उत्तराखंड में भू-कानून की बढ़ती मांग को
देखते हुए भगवती जुयाल गढ़देशी
द्वारा गढ़वाली रचना के माध्यम से जनता को संदेश
उत्तराखंड सरकार का जमीन अधिग्रहण पर कोई ठोस कानून न होने से बाहरी लोगों के द्वारा जमीन का अंधाधुंध अधिग्रहण करने के कारण वहां के किसानों और युवाओं का भविष्य खतरे में दिखाई देने लगा है। इस चिंता को भांपते हुए वहां का बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक कार्यकर्त्ता, साहित्यकार और कवी अपने अपने स्तर से सरकार तक अपनी आवाज पंहुचा रहे हैं कि उत्तराखंड में भी हिमाचल की तर्ज पर ठोस भू-कानून लाया जाए। इसी मुद्दे पर उत्तराखंड के कवी भगवती प्रसाद जुयाल अपनी गढ़वाली रचना के माध्यम से लोगों को और सरकार को एक संदेश दे रहे है।
भोळै फिकर
जागा हे उत्तराखंण्ड्यूं अब त जागी जवा
ऐक जुट ऐक मुट ह्वे की धवड़ी लगावा।
जगावा सरकारू दिल्ली हो चा देहरादून
हमतैं चयेणू हमरू हक हमरू भू कानून।
आज नि जागल्या त भोल पछतैल्या
भोल जब अपणी जैजाद खुज्याला।
रिंगदा जैल्या ढूंढदा रैल्या खौले जैल्या
बाब दादूवी जौ जमीन भैरा हथे जाला।
सुणा भै बंधू सुणा धरा अंठ मेरा मैत्यूं
होण खाणौ साक्यूं कू जिम्दरू सैंत्यूं।
आज वीं थाती पैं बुनै अयीं च खौरी
बसला लोग भैरा करला सीना जोरी।
जागी जवा उत्तराखण्डयूं जागी जावा
भू कानून जरूरी च चेता चितै जावा।
हक हकूक थाति पुरखौं की आण च
जौ जंगल जमीन जल हमरी धरौण च।
होंदा नेथी का नेता होंदा लौ लकार कदा
रूकदा बाठा पलायना किलै खुटू भैर धदा।
कम नि होंदा इक्कीस साल नि होंद जग्वाल
आवाज नि उठैल्या दगड़यों क्या होलु भोल।
ड्रोन घुमाणा पूंगड़यूं पुंगड़यूं छन रेकि कना
बंझर जमीन तैं चिन्हित करी भैरगढौं बेचणा।
जौ जमीन जिम्दरू छूटलू फिक्वाल बणिल्या
भोल नौन तिना पूछला वूं सणी क्या समझैल्या।
परदेसू भाजी गै छा लठ्यालौं खाण कमाणू
परवास मजबूरी नौकरी नि ह्वे आणू जाणू।
छोड़ी अयां घर गौं गलू तुम पढौंणू लिखौंणू
बौड़ी नि सक्यां न जगवाल इनी खौरी सुणौण।
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