इगास पर्व : उत्तराखंड का लोकपर्व इगास अब गांवों के साथ महानगरों में भी पारंपरिक तरीके से बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में इगास पर्व वैदिक परंपरा और पहाड़ों में प्रचलित रस्मों-रिवाज के साथ मनाया गया। नोएडा एक्सटेंशन की रक्षा अडेला सोसाइटी में लक्ष्मी नारायण मंदिर में ठेड पहाड़ी अंदाज में पहाड़ी पकवान और पूजा-पाठ के विधान के साथ प्रवासी उत्तराखंडी परिवारों के साथ अन्य समाज के लोगों ने इगास का त्योहार मनाया।
कार्यक्रम के संयोजक अनु पंत ने बताया कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में दीपावली के ग्यारह दिन बाद इगास के पर्व को दीपक जलाकर ज्योतिपर्व मनाया जाता है। पहाड़ की परंपरा को प्रवास में मनाने की मुहिम के तहत ही यह आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के सह-संयोजक जगदीश नेगी ने बताया कि गढ़वाल में इगास और कुमाऊं में देव दीवाली के दिन गोधवंश की पूजा का भी प्रावधान है।
वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और उत्तराखंड के इतिहास के जानकर प्रदीप कुमार वेदवाल ने इगास पर्व मनाने की परंपरा की जानकारी देते हुए कहा कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का समाचार उत्तराखंड के गिरी प्रदेश में ग्यारह दिन बाद पहुंचा था इसलिए हरिबोधनी एकादशी के दिन उत्तराखंड के गिरीजन दीपक और भैले जलाकर इगास मनाते हैं। वेदवाल ने बताया कि गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जब तिब्बत में युद्ध जीतकर आए तो फिर गढ़वाल में इगास मनाई गई। एक जनश्रुति के अनुसार कुंतीपुत्री भीम जब राक्षसवध के बाद दीपावली के बाद वापस आए तो फिर पांडवों ने दीपावली के ग्यारह दिन बाद दीपावली मनाई थी।
उस अवसर पर भारती धरोहर के संपादक प्रवीण शर्मा,साहित्यकार अर्जुन सिंह रावत,डाॅक्टर अनामिका ध्यानी,कोपल पंत,रोहित नेगी,संजय शर्मा,ओम उज्जवल सिंह, सुधांशु शर्मा,वेद प्रकाश सेनी,मनोज शर्मा आदि मौजूद थे। कार्यक्रम का आयोजन बुरांस साहित्य एवं कला केंद्र और भारतीय धरोहर ने संयुक्त रूप से किया।
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