यक्रम के संचालक विवेक सोनी ने बताया कि अब तक लगभग 40 अध्यापकों ने अपने अपने अनुभव हमारे साथ शेयर किये हैं। इस बार वेबिनार में पुस्कालय और गणित विषय पर चर्चा करने व अपने अनुभव सांझा करने वाले शिक्षकों में रा. प्रा. विद्यालय ग्वालदम चमोली की शिक्षिका मंजू पांगती, रा.प्रा. विद्यालय गहड़ (खिर्सू) पौड़ी की शिक्षिका संगीता फरासी रा. आदर्श विद्यालय खालधर टेहरी से शिक्षक अमित चमोली और रा. प्रा. विद्यालय कोटतल्ला अगस्तमुनि से शिक्षक सतेंद्र भंडारी के अलावा एक्सपर्ट की  भूमिका में DEIT  रतूड़ा रुद्रप्रयाग की शिक्षिका भुवनेश्वरी और शिक्षा अधिकारी दुगड्डा पौड़ी गढ़वाल से अभिषिक शुक्ला। 

ग्वालदम से शिक्षिका पांगती ने बताया कि पिछले वर्ष कोविड के चलते बच्चों की पढाई डिस्टर्ब हो रही थी ऐसे में मैंने पर्सनली उनसे संपर्क साधा किंतु ऐसा करना लगातार संभव नहीं था ऐसे में मैंने अपने आस पास के बच्चों के घरों में जाकर उन्हें पढ़ना शुरू किया।  उन्हें में अपने स्कूल पुस्कालय से किताबें पढ़ने को देती थी और फिर उनसे उस विषय पर चर्चा करती थी।  उन्होंने कहा कि बच्चों की रूचि के अनुसार मैंने उन्हें ज्ञान दिया इस दौरान मैंने देखा कि कुछ बच्चे बहुत ही प्रतिभाशाली थे जिनके लिए मैंने पुस्कालय में और पुस्तकें मंगाई और उनके ज्ञान संसार को फूलने फैलने का प्रयास किया। 


रा. प्रा. विद्यालय गहड़ खिर्सू पौड़ी की शिक्षिका संगीता फरासी ने तो रीडिंग कार्नर का कॉन्सेप्ट ही सामने रख दिया।  उनके मुताबिक बच्चे पढ़ना तो जान लेते है लेकिन लिखने के प्रति उनकी रूचि को बढ़ाने के लिए मैंने बच्चों से पुस्तक में से  एक पाठ पढ़ने को कहा और उसमें से प्रायवाची, समांतर शब्द या फिर प्रश्नो को ढूंढकर एक रंगीन पेज में लिखकर फिर उनको एक चार्ट पर चिपकाने के लिए कहा और उनकी इस गतिविधि और उनके द्वारा रचित ज्ञान को सकलित कर उसे संभालकर रखने के लिए एक रीडिंग कार्नर बनाकर वहां चिपकाने को कहा और उसका संचालन भी बच्चों पर छोड़ दिया। उनके मुताबिक बच्चों को हमें स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए ऐसा करके वो अपनी रूचि के हिसाब से बेहतर कर पाएंगे। यही नहीं हमने बच्चों को कक्षा एक से ही कहानी और कविताएं लिखने की आज़ादी दी। उनके मन में जो भी भाव है हमने कहा उन्हें आप लिखो और यहां रीडिंग कार्नर में लगा दो।  ऐसा करने पर बच्चे स्वयं ही रीडिंग कार्नर में जाकर अपनी रूचि के हिसाब से पढ़ने लगते है। यही नहीं हमने अभिभाकों को बुलाकर उन्हें दिखाया की आपकी बच्चे क्या कर रहे है जिसे दिखकर अभिभावकों को अपने भी बच्चों की प्रतिभा का पता चलता है। 

रा. आदर्श विद्यालय थौलधार से शिक्षक अमित चमोली ने गणित के स्थानीय मान को समझाने का अपना अनुभव बताते हुए कहा कि कोरोना के कारण पढाई का जो गैप आ गया था उसके कारण बच्चों किस तरह पढ़ाएं समझ नहीं आ रहा था क्योंकि जिन बच्चों को गिनती का भी ज्ञान भली भांति नहीं है उन्हें सीधा इकाई दहाई सैकड़ा कैसे समझ आएगा तो इसके लिए उन्होंने रूपये के नॉट और सिक्कों की सहायता से उन्हें समझाना शुरू किया और कुछ ही दिनों की मेहनत के बाद बच्चे ये अच्छी तरह से समझने लगे और गणित में उनकी रूचि भी बढ़ी 

वहीं कोटतल्ला गुप्तकाशी के सत्येंद्र भंडारी ने भी गणित के भिन्नों को समझाने का एक अलग ही प्रयोग बताया। उन्होंने फलों के माध्यम से बच्चों को सीखना शुरू किया। उन्होंने कहा की यदि बच्चों से कहें कि यदि आपके पास 3 सेव हैं और आपको उसे 4 व्यक्तियों में बांटना है तो वो कंफ्यूज हो जाते है ऐसे में हमने 3 सेव काटकर प्रत्येक सेव में से एक टुकड़ा निकाला और बच्चों के एक टीम से कहा कि आप प्रत्येक टुकड़ा निकालने पर कहें 1/3 और इस तरह खेल खेल में उनकी समझ में आ गया। 

शिक्षा अधिकारी अभिषेक शुक्ला ने अपनी टिप्पणी में कहा की गणित विषय अधिकतर विद्यार्थियों को अरुचिकर लगता है क्योंकि अन्य विषयों में जहां कहानी कविताएं या फिर इतिहास की बातें रोचकता बनाए रखती है वहीं गणित में केवल बच्चों का सामना केवल अंकों से होता है जो उन्हें नीरस से लगते हैं ऐसे में रुपयों के द्वारा समझाना एक अच्छा प्रयास है साथ ही गणित के शिक्षकों को बोर्ड में अधिक समय देने के बजाये बच्चों को खेल खेल में इसका ज्ञान देना चाहिए इससे जहाँ एक ओर रोचकता बनी रहेगी वहीं बच्चों की इस विषय में रूचि भी बढ़ेगी। 

DIET की अध्यापिका भुवनेश्वरी जी ने कहा कि आज की इस चर्चा में  हमें पुस्तकालय क्यों और कैसे तैयार करना है इसके विषय में बहुत ही विस्तार से पता चला और संगीता जी व मंजू पांगती के विचारों का में सम्मान करती हूँ। 

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