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संघर्षों से रहा है उत्तराखड के युवाओं का नाता- एक संघर्शील युवा पवन रावत की गाथा


संघर्षों से रहा है उत्तराखड के युवाओं का नाता एक संघर्षशील युवा पवन रावत की गाथा

द्वारिका चमोली/दिव्य पहाड़ 

उत्तराखंड का नाम आते ही पहाड़ और संघर्ष सहर्ष याद आने लगते हैं। उत्तराखंड में बसे अधिकतर गांवों के लोग बाहर से आये हैं और इनका मुख्य रोजगार खेती और पशु पालन हुआ करता था। विकट परिस्थितियों में भी यहां के लोगों ने अपने संघर्ष, जज़्बे व ईमानदारी से अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अगर बात करें 50 और 60 दशक की जब यहां के लोगों ने नौकरी के सिलसिले में शहरों को जाना शुरू किया था। ये वो समय था जब उत्तराखंडियों के संघर्षों को पंख लगने शुरू हुए थे।  इस समय अधिकतर गांवों में प्राइमरी तक के स्कूल हुआ करते थे इसलिए मिडिल और हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा के लिए भी विद्यार्थियों को कई कई मील तक पैदल जाना पड़ता था क्योंकि उनके अभिभावकों और विद्यार्थियों में अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए एक मात्र विकल्प शिक्षा ही था। इसलिए उन्होंने अपनी लगन और परिश्रम से अपना एक मुकाम बनाया। आज आप देश के उचस्थ पदों पर बैठे जितने भी अधिकारीयों को देख रहे हैं उनमे से अधिकतर इसी दौर के लोग है जो शिक्षा पाने के लिए कई कई मील पैदल चले हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि जीवन में संघर्षों से लड़कर ही कुछ पाया जा सकता है लेकिन उत्तराखंड में आज के अधिकांश युवा उच्च शिक्षित होकर भी संघर्षों से दूरी बनाये हुए है उनके मार्गदर्शन के लिए हम आज चमोली जिले के कर्णप्रयाग तहसील के एक युवा पवन रावत के संघर्षों की बात करेंगे जिसे उन्होंने खुद अपनी जुबानी बताया है। 

कर्णप्रयाग से नौटी रोड मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर पवन रावत का गांव है। उनके मुताबिक छोटी ही उम्र में वे अपने गांव से शॉर्टकट मार्ग से करीब 9 किलोमीटर पैदल चलकर कर्णप्रयाग दूध बेचने आया-जाया करते थे। क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए 11 वीं कक्षा में आते ही उन्होंने गांव के ही कुछ बच्चों को टूशन पढ़ाना शुरू कर दिया जिससे थोड़ा बहुत खर्चा मिल जाया करता था। 12वीं करने के पश्चात वो नौकरी के लिए अपने निकटतम बाजार कर्णप्रयाग चले आये पर क्या नौकरी मिले कुछ समझ नहीं आ रहा था इसी उधेड़बुन में एक दिन ट्रक पर क्लीनर की नौकरी पकड़ ली इसी बीच आईटीआई के लिए भी अप्लाई कर दिया। नौकरी चल रही थी कि आईटीआई में इलेक्ट्रिक ट्रेड में उनका सलेक्शन श्रीनगर गढ़वाल में हो गया। सुनकर वो बहुत खुश हुए किंतु श्रीनगर तक जाने के पैसे नहीं थे ऐसे में जिस ट्रक में नौकरी करते थे उसी ट्रक में श्रीनगर पहुँच गए। 

यहां से शुरू हुआ  उनका असली संघर्षों का सफर 

जब वो श्रीनगर पहुंचे तो उनकी उम्र मात्र 17-18 वर्ष रही होगी । यहाँ शिक्षा ग्रहण करने व भरण पोषण के लिए एक ऐसी अदद नौकरी की आवश्यकता थी जिसमे उन्हें केवल सुबह शाम का काम मिले इसके लिए उन्होंने वहां कई लोगों से संपर्क किया किंतु बात बनी नहीं फिर किसी ने एक गेस्ट हाउस में उन्हें भेजा जहां गेस्ट हाउस मालिक ने उनकी परेशानी को समझकर उन्हें शाम के समय काम दे दिया। क्योंकि दिन में 10 से 4 बजे तक कॉलेज होता था उसके बाद गेस्ट हाउस में कस्टमर को अटैंड करना वर्तन इत्यादि धोना जो की करीब रात 12 बजे तक चलता था फिर धीरे धीरे उन्होंने प्राइमरी से आठवीं तक के बच्चों को होम टूशन देना शुरु किया और सुबह अखबार बांटने का कार्य भी पकड़ लिया। सुबह 4 बजे से रात 12 बजे तक वो लगातार काम व अपनी पढाई पर लगा देते थे। इस बीच बीमार भी हुए किंतु अखबार बांटने का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। अखबार बांटने और टूशन से उन्हें हर महीने 2200 रूपये के करीब पैसे मिलने लगे थे ऐसे में उन्होंने एक रूम रेंट पर ले लिया और गांव से अपने 2 भाइयों को भी बुला लिया। 

अखबार बांटने और टूशन से होने वाली कमाई से वे संतुष्ट नहीं थे लेकिन मजबूरी थी। अब जब टूशन में भी बच्चे बढ़ने लगे और कमाई में भी इज़ाफ़ा हुआ तो पैसों का लालच भी कुछ नया करने की प्रेरणा देने लगा फिर उन्होंने एक छोटी सी कार खरीदी। कार चलाना उन्होंने गांव में ही सीख लिया था पर हाथ साफ नहीं था। इसके लिए वे दिन में आधा घंटा  कार चलाकर हाथ साफ करते। इसी बीच आईटीआई में अपने इलेक्ट्रीशियन के ट्रेड में पास आउट हुए और 64 वीं रैंक प्राप्त की। वो जिन जिन घरों में अखबार डालने जाते थे उन सबको वे ये बताते गए की उन्होंने गाडी खरीदी है अगर किसी को कहीं जाना हो तो उनसे संपर्क कर सकते हैं।  इस तरह उन्हें  छोटी छोटी बुकिंग मिलनी शुरु हो गई।  इसमें मुनाफा देख उन्होंने एक गाडी और खरीद ली क्योंकि भाई भी साथ ही थे तो अब उन्होंने टूशन और गेस्ट हाउस की नौकरी छोड़ दी और सभी भाई मिलकर गाडी चलाने लगे। आज उनके पास चार गाड़ियां है और श्रीनगर में  पवन टूर एंड ट्रेवल्स के नाम से एक ऑफिस भी है तथा उनकी गाड़िया श्रीनगर और हरिद्वार के लिए चलती हैं। 

पवन कहते हैं यदि इच्छाशक्ति हो तो कामयाबी मिलना तय 

आज पवन कामयाबी के सफर पर हैं और अपनी इस सफलता के बीच में आए संघर्षों से वो टूटे नहीं बल्कि और मजबूत हुए है। आज जब लोग ये कहते हैं की रोजगार नहीं है या पहाड़ में करने को कुछ नहीं है तो इस पर उनका कहना है कि ऐसा नहीं है यहां काम बहुत है पर हमें अपनी सोच को बदलना होगा क्योंकि कोई भी काम छोटा नहीं होता बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए। हाँ कोई भी काम शुरू करें उसके लिए थोड़ा सब्र की जरुरत होती है क्योंकिं कामयाबी एकदम नहीं मिलती।उनका मानना है कि आज के दौर में कोई व्यक्ति कामयाबी के चरम पर है तो उसे यहां तक पहुंचने के लिए जिन संघर्षों से गुजरना पड़ा वो उसे दूसरों के बीच अवश्य शेयर करना चाहिए ताकि उत्तराखंड की आने वाली पीढ़ी का मार्गप्रस्थ हो सके और वो उत्तराखंड के विकास में अहम रोल अदा कर सकें।  

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