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प्रथम गढ़वाली पजलकार जगमोहन रावत जगमोरा की पुस्तकों "हुणत्यलि" और "गुणत्यलि" का हुआ लोकार्पण



पुस्तक लोकार्पण : रविवार 11 दिसंबर 2022 को गढ़वाल भवन, पंचकुइया रोड, चंद्र सिंह गढ़वाली चौक, दिल्ली में उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के तत्वाधान में प्रथम गढ़वाली पजलकार (मैणा) जगमोहन रावत जगमोरा की दो पुस्तकों  "हुणत्यलि" और "गुणत्यलि" का लोकार्पण और गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं पर परिचर्चा व कवी सम्मलेन का आयोजन किया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान जी की अध्यक्षता में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। पूरा कार्यक्रम तीन सत्रों में चला। पहले और दूसरे सत्र में पुस्तक लोकार्पण और भाषा पर व्यापक चर्चा हुई और अंतिम सत्र में कवियों ने विभिन्न विषयों पर अपनी लेखनी के रंग बिखेरे।

मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी ने बताया कि वैसे तो सभी लोग पहेलियों से परिचित हैं लेकिन इस विद्या में जगमोरा जी ऐसे पहले साहित्यकार हैं जिन्होंने गढ़वाली में पज़ल लिखी है। पजल के माध्यम से वे न केवल लोगों की दिमागी कसरत करा रहे हैं बल्कि गढ़वाली के  मूल शब्दों से भी लोगों को परिचित करा रहे हैं। इसी के साथ ध्यानी जी ने कहा कि उत्तराखंड लोक भाषा साहित्यमंच गढ़वाली और कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। इसके लिए हम चाहते हैं कि भाषा प्रेमी भी अपना पूरा सहयोग करें। 

मंच के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी अपनी भाषा से जुडी रहे इसके लिए हम दिल्ली एनसीआर में हर वर्ष गढ़वाली कुमाउनी भाषाओं की कक्षा लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जगमोहन रावत जी ने पज़ल विद्या के माध्यम से गढ़वाली के शब्दों को फिर से जीवित किया है और अपनी भावी पीढ़ी में भाषा के प्रति रोचकता प्रदान की है इसके लिए उन्हें साधुवाद बधाई।

वरिष्ठ साहित्यकार रमेश घिल्डियाल ने कहा कि जब गढ़वाली और कुमाउनी भाषा अपने हक़ के लिए संघर्ष कर रही हो ऐसे समय में रावत जी द्वारा पज़ल (मैणा) के रूप में एक नई विद्या में साहित्य सृजन विशेष महत्व रखता है। डीयू के प्रोफेसर हरेंद्र असवाल ने कहा कि हिंदी के मुकाबले गढ़वाली में अभिव्यक्ति के लिए शब्दों का अपार  भंडार मिलता है। 


वहीं उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष धीरेन्द्र प्रताप ने अपने वक्तव्य में कहा कि भावी पीढ़ी के लिए  हमें अपनी भाषा व संस्कृति को सहेजकर रखना होगा। उन्होंने कहा की हम सबको उत्तराखंड की प्रमुख भाषाओं गढ़वाली और कुमाऊनी को सविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल कराने के लिए सामूहिक प्रयास तेज करने होंगे। धीरेन्द्र जी ने  कहा कि इस मामले को लेकर वह शीघ्र ही भारत के मानव संसाधन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलेंगे। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान जी ने कहा कि अपनी भाषा को बचाने व संविधान की 8 वीं अनुसूचि में शामिल करने के लिए जगमोरा जी द्वारा सृजित पजल विद्या एक मील का पत्थर साबित होगी।
 
आमंत्रित अतिथियों में पत्रकार चारु तिवारी, सुनिल नेगी, वरिष्ठ समाजसेवी महेश चंद्रा, बी. एन. शर्मा, प्रोफेसर वी एस नेगी, वरिष्ठ साहित्यकार सुशील बुड़ाकोटी,  प्रोफेसर  विरेन्द्र  नेगी, गजलकार पयास पोखड़ा, साहित्यकार दीनदयाल  बंदूनी "दीन"जी, रमेश हितैषी,  कैंथुरा जी, प्रतिबिंब  बड़थ्वाल, विश्वेश्वर सिल्सवाल,  प्रदीप रावत खुदेड़, रामेश्वरी नादान, लक्ष्मी नौडियाल, पूनम बिष्ट आदि ने अपने विचार रखे और कविता पाठ किया

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