नई दिल्ली : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड सदन चाण्क्यपुरी नई दिल्ली में उत्तराखंड के तीनों क्षेत्र गढवाल, कुमाऊँ और जौनसार के व्यंजनों की त्रिवेणी के रूप में नयी पहल की है । अब तक उत्तराखंड के व्यंजनों में गढ़वाल और कुमाऊँ के भोजनों की ही चर्चा होती थी लेकिन जौनसार बावर क्षेत्र के व्यंजनों का स्वाद नये साल में उत्तराखंड सदन में खाने को मिलेंगे ।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने जौनसार बावर की जनता की अपनी विशेष पहचान और व्यंजनों की विविधता को देखते हुए उनके व्यंजन सिड़कु, मशयाड़ा भात,चिल्लड़े और शश्याणी को उत्तराखंडी व्यंजनों में जोड़कर , हमारी सांस्कृतिक धरोहर और पहचान को नया स्वरूप देने का काम किया है ।
30 दिसंबर 2023 को उत्तराखंड सदन में इन व्यंजनों पर उत्तराखंड के जनसरोकारों और संस्कृति से जुड़े लोगों ने एक छोटी लेकिन सार्थक चर्चा की । इस चर्चा का आयोजन उत्तराखंड के मुख्यमन्त्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी के प्रेस सलाहकार श्री मदन मोहन सती जी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी की इच्छानुसार आयोजित की । संगोष्ठी की अध्यक्षता जौनसार के ही सेवानिवृत्त डी.जी. कोस्ट गार्ड और वर्तमान में नेशनल डिज़ास्टर मैनेजमेंट के सदस्य श्री राजेन्द्र सिंह तोमर जी ने की ।
उत्तराखंड के तीनों क्षेत्रों से आये प्रबुद्ध नागरिकों ने चर्चा में सहभागिता की । श्री रतन सिंह रावत जी (आई.आर.एस.) ने विस्तार से सिड़कु, मशयाड़ा भात ,चिल्लड़े और शश्याणी के बारे में बताया । सिड़कु, चावल के आटे, अखरोट की पिसी हुई गिरी, पोस्त दाने और भंगजीरे को भरकर स्टीम द्वारा पकाये जाते है। ये दो तरह के होते हैं एक गुड़ के साथ मीठे और दूसरे दाल के साथ नमकीन बनते है । दूसरे तरह की सिड़कु जिसे टरकाणी कहते हैं ये गेहूं के आटे से बनते हैं ये भी दो तरह के होते हैं वही अखरोट, पोस्त दाना, भंगजीरा वाले और दूसरे उड़द की दाल से भरे हुए । यह सभी पारंपरिक त्योहारों में बनाए जाते हैं और महासू देवता ( महाशिव) के देव पर्वों में विशेष रूप से बनाया जाता है । मश्याड़ा भात मायके में आई हुई बेटी के लिए विशेष रूप से बनाया जाता है । जब बेटी ससुराल जाती है तो भी उसके लिये बनाया जाता है। हमारे सारे लोक पर्व हमारी माताओं बहनों के जीवन के विशेष प्रसंगों से जुड़े होते हैं ।मश्याणा भात लाल पहाड़ी चावल, उड़द दाल को हल्का सा भूनकर चावल के साथ खिचड़ी के रूप में बनाया जाता है । इसमें खाते समय घी, दही के साथ खाया जाता है । इसमें ऊपर से अखरोट की पिसी हुई गिरी, पोस्त दाना , तिल , भंगजीरा आदि डालकर खाया जाता है ।चिल्लड़े चावल के आटे को ही डोरे की तरह फैलाकर बनाया जाता है ।शश्याड़ी एक तरह की कड़ी ही है लेकिन इसे सर्दियों में भात के साथ विशेष रूप से बनाया जाता है । इसमें बहुत से तरह के मशालें डाले जाते है जो एक गर्म तासीर बनाए रखती है ।
चर्चा में सभी महानुभावों ने अपना परिचय दिया और अपने लोक व्यंजनों को अपनी नई पीढ़ी तक पहुँचाने के साथ ही उसे देश और दुनियाँ में ले जाने का आग्रह किया ।
इस असर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी के प्रेस सलाहकार श्री मदनमोहन सती, श्री पूर्ण चंद्र नैनवाल (पूर्व राज्यमंत्री-उत्तराखंड सरकार) श्री कुलानंद जोशी (से.नि.आई.ए.एस.) श्री मनोज सेमवाल (आई.आर.एस.ई.ई), दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हरेंद्र असवाल, पवन कुमार मैठाणी, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित गोपाल उप्रेती, पत्रकार सी.एम.पपनै, सुनील नेगी, रोशन गौड़, उद्यमी व समाज सेवी के.सी. पांडे, राजीव नैथानी, उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य व पूर्व अधिकारी महेश चंद्रा , जौनसार-भाबर कल्याण समिति के पदाधिकारी विशेष रूप से उपस्थित रहे।
हमारे पारंपरिक व्यंजनों की एक ख़ासियत यह है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी तो है ही हमारी मिट्टी पानी की भी ख़ुशबू साथ में विखेरती हैं । हमारे सारे सांस्कृतिक त्योहार हमारे लोक जीवन , क्षेत्र और परंपराओं को हर समय हमें याद दिलाते हैं । इसके साथ ही हमारी सामूहिक कार्य शैली और परस्पर सहयोग की भावना को भी उकेरती हैं । हम अपनी प्रकृति, अपनी परंपरा और अपनी धरोहर के रूप में अपने व्यजंनो को यदि अपने जीवन से जोड़ेंगे तो हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक, और पुस्तैनी संस्कृति को एक निरन्तरता मिलेगी ,जीवन में दवाओं की ज़रूरत नहीं होगी , हमारे स्वाद तन्तु हमारी संस्कृति को जीवन्त रखने में सहायक भी होंगे ।
रिपोर्ट- प्रोo हरेंद्र असवाल
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