करंट पोस्ट

8/recent/ticker-posts

दोहरी जाति व्यवस्था से सामाजिक बदलाव की ओर

दोहरी जाति व्यवस्था से सामाजिक बदलाव की ओर

बीना नयाल

जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्विज उच्यते। 

श्लोक का अर्थ है - जन्म से सभी शुद्र होते हैं ,संस्कारों से वे ब्राह्मण बन सकते हैं । स्कंद पुराण के नागर खंड का यह श्लोक सनातन धर्म की गतिशीलता, लचीलेपन और व्यापक समावेशिता की भावना को दर्शाता है। 

आज भारतीय समाज में जाति ज्वलंत मुद्दा है। भारतवासी हिंदू अनेक जातियों और उपजातियां में बुरी तरह विभाजित है । 1947 का भारत जो लगभग सभी क्षेत्रों में  विकास की शैशवावस्था में था, वर्तमान में लगभग सभी क्षेत्रों में परिपक्वता की ओर उन्मुख है ,परंतु यह दुर्भाग्य की बात है हम जाति जैसे मुद्दों पर आज भी जड़ बने हुए हैं । तमाम संवैधानिक प्रावधानों व लाभकारी उपबंधो व नियमों के बावजूद शताब्दी वर्ष की और उन्मुख भारतवासियों से जातिगत सद्भाव तथा समरसता की जो उम्मीद की गई थी, वह अभी कोसों दूर है ।

जाति का कोढ़ व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र को दीमक की भांति खोखला करता जा रहा है । आगामी जनगणना में जातिगत जनगणना की मांग पुरजोर तरीके से उठाई जा रही है।  प्रश्न यह है क्या महज संवैधानिक प्रावधानों , कानून, नियमो व आर्थिक लाभ देकर किसी व्यक्ति अथवा जाति की सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है । गहराई से विश्लेषण किया जाए तो हम पाएंगे बिना सामाजिक संरचना में बदलाव व गतिशीलता के निम्न जाति की स्थिति को बेहतर नहीं बनाया जा सकता ।

आज समय की मांग है प्राचीन वैदिक आख्यानों में वर्णित वर्ण व्यवस्था की और लौटने की । प्राचीन वर्ण व्यवस्था में आई विकृति को दूर करने का उपाय है आगामी जनगणना में प्रत्येक व्यक्ति के लिए दोहरी जाति व्यवस्था का प्रावधान करना होगा । एक जन्मना जाति जो वर्तमान में प्रचलित है  जिसकी गणना की बात की जा रही है और दूसरी होगी अर्जित जाति जो व्यक्ति अपने पेशे, गुण, योग्यता तथा कर्म के आधार पर प्राप्त करता है। दोहरी जाति व्यवस्था से धीरे-धीरे आगे चलकर समाज में क्रांतिकारी सामाजिक बदलाव आएगा। जातिगत व्यवस्था में लचीलापन तथा गतिशीलता स्थापित होगी जो सनातनी वर्ण व्यवस्था का मूल उद्देश्य है।  धीरे-धीरे जातियों में निहित पारस्परिक कटुता , वैमनस्यता आदि की भावना दुर्बल हो जाएगी और हम जातिगत सद्भाव तथा समरसता की और उन्मुख होंगे जो हिंदुत्व तथा अखंड भारत के लिए हर दृष्टिकोण से अपरिहार्य है।

 वैसे भी सनातन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है ।पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार हम न्याय के संदर्भ में सदैव प्रारंभिक अवस्था में रहते हैं । पूर्व जन्म में हमारी जाति तथा व्यवसाय क्या था ? वह अज्ञात है और आगामी जन्म में भी हमारे लिए यह अज्ञात ही रहेगा । अतः वर्तमान व्यवस्था को ही मानवीय संदर्भ में इस प्रकार निर्मित किया जाए ताकि ईश्वर द्वारा प्रदत्त हर अवस्था में हम मानवीय गरिमा और समान अधिकारों के साथ जीवन निर्वाह करें क्योंकि हमारे कर्म और हमारे द्वारा स्वीकार व्यवस्था ही अंततोगत्वा हमारी नियति का निर्धारण कर रही है । वर्तमान में हिंदू धर्म की सभी जातियों का सनातन में पूर्ण विश्वास व आस्था पुनः जागृत करने की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान समाज में जो हिंसा ,अवसाद क्रोध और वैमनस्य फैल रहा है इसका मुख्य कारण सनातन के संदर्भ में एक कालखंड में कुछ लोगों द्वारा फैलाई गई भ्रामक धारणाएं हैं, जिसने कुछ जातियों तथा वर्गों को सनातन धर्म से काफी हद तक दूर कर दिया । सनातन धर्म की उत्सव प्रियता , इसकी गत्यात्मकता इसका प्राणतत्व और आनंद उस जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी गंगा की भांति है जो सबके लिए सर्व सुलभ है । अतः समाज में दोहरी जाति व्यवस्था को प्रावधान उन बुरी शक्तियों को हतोत्साहित करेगा जो आर्थिक रूप से समृद्ध व सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित होने के बावजूद व्यक्तिगत निहितार्थों को पूरा करने के लिए जाति का अवलंबन लेते हैं,  देश व समाज को दीमक की तरह खोखला करने में लगे हुए हैं ।

भारतीय वैदिक परंपरा में वर्ण गतिशीलता के अनेक उदाहरण है , जहां चारों वर्णों में कर्म के अनुसार ऊर्ध्वाधर या अधोमुखी दोनों ही दिशा में गतिशीलता संभव थी, अर्थात कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से ब्राह्मण से क्षत्रिय वैश्य अथवा शुद्र और शूद्र से ब्राह्मण भी हो सकता था।

 अतः समाज में हर वह व्यक्ति जो पेशे के अनुरूप जिस वर्ग से संबंध रखता है और  संबंधित कर्म करता है उसकी अर्जित जाति में बदलाव आवश्यक है । धीरे-धीरे समय बीतने पर अर्जित जाति मुख्य जाति हो जाएगी और जन्म आधारित जाति गौण हो जाएगी । दोहरी जाति व्यवस्था का प्रावधान प्राचीन वैदिक वर्ण व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के साथ व्यक्ति  में आत्मिक संतोष , गरिमा और मानवीय अधिकारों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ पारस्परिक सद्भाव, देश की उन्नति तथा विश्व गुरू बनने की दिशा में भी बेहतर प्रयास सिद्ध होगा।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ