नई दिल्ली : 11 अगस्त 2024 को नई दिल्ली के उतराखंड सदन में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई,जिसमें बुद्धिजीवियों, पर्यावरणविदों औरचिंतित नागरिकों ने भाजपा विधायक श्री उपाध्याय और अर्जुन सिंह राणा के नेतृत्व में भाग लिया। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य महान हिमालय की स्थिरता पर चर्चा करना था, जो बढ़ते वैश्विक तापमान से लगातार खतरे मे है। हिमालय मे ग्लेशियरों के पिघलने और बर्फीली रेखाओ के खिसकने की घटनाएं गंभीर चिंता का विषय बन गई है जिनका असर न केवल भारत पर बल्कि 50 से अधिक देशो पर भी पड़ सकता है।
इस बैठक में 40 से अधिक वक्ताओं ने हिमालयी क्षेत्र में हो रहे चिंताजनक परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। संस्कृत समाचार पत्र के प्रसिद्ध संवाददाता देवेन एस. खत्री ने हिमालय की महता पर बल देते हए कहा कि यह न केवल भारत बल्कि वैश्विक पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने चेतावनी दी कि हिमालयी ग्लेशियरों का निरंतर पिघलना समुद्र के स्तर को बढ़ा रहा है, जिससे तटीय देशो को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
श्री खत्री ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित हिमालय की गहन महता पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वेदों, जो हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं , मैं हिमालय को "देवताओ का निवास" कहा गया है, जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महता को दर्शाता है। हिमालय, जो पश्चिम में हिंदूकुश से लेकर पूर्व में म्यांमार के रखाइन राज्य तक फैला हुआ है, न केवल एक भौगोलिक आश्चर्य है, बल्कि प्राचीन सभ्यताओं का पालना भी है। इस विशाल क्षेत्र ने एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को पोषित किया है, जहां विभिन्न समुदाय प्रकृति के साथ सामंजस में रहकर अपनी अनूठी परंपराओ और जीवन शैली को संरक्षित करते आए हैं।
बैठक में एक महत्वपूर्ण मुद्दा गोमुख ग्लेशियर के तेजी से पिघलने का था, जो गंगा नदी का स्त्रोत है। यह ग्लेशियर तेजी से पीछे खिसक रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल प्रभावो का स्पष्ट संकेत है। गंगा नदी, जो गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी तक 2,525 किलोमीटर तक फैली है, 80 करोड़ से अधिक लोगो की आजिविका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। नदी का प्रवाह सीधे हिमालय के ग्लेशियरों पर निर्भर है, और इसमें कोई भी व्यवधान विनाशकारी परिणाम ला सकता है।
वक्ताओं ने महान हिमालय की स्थिरता को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की और तत्काल कार्यवाही का आह्वान किया। सर्वसम्मति से यह कहा गया कि हिमालय न केवल एक राष्ट्रिय धरोहर है, बल्कि एक वैश्विक धरोहर भी है, और इसके संरक्षण के लिए एक समन्वित अंतर्राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है। ग्लेशियरों का पिघलना उन देशो के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है जो उन पर पानी के लिए निर्भर है, और किसी भी तरह की और गिरावट से एक पारिस्थितिक आपदा हो सकती है।
हिमालय के लोगो की सांस्कृतिक विरासत, जैसा कि श्री खत्री ने बताया, प्राकृतिक परिदृश्य के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। इस क्षेत्र में प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक पनपी सभ्यताओं ने सांस्कृतिक परंपराओ, आध्यात्मिक प्रथाओं और सतत जीवन के एक समृद्ध ताने-बाने मे योगदान दिया है। इन समुदायो ने लंबे समय से हिमालय को पवित्र माना है, और उनका जीवन इन पहाड़ो से गहराई से जुड़ा हुआ है।
वक्ताओं ने प्रधानमंती नरेंद्र मोदी से इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर नेतृत्व करने का आग्रह किया। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत प्रभावित अन्य देशो के साथ बातचीत करे ताकि हिमालय को बचाने के लिए एक रणनीति विकसित की जा सके। वैश्विक सहयोग की आवशकता पर जोर दिया गया, क्योंकि हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव केवल भारत की सीमाओ तक ही सिमित नही है।
बैठक का समापन एक कार्य योजना के आह्वान के साथ हुआ, जिसमें भारतीय सरकार से हिमालय के संरक्षण को अपनी पर्यावरणीय नीतियों में प्राथमिकता देने का आग्रह किया गया। प्रतिभागियों नेआशा व्यक्त की कि प्रधानमंती मोदी के नेतृत मे, भारत इस महत्वपूर्ण मुद्दे को सम्बोधित करने और महान हिमालय के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए अन्य देशो के साथ मिलकर आवश्यक कदम उठाएगा।
उतराखंड सदन में आयोजित इस बैठक ने हिमालय के सामने आने वाली पर्यावरणीय चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। प्रतिभागियों की सामूहिक आवाज एक मजबूत संदेश भेजती है कि अब कार्रवाई का समय आ गया है, और हिमालय के संरक्षण को दुनिया भर में लाखों लोगो की भलाई और एक अमूल सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए आवश्यक माना जाना चाहिए।
इस अवसर पर प्रमुख वक्ताओं में टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय, सुनील नेगी, अध्यक्ष उत्तराखंड पत्रकार मंच, मदन मोहन सती, प्रेस सलाहकार मुख्यमंत्री, दिल्ली, श्री देवेन खत्री, डॉ. हरि सुमन बिष्ट, प्रख्यात लेखक, साहित्यकार, दिनेश ध्यानी, भाषाविद्, रमेश घिल्डियाल, प्रख्यात हिंदी लेखक, चंद्रमोहन पपनै, पत्रकार, श्री ढौंडियाल, अजय सिंह बिष्ट, अध्यक्ष, गढ़वाल हितैषी सभा, एम.एस. रावत, शिक्षाविद्, अर्जुन सिंह राणा, दुर्गा सिंह भंडारी, श्री हरदोलिया के अलावा अन्य अनेकों सामाजिक हस्तियां मौजूद थी।
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