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जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' को उनकी पुण्यतिथि पर "गिर्दा की याद, गिर्दा के बाद" परिचर्चा के माध्यम से किया गया याद

जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' को उनकी पुण्यतिथि पर "गिर्दा की याद, गिर्दा के बाद" कार्यक्रम के माध्यम से किया गया याद

नई दिल्ली : उत्तराखंड में जन आन्दोलनों के प्रमुख जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' को उनकी 15वीं पुण्यतिथि पर जनसरोकारों से जुड़े लोगों, साहित्यकारों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने याद किया। 

साउथ एक्सटेंशन पार्ट वन स्थित अल्मोड़ा भवन में जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की पुण्यतिथि में आयोजित परिचर्चा 'गिर्दा की याद, गिर्दा के बाद' की शुरुआत संस्कृतिकर्मी और मशहूर हुड़कावादक भुवन रावत ने ॠतुरेण गायन से की। परिचर्चा का संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रदीप कुमार वेदवाल ने कहा कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन के निर्णायक दौर नब्बे के दशक में गिर्दा नैनीताल में प्रभात फेरियों, मशाल  जुलूसों में अपने जनगीत के माध्यम से आंदोलन को ऊर्जा प्रदान करते थे। वेदवाल ने उस दौर को याद करते हुए कहा कि नैनीताल के तल्लीताल बस स्टेशन का में 'डाठ' और दिल्ली का जंतर-मंतर चौक उत्तराखंड राज्य आंदोलन में गिरीश तिवारी 'गिर्दा' के ओजपूर्ण जनगीतों के साक्षी हैं। वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चंद्र जुगरान ने कहा कि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' न केवल जनकवि थे बल्कि वो एक जिज्ञासु यायावर प्रवृति के इंसान और मेहनतकश मजदूर के हक की लड़ाई लड़ने वाले रचनाधर्मी के साथ-साथ आंदोलनकारी भी थे। कार्यक्रम के संयोजक चारु तिवारी ने उत्तराखंड के विभिन्न आंदोलनों में गिरीश तिवारी 'गिर्दा' के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि 'नशा नहीं रोजगार दो', 'कनकटा बैल' आंदोलन से लेकर 'उत्तराखंड राज्य आंदोलन' में गिर्दा अपनी मुखर सहभागिता निभाते रहे।

गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की पुण्यतिथि पर आयोजित इस परिचर्चा के आयोजक मंडल के अहम सदस्य लेखक चंद्र सिंह रावत 'स्वतंत्र' ने युवा पीढ़ी को गिर्दा के रचना संसार से जोड़ने की बात कही। 



संस्कृतिकर्मी डाॅक्टर सतीश कालेश्वरी ने युवा पीढ़ी को गिर्दा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से रूबरू कराने के लिए आयोजकों का धन्यवाद करते हुए कहा कि इस तरह की परिचर्चा में युवाओं की ज्यादा से ज्यादा सहभागिता होनी चाहिए। के.एस. बिष्ट 'लमगड़िया' ने जनकवि गिर्दा के साथ बिताए समय को याद करते हुए कहा कि वो बहुत ही मिलनसार और सरल स्वभाव की शख्सियत थे। कमल पंत ने गिर्दा को याद करते हुए उत्तराखंड समाज को संगठित करने की बात कही। देवेंद्र सिंह बिष्ट ने गिर्दा के लेखन को ज्यादा से युवाओं तक पहुंचाने की बात कही। वरिष्ठ समाजसेवी विनोद कबटियाल ने गिरीश तिवारी 'गिर्दा' की स्मृति में वृहद आयोजन की बात कही। चंदन सिंह गुसाईं ने कहा कि यूट्यूब और गूगल में गिर्दा के गीत और कविताएं हैं जिन्हें समय-समय पर युवा पीढ़ी के युवाओं को देखना चाहिए। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार रमेश चंद्र घिल्डियाल ने की। इस अवसर पर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी प्रताप शाही, महेश पपनै, नीरज जोशी, राजेंद्र बिष्ट, सुनैना बिष्ट, वीरेन्द्र जुयाल 'उपरि, रेनू जखमोला उनियाल और डाॅक्टर बिहारी लाल जालंधरी सहित गिर्दा के चाहने वाले अनेकों लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में लोकगायक भुवन सिंह रावत और नीरज बावडी के साथ सभी लोगों ने गिर्दा के लोकप्रिय गीत 'उत्तराखंड मेरी मातृभूमि,मातृभूमि मेरी पितृभूमि' गाकर जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' को श्रद्धांजलि दी।

वहीं नाट्यकर्मी के एन पाडेय 'खिमदा', हरक सिंह अधिकारी, एम एस बोरा, कैलाश चंद्र जोशी, आनंद सिंह रावत, कुंदन सिंह बिष्ट, दिनेश जोशी, मनोज आर्या, शिवदत्त मिश्रा, भूपाल सिंह बिष्ट और बचे सिंह अधिकारी ने जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' को श्रद्धांजलि स्वरूप अपने-अपने ढंग से याद किया।

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